Latur Earthquake History: 30 सितम्बर 1993 की तड़के चार बजे से कुछ पहले, जब अधिकांश लोग गहरी नींद में थे, तब धरती अचानक थर्रा उठी। महाराष्ट्र के लातूर ज़िले के किल्लारी गाँव और उसके आसपास के क्षेत्रों में 6.4 तीव्रता का भूकंप आया, जिसने देखते ही देखते सैकड़ों बस्तियों को खंडहर में बदल दिया। Latur Earthquake News
भूकंप का केंद्र किल्लारी के समीप, लगभग दस किलोमीटर की गहराई में था। लगातार आए तीन तीव्र झटकों ने पलभर में पक्के मकानों से लेकर झोपड़ियों तक को ध्वस्त कर दिया। खेतों की मेड़ें टूट गईं, सड़कें दरक गईं और चारों ओर चीख-पुकार गूँज उठी। उस दिन महाराष्ट्र में अनंत चतुर्दशी का पर्व था। गणेश विसर्जन की धूमधाम के बाद लोग थके-मांदे अपने घर लौटकर विश्राम में लीन हो गए थे। किसी को आभास भी न था कि उत्सव की वह रात अगली सुबह शोकगीत में बदल जाएगी।
इस आपदा की चपेट में लातूर और उस्मानाबाद (अब धाराशिव) जिलों के 50 से अधिक गाँव आए। औसा और उमरगा तहसीलें सबसे अधिक प्रभावित हुईं। सरकारी आँकड़ों के अनुसार लगभग आठ हज़ार लोगों ने प्राण गँवाए, जबकि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक मानी जाती है। सोलह हज़ार से अधिक लोग घायल हुए और असंख्य पशुधन भी मलबे में दबकर काल के ग्रास बने।
हज़ारों घर जमींदोज़ हो गए। किल्लारी जैसे कई गाँव तो मानो नक्शे से मिट गए। सुबह होते-होते हर ओर केवल मलबे के ढेर और शोकाकुल लोगों की आँखों से बहते आँसू दिखाई दे रहे थे। लोग अपने प्रियजनों को ढूँढते रहे, परंतु हाथ आया तो केवल सन्नाटा।
आज तीन दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी उस रात की स्मृति किल्लारी और आसपास के गाँवों के लोगों को कंपा देती है। जिन बच्चों ने उस भयावह त्रासदी को देखा था, वे आज जवान हो चुके हैं। उन्होंने जीवन को फिर से सँवारने का प्रयास किया है, किंतु उस आपदा का घाव समय के साथ भी पूरी तरह नहीं भर पाया। यह भूकंप केवल प्राकृतिक आपदा नहीं था, बल्कि मानव जीवन की नश्वरता और प्रकृति की अनियंत्रित शक्ति का गंभीर स्मरण भी है। Latur Earthquake History