कोरोनारूपी महामारी एवं महाप्रकोप से जुड़ी हर मुश्किल घड़ी का सामना हमने भले ही मुस्कुराते हुए किया, लेकिन जाता हुआ कोरोना अधिक रूला रहा है, अधिक दुर्गम सार्वजनिक चुनौती बन रहा है। कोरोना को लेकर सरकारी घोषणा एवं आकलन भी चुनावी घोषणा पत्र की तरह लगने लगे हैं। भारत में जब कोरोना के मामलें नगण्य थे, सरकारें बहुत जागरूक थी, जब मामले चरम पर थे, सरकारें निस्तेज हो गयी थी, यह कैसी विडम्बना एवं विरोधाभास है? देश की राजधानी दिल्ली अभी कोरोना और प्रदूषण की दोहरी मार से पस्त है। एक तरफ कोरोना इस सप्ताह नए-नए रेकॉर्ड बना रहा है तो दूसरी तरफ प्रदूषण पर भी रेड अलर्ट जैसी स्थिति पैदा हो गई है।
इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के महानिदेशक बलराम भार्गव ने सितम्बर के मध्य में कहा था कि हमने कोरोना कर्व को इस तरह संभाला है कि हमारे यहां बड़े चरम की स्थिति बिल्कुल नहीं है। यह बयान भले ही एक राजनीतिक बयान नहीं है, भले ही इसे आत्मविश्वास के लिये दिया गया बयान कहा गया हो, लेकिन यह ज्यादा आत्मविश्वास को दशार्ता है, अतिशयोक्तिपूर्ण प्रतीत होता है क्योंकि अकेले दिल्ली में गत बुधवार को 5,673 एवं गुरुवार को 5,739 नए कोविड मरीज सामने आए। इन आंकड़ों के मध्य यह चर्चा होने लगी कि क्या दिल्ली में कोरोना की तीसरी लहर चल पड़ी है, क्या यह कोरोना के प्रति उदासीनता के कारण पनप रही भीषण लहर है, क्या यह बढ़ रहे वायु-प्रदूषण की निष्पत्ति है?
चिंता की बात यह है कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर भी नित नए रिकॉर्ड बना रहा है, हवा जहरीली हो गई और वायु गुणवत्ता सूचकांक का आंकड़े तो किसी का भी रोआं खड़ा कर देने वाले हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार दिल्ली की हवा अभी इतनी जहरीली हो चुकी है कि सांस संबंधी नई-नई बीमारियों का बहुत गंभीर खतरा हो गया है और यह कोरोना महामारी के पुन: पनपने का बडा कारण बन रहा है। बहरहाल, ध्यान रहे कि कोरोना वायरस भी इंसान के श्वसनतंत्र को ही प्रभावित करता है। ऐसे में अगर प्रदूषण के कारण किसी व्यक्ति का श्वसनतंत्र कमजोर हुआ तो कोविड-19 महामारी होने की स्थिति में उसके जान पर खतरा कई गुना बढ़ जाता है क्योंकि महामारी से उसकी लड़ने की क्षमता बिल्कुल कम हो जाती है।
दिल्ली के आसमान पर प्रदूषण की जहरीली धुंध जानलेवा साबित हो रही है, कोरोना वायरस सांसों में प्रवेश कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर हवा में प्रदूषण की मात्रा के आंकड़े डराने वाले हैं। याद कीजिए बीता साल जब दिल्ली में सांसों का लेना मुश्किल हो गया था, स्कूल बंद हो गए थे और शहर की रफ्तार थम सी गई थी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि कोरोना काल में प्रदूषण की ये आहट ज्यादा किसे भयावह बनाती है? कोरोना को या फिर जहर भरी उस हवा को जिसे हम प्रदूषण कहते हैं और जिसे बीते 5 साल से सरकारें, न्यायपालिका रोकने के लिए हाथ-पैर मार रही हैं, लेकिन कोई कारगर उपाय नहीं कर पायी है। पूरे उत्तर भारत में हवा की गुणवत्ता खराब हो रही है।
सर्दियों की शुरूआत में तापमान गिरा है और हवा की गति कम हुई है। इसके साथ ही दिल्ली के आसपास के इलाकों में पराली जलाये जाने से स्थिति बदतर होती जा रही है। पर्यावरणविद और एनसीआर की पर्यावरण प्रदूषण प्राधिकरण की सदस्य सुनीता नारायण बताती हैं, मैं इस साल बहुत डरी हुई हूँ। कोविड-19 के साथ ये दोहरी मार हो सकती है क्योंकि वायरस हमारे फेफड़ों पर उसी तरह हमला करता है, जैसे हवा में प्रदूषण। इसलिए हमें प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। वे कहती हैं, दिल्ली, हरियाणा, यूपी, पंजाब या राजस्थान में हमारे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बहुत कमजोर हैं, इनके पास बहुत सीमित कर्मचारी हैं, इसलिए इनकी क्षमता बहुत कम है। हमें इन संस्थानों को सशक्त बनाने की जरूरत है।
निराशाजनक स्थिति यह भी है कि दिल्ली में प्रदूषण के साथ-साथ गन्दगी भी कोरोना के लिये खतरा बनी हुई है। यहां सफाई के नाम पर बार-बार राजनीति हो रही है। ऐसा भी देखने में आ रहा है कि आम जनजीवन से जुड़ा यह मुद्दा भी राजनीति का शिकार है। दिल्ली सरकार केन्द्र को दोषी मानती है तो केन्द्र दिल्ली सरकार की अक्षमता को उजागर करती है, पिसती है दिल्ली की जनता। लेकिन कब तक? यही वजह है कि दिल्ली हाई कोर्ट को स्वयं इस मामले में कई बार हस्तक्षेप करना पड़ा है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि स्वच्छता और स्वास्थ्य एक-दूसरे से सीधे जुड़े हुए हैं।
नरेन्द्र मोदी ने धूल-मिट्टी को साफ करने के लिए झाडू उठाकर स्वच्छ भारत अभियान को पूरे राष्ट्र के लिए एक जन-आंदोलन का रूप दिया और कहा कि लोगों को न तो स्वयं गंदगी फैलानी चाहिए और न ही किसी और को फैलाने देना चाहिए। उन्होंने न गंदगी करेंगे, न करने देंगे। का मंत्र भी दिया। लेकिन दिल्ली में सफाई का जिम्मा तो भाजपा के पास है, फिर उसकी कथनी-करनी में अन्तर क्यों? कचरा बनी देश की राजधानी एवं प्रमुख शहरों में लोग टूटती सांसों की गिरफ्त में कब तक जीते रहे हैं? सुधार की, नैतिकता की बात कोई सुनता नहीं है। दूर-दूर तक कहीं रोशनी नहीं दिख रही है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री दिल्ली की जानलेवा समस्याओं पर रेडिया-टीवी एवं समाचार पत्रों में विज्ञापन के अलावा क्या कारगर उपाय कर रहे हैं, क्योंकि जानलेवा वायु प्रदूषण के शिकार लोग अपने घरों तक में सुरक्षित नहीं है। जल निकासी की माकूल व्यवस्था न होना शहर में जल भराव का स्थायी कारण बनता रहा है, वह भी जानलेवा होकर। शहर के लिए सड़क चाहिए, बिजली चाहिए, जल चाहिए, मकान चाहिए और दफ्तर चाहिए। इन सबके लिए या तो खेत होम हो रहे हैं या फिर जंगल। जंगल को हजम करने की चाल में पेड़, जंगली जानवर, पारंपरिक जल स्रोत सभी कुछ नष्ट हो रहा है। यह वह नुकसान है जिसका हजार्ना संभव नहीं है और यही वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है।
कोरोना महामारी एक सबक है शासन व्यवस्थाओं को चुस्त-दुरस्त होने का, जीवनशैली को बदलने का, पर्यावरण एवं प्रकृति के प्रति जागरूक होने का। शरीर, मन, आत्मा एवं प्रकृति के प्रति सचेत रहने का। हर कोई अपना और अपनों का ध्यान रखें। स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। अच्छा सोचें। दूसरों को माफ करें। दूसरों की मदद करें। खुद पर भरोसा रखें। नियमित ध्यान और स्वाध्याय करें। समभाव और सहजभाव में रहना सीखें। प्रकृति, पर्यावरण एवं आसपास को साफ-सुथरा रखें। यही वह क्षण है जिसे हमें समझना हैं, पकड़ना हैं और जीना हैं।
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