Haryana weather: हिसार (संदीप सिंहमार)। भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार मौसम केंद्र ने 10 जिलों में तेज बारिश के आसार जताए हैं। इनमें सिरसा, हिसार, भिवानी, चरखी दादरी, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, गुरुग्राम, मेवात, फरीदाबाद और पलवल शामिल हैं। इसके अलावा फतेहाबाद, जींद, रोहतक, झज्जर, अंबाला, यमुनानगर और पंचकूला के कुछ हिस्सों में बारिश की संभावना है। वहीं, कैथल, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत और सोनीपत के भी कुछ हिस्सों में बूंदाबांदी हो सकती है, जबकि पूरे दिन बादल छाए रहेंगे। आज के बाद अगले 2 दिन मौसम साफ रहने के आसार हैं। गुरुवार को भी भिवानी, महेंद्रगढ़, जींद, चरखी दादरी और नूंह में तेज बारिश हुई, जबकि, यमुनानगर में बूंदाबांदी हुई थी।
बारिश के दिनों में समझदारी से करें धान की खेती | Haryana weather
धान की खेती भारतीय कृषि का एक अभिन्न हिस्सा है। हर साल मानसून के आगमन के साथ ही किसान अपनी खेतों में धान की रोपाई करने के लिए तैयार होते हैं। इस साल भी, बारिश के अनुकूल मौसम ने धान की फसल की रोपाई को बढ़ावा दिया है। हालांकि, धान की खेती की सफलता का बड़ा हिस्सा अच्छे पौध तैयार करने के लिए बीज के चुनाव पर निर्भर करता है। हम अच्छी किस्म के बीज के चयन के महत्व को समझेंगे, साथ ही कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी चर्चा करेंगे, जैसे कि बारिश के पानी से फसल का संरक्षण, ज्यादा पानी के प्रभाव, और खरपतवार नियंत्रण के उपाय।
अच्छी किस्म के पौध का महत्व
एक सफल कृषि उत्पादन के लिए पौध/बीज का चयन सबसे महत्वपूर्ण कदम है। अच्छे बीज न केवल उच्च उत्पादन सुनिश्चित करते हैं, अपितु वे फसल को विभिन्न रोगों और कीटों से भी सुरक्षित रखते हैं। बीज की किस्म का चयन करते समय किसानों को कई कारकों पर विचार करना चाहिए, जैसे कि स्थानीय जलवायु, मिट्टी की प्रकृति, और बीज की उच्चता, प्रतिरोधक क्षमता, और उत्पादन क्षमता। धान की कई किस्में उपलब्ध हैं, जैसे कि बासमती, लोकल, और हाइब्रिड बीज। हाइब्रिड बीज सामान्यतः अधिक उत्पादन करते हैं, लेकिन इन्हें विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, कुछ पारंपरिक किस्में कम उत्पादन कर सकती हैं, लेकिन वे अपने स्थानीय वातावरण में अधिक अच्छी तरह से अनुकूलित होती हैं। इसीलिए, स्थानीय किसानों को अपने क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्मों का चयन करना आवश्यक है।
बारिश का प्रभाव और फसल का बचाव
मानसून के दौरान बारिश का पानी खेतों में भरा रहने पर फसल को न केवल लाभ होता है, बल्कि नुकसान भी हो सकता है। अगर पानी का स्तर अत्यधिक हो जाता है, तो यह जड़ों के सड़ने और पौधों में ऑक्सीजन की कमी का कारण बन सकता है। इस स्थिति से बचने के लिए, किसानों को उचित जल निकासी प्रणाली बनानी चाहिए, ताकि खेत में अधिक पानी जमा न हो। भरे पानी से धान की फसल को बचाने के उपायों में बेहतर जल निकासी, पंक्तियों में पौधों की उचित दूरी, और जैविक तरीका से मिट्टी को ठोस बनाना शामिल हैं। ऐसे में, बुवाई से पहले खेत की उचित तैयारी करना अत्यंत आवश्यक है।
ज्यादा पानी का असर खतरनाक, बचाव करें | Haryana weather
अधिक पानी धान की फसल को नुकसान पहुँचा सकता है। यह पौधों की वृद्धि में रुकावट डाल सकता है और पत्तियों पर फंगस का विकास कर सकता है। इसके अलावा, अधिक जलवायु परिवर्तन के कारण मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन भी प्रभावित होता है। यदि फसल में जलभराव लंबे समय तक बना रहता है, तो यह बीमारीयों को जन्म दे सकता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
खरपतवार नियंत्रण
मानसून की बारिश के दौरान, खेतों में खरपतवारों की वृद्धि में भी वृद्धि होती है, जो धान की फसल के विकास में बाधा डाल सकती है। खरपतवार केवल पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं करते हैं, बल्कि वे कीटों के लिए भी आश्रय बन सकते हैं। खरपतवारों से बचाव के लिए कृषक कई उपाय कर सकते हैं। इनमें तुलना में, शारीरिक विधियाँ जैसे कि हाथ से सुखाने और निराई-गुड़ाई, तथा रासायनिक उपाय जैसे कि उर्वरक स्प्रे करना शामिल हैं। उचित जलवायु प्रबंधन और उर्वरक का सही उपयोग भी खरपतवारों की वृद्धि को नियंत्रित करने में सहायक हो सकता है। नाजुक अवस्था में पौधों की देखभाल करना, उन्हें पर्याप्त सूरज और संपूर्ण पोषण प्रदान करना भी महत्वपूर्ण है।
धान की खेती में बारिश के दिनों में समय पर की गई बिजाई सफलता का मुख्य आधार है। इसके साथ ही, बारिश के पानी से खेतों की सुरक्षा करना, ज्यादा पानी के नकारात्मक प्रभावों से बचाव, और खरपतवारों को नियंत्रित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। ऐसे में, किसानों के लिए न केवल सही बीज का चयन करना आवश्यक है, बल्कि एक समग्र प्रबंधन दृष्टिकोण अपनाना भी आवश्यक है, ताकि फसल का उत्पादन सर्वोत्तम तरीके से हो सके। इस प्रकार, एक सटीक योजना और अच्छे कृषि प्रबंधन से किसान अधिक पैदावार हासिल कर सकते हैं।