Sachin Nag: पुलिस के लाठीचार्ज से बचने के लिए 10 वर्षीय सचिन गंगा में कूद पड़े और आज भारत के सबसे बड़ा तैराक

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Sachin Nag: पुलिस के लाठीचार्ज से बचने के लिए 10 वर्षीय सचिन गंगा में कूद पड़े और आज भारत के सबसे बड़ा तैराक

Indian swimmer Sachin Nag: नई दिल्ली। तैराकी भारत की प्राचीन परंपरा का हिस्सा रही है, लेकिन आधुनिक युग में इसे एक प्रतिस्पर्धी खेल के रूप में पहचान दिलाने वाले व्यक्तित्वों में सचिन नाग का नाम सबसे अग्रणी है। वह पहले भारतीय तैराक थे, जिन्होंने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया। Sachin Nag

सचिन नाग का जन्म 5 जुलाई 1920 को वाराणसी में हुआ था। गंगा के तट पर स्थित इस नगर में जन्म लेने के कारण उनका झुकाव स्वाभाविक रूप से तैराकी की ओर था। किंतु खेल के रूप में तैराकी में उनका प्रवेश एक संयोग मात्र था। वर्ष 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गंगा घाट पर एक रैली के दौरान जब पुलिस ने लाठीचार्ज किया, तो 10 वर्षीय सचिन स्वयं को बचाने के लिए गंगा में कूद पड़े और तेज़ी से तैरते हुए बाहर निकल गए। उसी समय वहाँ तैराकी की एक प्रतिस्पर्धा चल रही थी, जिसमें भाग लेने वालों में वे भी शामिल हो गए और 10 किलोमीटर की उस दौड़ में तीसरे स्थान पर आ गए। यहीं से उनके तैराकी जीवन की शुरुआत हुई।

1930 से 1936 के बीच सचिन नाग ने अनेक स्थानीय प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। उनकी योग्यता से प्रभावित होकर प्रख्यात कोच जामिनी दास ने उन्हें कोलकाता बुलाकर प्रशिक्षण देना शुरू किया। हाटखोला क्लब से जुड़कर उन्होंने राज्य स्तर पर प्रतियोगिताओं में भाग लेना आरंभ किया। Sachin Nag

1938 में उन्होंने 100 और 400 मीटर फ्रीस्टाइल में जीत हासिल की। 1939 में 100 मीटर फ्रीस्टाइल का राष्ट्रीय रिकॉर्ड छुआ और 200 मीटर में नया रिकॉर्ड स्थापित किया। 1940 में दिलीप मित्रा द्वारा बनाए गए 100 मीटर फ्रीस्टाइल रिकॉर्ड को उन्होंने तोड़ा और लगातार नौ वर्षों तक राज्य स्तर पर विजेता बने रहे।

हालांकि, 1948 ओलंपिक में भाग लेने की उनकी राह आसान नहीं रही। 1947 में एक दुर्घटना में उन्हें गोली लग गई, और चिकित्सकों ने दो वर्षों तक तैरने से मना कर दिया। लेकिन दृढ़ संकल्प के साथ मात्र छह महीने में वे फिर तैयार हो गए। आर्थिक संसाधनों की कमी के बावजूद उन्होंने स्वयं प्रयास करके धन जुटाया। विख्यात गायक हेमंत मुखोपाध्याय ने भी उनके लिए एक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कर आर्थिक सहायता की। परिणामस्वरूप वे 1948 ओलंपिक में शामिल हुए और 100 मीटर फ्रीस्टाइल स्पर्धा में छठवां स्थान प्राप्त किया।

8 मार्च 1951 का दिन उनके जीवन का स्वर्णिम अध्याय बना। नई दिल्ली में आयोजित पहले एशियाई खेलों में उन्होंने 100 मीटर फ्रीस्टाइल में स्वर्ण पदक जीता। उस समय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू स्वयं दर्शकों में उपस्थित थे। नाग की जीत से प्रभावित होकर उन्होंने मंच पर जाकर उन्हें गले लगाया और अपनी जेब से गुलाब का फूल निकालकर उन्हें भेंट किया। सचिन नाग ने उसी एशियाई खेल में 4×100 मीटर और 3×100 मीटर फ्रीस्टाइल रिले में कांस्य पदक भी अपने नाम किए। वे 1952 ओलंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले दल का हिस्सा रहे।

दुर्भाग्यवश, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम ऊंचा करने वाले सचिन नाग जीवनभर आर्थिक संकट से जूझते रहे। 19 अगस्त 1987 को 67 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हुआ। उनके अतुलनीय योगदान को लंबे समय बाद 2020 में केंद्र सरकार ने मान्यता दी और मरणोपरांत उन्हें ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित किया। Sachin Nag