RBI Governor statement: मुंबई। भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने शुक्रवार को कहा कि यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) के माध्यम से होने वाला मुफ्त डिजिटल लेनदेन संभवतः लंबे समय तक नहीं चल पाएगा। उन्होंने कहा कि भविष्य में इस प्रणाली को वित्तीय रूप से टिकाऊ बनाना आवश्यक होगा। UPI Latest News
गवर्नर ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा, “भुगतान और मुद्रा किसी भी अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा होते हैं। वर्तमान में, यूपीआई पर कोई शुल्क नहीं है। सरकार द्वारा बैंकों और अन्य सेवा प्रदाताओं को सब्सिडी दी जा रही है, लेकिन किसी न किसी को तो इसकी लागत चुकानी ही होगी।” उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण वित्तीय संरचनाओं को स्वयं टिकाऊ होना चाहिए। यदि किसी सेवा को लंबे समय तक जारी रखना है, तो उसकी लागत या तो उपभोक्ताओं द्वारा या किसी सामूहिक व्यवस्था के तहत चुकानी ही पड़ेगी।
लेनदेन की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे ढांचे पर दबाव भी बढ़ रहा है
वर्तमान में यूपीआई प्रणाली का संचालन बैंकों, भुगतान सेवा प्रदाताओं और एनपीसीआई द्वारा किया जाता है। जैसे-जैसे लेनदेन की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे इस ढांचे पर दबाव भी बढ़ रहा है। मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर), जो कि एक सेवा शुल्क होता है, दिसंबर 2019 से यूपीआई और रूपे कार्ड लेनदेन पर समाप्त कर दिया गया था। इससे बैंकों और अन्य सेवा प्रदाताओं को कोई राजस्व नहीं मिल रहा है। अब इस बात पर चर्चा हो रही है कि या तो एमडीआर को फिर से लागू किया जाए, या उपभोक्ताओं को यूपीआई से जुड़े खर्च वहन करने पड़ें।
गौरतलब है कि यूपीआई ने हाल ही में वैश्विक पेमेंट कंपनी वीज़ा को पीछे छोड़ दिया है। जून 2025 में 18.39 अरब से अधिक लेनदेन के माध्यम से ₹24 लाख करोड़ रुपये से अधिक का लेनदेन हुआ। यूपीआई भारत में 85% डिजिटल भुगतान और वैश्विक स्तर पर लगभग 50% रियल-टाइम पेमेंट्स का संचालन करता है। UPI Latest News
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