Chaudhary Charan Singh: भारतीय राजनीति में 1979 का वह दौर विशेष है, जब चौधरी चरण सिंह ने 28 जुलाई को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और मात्र 23 दिनों बाद, 20 अगस्त को इस्तीफा दे दिया। उनका जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ के नूरपुर गांव में एक जाट किसान परिवार में हुआ। आगरा विश्वविद्यालय से विज्ञान, इतिहास और कानून की पढ़ाई पूरी करने वाले चरण सिंह स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे। 1930 में नमक कानून तोड़ने और 1940-42 में आंदोलनों के लिए उन्हें जेल हुई।
सादगी और नैतिकता उनके व्यक्तित्व की पहचान थी। किसानों का चैंपियन कहलाने वाले चरण सिंह ने उत्तर प्रदेश में राजस्व मंत्री रहते 1952 का जमींदारी उन्मूलन कानून और 1953 का भूमि एकीकरण कानून लागू किया, जिससे किसानों को लाभ हुआ। उनकी ईमानदारी बेदाग थी और 2024 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न मिला। चरण सिंह ने 1950 के दशक में कांग्रेस से राजनीति शुरू की, लेकिन 1967 में भारतीय क्रांति दल बनाकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। गठबंधन टूटने से सरकार गिरी। 1970 में फिर मुख्यमंत्री बने, पर राष्ट्रपति शासन लगा। 1977 में जनता पार्टी की सरकार में वे गृह मंत्री रहे, फिर मोरारजी देसाई से मतभेद के बाद 1978 में इस्तीफा दिया। 1979 में जनता पार्टी में फूट पड़ी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दोहरी सदस्यता के विवाद ने मोरारजी को इस्तीफा देने पर मजबूर किया। इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई) के बाहरी समर्थन से चरण सिंह 28 जुलाई 1979 को 77 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बने। यशवंतराव चव्हाण उनके उप-प्रधानमंत्री थे।
चरण सिंह का कार्यकाल भारतीय इतिहास का सबसे छोटा रहा, जहां उन्होंने संसद में विश्वास मत का सामना नहीं किया। 15 अगस्त 1979 को उन्होंने लाल किले पर तिरंगा फहराया और राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा, उद्देश्य कितने भी नेक हों, साधन भी उतने ही नेक होने चाहिए। कोई बड़ा नीतिगत फैसला नहीं हो सका, क्योंकि सरकार अल्पमत में थी। इंदिरा गांधी ने समर्थन की शर्त रखी कि उनके और संजय गांधी के खिलाफ आपातकाल के मुकदमे वापस लिए जाएं। चरण सिंह ने इसे ब्लैकमेल मानकर मना किया। 19 अगस्त को कांग्रेस (आई) ने तटस्थ रहने की घोषणा की, जिससे बहुमत साबित करना असंभव हो गया। 20 अगस्त को चरण सिंह ने विश्वास मत से पहले इस्तीफा दे दिया। सरकार की अस्थिरता, गठबंधन की कमजोरी और साजिशों ने इसे केवल 23 दिन तक सीमित रखा।