डी-कन्ट्रोल हुई तेल कीमतें

Petrol and Diesel Price

अंतरराष्ट्रीय मार्केट में तेल की कीमतों में हुई बढ़ोत्तरी के बावजूद देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें स्थिर चल रही हैं। पिछले 125 दिनों से तेल कीमतों में कोई बदलाव नहीं दिखाई दे रहे हालांकि कच्चे तेल की कीमतें 132 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई हैं। चाहे तेल कीमतें आज भी उच्च स्तर पर हैं, लेकिन फिर भी लोग इतने संतुष्ट जरूर हैं कि तेल की कीमतें और नहीं बढ़ रही। दरअसल यह केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा लिए गए निर्णय का ही परिणाम है कि कच्चे तेल की कीमतों में फेर बदल के बावजूद देश में तेल की कीमतों पर कंट्रोल किया गया है। लेकिन यह कंट्रोल तब तक ही किया गया था, जब तक पेट्रोल की कीमत 110 रूपये और डीजल की कीमत 90 रूपये प्रति लीटर पहुंच गई थी। तेल कीमतों के डी-कंट्रोल सिस्टम के बावजूद केन्द्र और राज्य सरकारों ने टैक्सों में कटौती कर लोगों को राहत प्रदान की।

अब नई समस्या रूस और यूके्रन के बीच चल रहे युद्ध को लेकर पैदा हो गई है, जिससे कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आ गया है। आमजन को भी इस बात की पूरी समझ है कि जब कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी होगी तब देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें तो बढेगी ही। खासकर तेल उत्पादक देशों में युद्ध होने के कारण तेल की कीमतों में प्रभाव दिखाई देना स्वभाविक ही है। यही कारण है कि देश में तेल स्टोर करने के लिए लोगों में होड़ मची हुई है और पेट्रोल पंपों पर तेल खरीदने वालों की लम्बी लाईनें लग गई हैं। वहीं दूसरी तरफ लोगों में यह भी भय पाया जा रहा है कि तेल की कीमतें बढ़ने के साथ-साथ तेल की सप्लाई भी न कम हो जाए। इसी तरह लोगों को यह भी हमेशा रहता है कि चुनावों के बाद महंगाई बढ़ती ही बढ़ती है। इसे लेकर चाहे केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने स्पष्टीकरण दिया है कि तेल कीमतों के बारे में किसी भी निर्णय को चुनावों के साथ न जोड़ा जाए। उन्होंने दलील दी है कि तेल कीमतों का निर्णय तेल कंपनियों ने ही लेना है।

फिर भी सरकार इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकती कि महंगाई को कंट्रोल में रखने के लिए सरकार को अपने स्तर पर निर्णय लेने के लिए तैयार रहना होगा। डी-कंट्रोलिंग सिस्टम के तहत कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से ही देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में भी विस्तार होगा लेकिन आम आदमी की आवश्यकताओं को मुख्य रखते केन्द्र और राज्य सरकारों को टैक्सों में कटौती के लिए तैयार रहना होगा, इसके अलावा कोई और हल भी नहीं है। इस बात में भी दम है कि जब सरकारें आम आदमी को राहत देने के लिए पैंशन और अन्य लोक भलाई की योजनाएं शुरू करती हैं तब तेल की कीमतों में अनावश्यक बढ़ोत्तरी के पीछे कोई तर्क नहीं हो सकता। तेल कीमतों में बढ़ोत्तरी के साथ ट्रांसपोर्ट किराया बढ़ने से महंगाई बढ़ती है। इन परिस्थितियों में सरकार को कार्पोरेट घरानों पर टैक्स बढ़ाने का निर्णय लेना चाहिए। यही लोकराज की रीत होनी चाहिए।

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