सतगुरू जीवों को जन्म-मरण के चक्कर से आजाद करने के लिए अवतार धारण करते हैं। गुरुमंत्र (नाम शब्द) की अनमोल दात प्रदान कर वह जीवों का दोनों जहानों में कल्याण करते हैं। उनकी नजर मेहर जहां पड़ जाए वह जीव को बेअंत खुशियां बख्श देती है। जीवों के जन्म मरण को खत्म करने वाला सतगुरू जन्म मरण से आजाद होता है व हमेशा रहता है परंतु पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने रूहानियत के इतिहास में एक नई मिसाल पैदा की। आप जी ने ‘‘हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे।’’ भाव शाह मस्ताना जी व पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रूप में भी हम (पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी महाराज) ही काम करेंगे। संतों को प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए देह का त्याग तो करना ही पड़ता है लेकिन वह सतगुरू हमेशा अपने वचनों अनुसार जीव के साथ होता है। सतगुरू के परोपकारों व नूरी मुख की कशिश जीव के दिल में अथाह मोहब्बत पैदा करती है। 13 दिसंबर 1991 को डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने अपने पंच भौतिक शरीर को बदला।
पूज्य परम पिता जी ने अपना पंच भौतिक शरीर बदलने से 15 माह पूर्व डेरा सच्चा सौदा की बागडोर पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र कर-कमलों में थमा दी। दोनों पातशाहियों ने इकट्ठे स्टेज पर बिराजमान होना, पूज्य हजूर पिता जी द्वारा पूज्य परम पिता जी का हर पल उनकी सेवा को समर्पित करना, साध-संगत के लिए इलाही नजारा था। भले ही सतगुुरू की शारीरिक रूप से जुदाई असहनीय है, लेकिन पूज्य हजूर पिता जी के रूप में साध-संगत को आंतरिक रूप से ऐसी मजबूती मिली कि साध-संगत अपने सतगुरू को हाजर-नाजर देख रही है।
















