केंद्र सरकार ने कोविड-19 की वैक्सीन 2021 की शुरूआत में आने की बात कही है। अमेरिका से करीब चार गुना अधिक जनसंख्या होने के बावजूद देश में मृत्यु व मरीजों की गिनती अन्य देशों के मुकाबले कम हैं। मरीजों की गिनती कम होने में मास्क पहनने, सामाजिक दूरी व आयुर्वेदिक काढ़े की महत्वपूर्ण भूमिका रहा है। देश के अधिकतर लोगों ने मास्क पहनकर कोरोना के संक्रमण को बढ़ने से रोका, वहीं वैक्सीन का इंतजार में बैठकर बीमारी से नहीं बचा जा सकता। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि 1920 के दशक की बीमारी को रोकने के लिए मास्क ने अहम भूमिका निभाई थी। उस वक्त की बीमारी की वैक्सीन 20 वर्षों बाद आई थी। अब तो प्रचार करने के माध्यम भी ज्यादा है, सरलता से जागरूकता अधिक से अधिक लोगों तक फैलाई जा सकती है।
इस बात को स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए कि कोरोना महामारी को रोकने में मास्क एक सुरक्षा कवच साबित हो रहा है। लोग नियमों के साथ निरंतर मास्क पहन रहे हैं। मास्क के प्रति जागरूकता व प्रमाण यह है कि अब तो कपड़ों के साथ मास्क की मैचिंग का ट्रेंड शुरू हो गया है। इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि नवविवाहित जोड़े भी मास्क पहन कर वैवाहित परंपराओं को पूरा कर रहे हैं। बस, लापरवाही छोड़कर मास्क की महत्वता को समझना चाहिए। सभी प्रकार के कारोबार व अनावश्यक काम मास्क पहनकर पूरे किए जा सकते हैं। संसद व विधान सभाओं के सत्र भी मास्क और सामाजिक दूरी के साथ संपन्न हुए हैं। बिहार में विधान सभा चुनावों का भी ऐलान हो गया है। इन परिस्थितियों में लोगों को समझना होगा कि मास्क व अन्य नियमों की पालना जीवन का अभिन्न अंग होनी चाहिए।
लापरवाही करना जीवन के साथ खिलवाड़ है। बेहतर होगा यदि लोगों के चुने हुए नुमायंदे, अधिकारी व समाज के गणमान्य लोग कोरोना नियमों के पालन करने के लिए मिसाल बनें। पिछले कुछ दिनों से जिस प्रकार कोरोना मरीजों की गिनती कम हुई है, वह एक अच्छा संकेत है। टेस्ट करने की गिनती भी निरंतर बढ़ रही है। स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि सरकारों की जिम्मेदारी है, लेकिन इससे ज्यादा जरूरी सावधानी है। यदि सावधान होकर लोग बीमारी से बच जाएं तब यह सस्ती व सरल विधि है।
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