2020: संपूर्ण दुनिया लॉकडाउन में, आगे कठिन राह

 

वर्ष 2020 का विदाई गीत किस प्रकार लिखें। ढोल नगाडे बजाएं? नई आशाओं, सपनों और वायदों के पंखों पर सवार होकर वर्ष 2021 का स्वागत करें? या पिछले 12 महीने से चले आ रहे निराशा के वातावरण में ही जीएं जिसके थमने के कोई आसार नहीं हैं? नि:संदेह वर्ष 2020 इतिहास में एक उथल-पुथल भरे वर्ष के रूप में याद किया जाएगा। तथापि नए वर्ष में नई उम्मीदें बंध रही हैं और आशा है कि बीते वर्ष की तुलना में यह अधिक सुखद होगा। क्या ऐसा होगा? हम एक ऐसे असाधारण समय में रह रहे हैं जहां पर कोरोना महामारी के चलते संपूर्ण दुनिया ठप्प हो गयी थी और पूरी दुनिया बदल ही गयी थी। इस महामारी ने संपूर्ण मानव जाति को अपने शिकंजे में जकड़ दिया और हमें यह अहसास कराया कि हम कितने नश्वर हैं और इस महामारी के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए हमें अपनी जीवन शैली और आदतों में बदलाव करना होगा।
इस महामारी से मृतकों की संख्या 20 लाख के करीब पहुंचने वाली है और दुनिया के विभिन्न देश इसका मुकाबला करने के लिए युद्धस्तर पर कदम उठा रहे हैं। विश्व के अनेक देशों में फिर से लॉकडाउन की घोषणा कर दी गयी है। जिन शहरों में एक बार पुन: चहल-पहल देखने को मिल रही थी वे सब ठप्प से हो गए हैं और लोग सोशल डिस्टैंसिंग के नए मानदंडों को अपनाने लगे हैं। सब कुछ ठप्प हो गया था। गैर-आवश्यक व्यवसाय और सेवाएं बंद हो गयी थी और शैक्षिक संस्थान बंद हो गए। वर्क फ्राम होम एसओपी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर, 2020पीपीई (पर्सन प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट) जूम मीटिंग आदि जैसे वाक्यांश प्रचलित हो गए तथापि कोरोना महामारी के विरुद्ध वैज्ञानिकों ने रिकार्ड समय में एक प्रभावी वैक्सीन विकसित कर इस दिशा में प्रगति की और आज विकसित देशों में लोग इस वैक्सीन का प्रयोग कर रहे हैं हालांकि यह विषाणु म्यूटेट होकर अधिक संक्रमणकारी और घातक बनता जा रहा है। विश्व के विभिन्न देशों में कोरोना का वैक्सीन बनाने की होड़ लगी हुई है। दूसरी ओर हम भारतीय विरोध प्रदर्शन और आंदोलनों को पसंद करते हैं। इस वर्ष के आरंभ और अंत दोनों में आंदोलन और धरने देखने को मिले। नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर, आदि को लेकर विरोध प्रदर्शन दो माह से अधिक समय तक चला और देश की राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग में मुसलमानों द्वारा दो माह से अधिक समय तक चलाए गए विरोध प्रदर्शन के कारण लोगों को भारी असुविधा हुई। उस मार्ग पर यातायात जाम मिला, स्थानीय दुकानें बंद करनी पड़ी। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू और केरल के कुछ भागों में देशभक्त देशद्रोही बनकर हिंसा पर उतारू हुए। वर्ष के अंत में हजारों ट्रैक्टरों, ट्रकों और ट्रालियों के काफिले के साथ किसानों ने देश की राजधानी को एक माह से अधिक समय से घेर रखा है। उनकी मांग है कि तीन कृषि कानूनों को रदद किया जाए। सरकार और आंदोलनरत किसानों में विश्वास का अभाव है। आंदोलनरत किसानों को आशंका है कि उन्हें अब अपनी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा, मंडियां बंद कर दी जाएंगी, आढतियों को उनका कमीशन नहीं मिलेगा और उन्हें बडे औद्योगिक घरानों की दया पर निर्भर रहना पड़ेगा। सनत्जू ने अपनी पुस्तक द आर्ट ऑफ वार में लिखा है विजेता योद्धा पहले विजय प्राप्त करते हैं और फिर युद्ध करते हैं जबकि पराजित योद्धा पहले युद्ध लडते हैं और फिर विजय प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। किसानों और सरकार के बीच एक माह से अधिक समय से चले आ रहे गतिरोध में यही देखने को मिल रहा है। दोनों को पारस्परिक सहमति सुधारों पर स्वीकृति देनी होगी क्योंकि देश की राजधानी का लंबे समय तक घेरा डालने से किसी भी पक्ष को लाभ नहीं होगा। यह सच है कि किसानों की अपनी वास्तविक शिकायतें हों किंतु सरकार ने अब तक 40 किसान संगठनों के नेताओं से छह दौर की बातचीत कर उनमें विश्वास जताया है और उनके समक्ष अनेक संशोधनों की पेशकश की है। प्रधानमंत्री मोदी ने पुन: पहल कर किसानों का आह्वान किया है कि वे वार्ता के लिए आएं क्योंकि सरकार इस समस्या का तार्किक समाधान ढूंढना चाहती है।
लोकतंत्र में कानूनों में खामियां हो सकती हैं, सरकार भगवान नहीं है। किंतु अनिश्चितकाल के लिए आंदोलन जारी रखना भी उचित नहीं है। अब गेंद किसानों के पाले में है। इस महामारी ने भारत के आर्थिक संकट को भी उजागर किया है। आर्थिक वृद्धि में 15 से 25 प्रतिशत की गिरावट आयी है। जबकि ठीक एक वर्ष पूर्व तक भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व में सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था का दर्जा प्राप्त था। महामारी पर नियंत्रण के बाद मांग में तेजी आने के बावजूद भी उच्च लोक ऋण जैसे ढांचागत मुद्दों के कारण आगामी वर्ष में भी सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में गिरावट आने की संभावना जारी रहेगी। महिला सुरक्षा के बारे में इस वर्ष में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला। 16 दिसंबर 2012 को निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले से लेकर हाथरस में 19 वर्षीय दलित किशोरी के साथ उच्च जाति के चार युवकों द्वारा बलात्कार और उसकी हत्या तक लगता है कुछ भी नहीं बदला है। राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के अनुसार देश में प्रति वर्ष यौन हमलों के 39 हजार मामले दर्ज होते हैं। प्रत्येक एक मिनट में बलात्कार के पांच मामले होते हैं और प्रत्येक घंटे में एक महिला की हत्या होती है। महिलाओं के लिए असुरक्षित देशों की श्रेणी में संयुक्त राष्ट्र के सर्वेक्षण में भारत 121 देशों में से 85वें स्थान पर है। यहां पर प्रति 10 हजार महिलाओं में से 6.21 महिलाओं के साथ बलात्कार होता है। समय आ गया है कि हम इस बारे में सोचें कि आखिर ये बलात्कार कब तक चलेंगे।
दूसरी ओर भारत में धर्म को लेकर एक नए अवतार में संघर्ष जारी है। लव जिहाद एक आसान राजनीतिक हथियार बन गया है जिसकी सहायता से भाजपा केन्द्र और अनेक राज्यों में सत्ता में आयी है और उसे हिन्दुओं के वोट मिलने में सहायता मिली है। जहां पर अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक इश्क, मुहब्बत और शादी को जबरन धर्म परिवर्तन के रूप में देखा जाने लगा और भाजपा शासित पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक और असम ने लव जिहाद के विरुद्ध कठोर कानून बनाए हैं। हम वर्ष 2021 में प्रवेश करने वाले हैं। कोरोना महामारी का प्रकोप अभी भी जारी है। कोरोना के बढते मामले अभी भी चुनौती का विषय बने हुए हैं। 2020 की उथल-पुथल 2021 में भी जारी रहने की संभावना है और इसके प्रति हमें सही इरादों, सही प्राधिकारों और आशा का दृष्टिकोण अपनाना होगा। यह महामारी कब और कैसे समाप्त होगी, इस बारे में कोई कुछ नहीं जानता। हर कोई इससे भयभीत है। नि:संदेह हमारा जीवन अब पहले की तरह नहीं रहेगा किंतु हमें इस बात पर ध्यान देना हेगा कि हम नई परिस्थितियों से किस तरह सामंजस्य स्थापित करें। यह आसान नहीं है किंतु हमारे समक्ष कोई विकल्प नहीं है। शायद विद्यमान वैश्विक व्यवस्था इन चुनौतियों का सामना कर पाए। समय आ गया है कि हम पुराने बुनियादी सिद्धान्तों को अपनाएं, सादा जीवन और न्यूनतम आवश्यकताओं को अपनी आदतों में ढालें, अपने दृष्टिकोण को अधिक मानवीय बनाएं और विश्व को आशा की नई किरणों के साथ देखें।

-पूनम आई कौशिश

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