Haryana: रोहनात। आज़ादी के बाद पूरे देश में हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा लहराया जाता रहा, लेकिन हरियाणा का एक गाँव ऐसा भी था जहाँ 71 साल तक राष्ट्रीय ध्वज फहराया ही नहीं गया। यह गाँव है भिवानी जिले का रोहनात, जिसकी मिट्टी आज भी 1857 की क्रांति की शहादत और बलिदानों की गवाही देती है।
क्यों नहीं फहराया गया तिरंगा? Haryana
दरअसल, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में रोहनात के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ जमकर मोर्चा खोला था। ग्रामीणों ने ब्रिटिश हुकूमत का डटकर विरोध किया। इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजों ने गाँव को बुरी तरह नेस्तनाबूद कर दिया। गाँव की ज़मीन जब्त कर नीलाम कर दी गई। कई लोगों को फांसी पर चढ़ा दिया गया। महिलाओं ने अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए कुएँ में छलांग लगा दी।
यहाँ तक कि गाँव के कुएँ को भी मिट्टी से भर दिया गया।
अंग्रेजों ने ग्रामीणों से माफी माँगने और झुकने की शर्त रखी, लेकिन गाँव वालों ने हार नहीं मानी। नतीजतन, आज़ादी के बाद भी उनकी ज़मीन और सम्मान पूरी तरह वापस नहीं मिल पाया। इसी पीड़ा और अन्याय के कारण रोहनात ने आज़ादी के बाद 71 साल तक तिरंगा न फहराने का निर्णय लिया।
2018 का ऐतिहासिक पल | Haryana
लंबे इंतजार और संघर्ष के बाद, 23 मार्च 2018 को पहली बार रोहनात में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया। उस दिन गाँव में जश्न का माहौल था। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएँ – सभी ने मिलकर वह पल देखा जिसका इंतजार पीढ़ियों से था।
तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर खुद इस ऐतिहासिक मौके पर पहुँचे और तिरंगे को गाँव की धरती पर शान से लहराया। इसके साथ ही सरकार ने गाँव में विकास कार्यों और सुविधाओं की घोषणा भी की।
गाँववालों की भावनाएँ
गाँव के बुजुर्गों के अनुसार – “71 साल तक हम सिर्फ इसलिए तिरंगा नहीं फहरा पाए क्योंकि हमें न्याय नहीं मिला था। अंग्रेजों ने हमारी ज़मीन छीन ली और हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी उस दर्द का बोझ उठाना पड़ा। लेकिन जब तिरंगा लहराया, तो लगा कि बलिदान व्यर्थ नहीं गए।” युवाओं का कहना है कि अब वे चाहते हैं कि रोहनात को पूरे देश में “शहीदों का गाँव” के नाम से जाना जाए और उनके पूर्वजों की कुर्बानियों को सही पहचान मिले।
अधूरा सपना
हालांकि तिरंगे के फहरने से गाँव में नई उम्मीद जरूर जगी, लेकिन ग्रामीणों की कई माँगें अब भी अधूरी हैं। वे चाहते हैं कि अंग्रेजों द्वारा छीनी गई ज़मीन वापस मिले और गाँव के शहीदों की स्मृति में राष्ट्रीय स्तर पर स्मारक बने।
रोहनात सिर्फ एक गाँव की कहानी नहीं है, बल्कि यह भारत की स्वतंत्रता यात्रा का वह पन्ना है जो आज भी अधूरा है। 71 साल तक तिरंगे की गैरमौजूदगी ने इस गाँव को पीड़ा दी, लेकिन जब आखिरकार तिरंगा लहराया, तो यह गर्व और बलिदान दोनों का प्रतीक बन गया।