Parmarthi Diwas 2025: सतगुरु के हुक्म में जिंदगी व्यतीत करना और हुक्म की पालना करते हुए सर्वस्व न्योछावर कर देना, किसी उच्च कोटि के गुरुमुख की निशानी होती है। उनकी जिंदगी समाज के लिए प्रेरणास्रोत बनती है। परोपकारी और परमात्मा के सच्चे भक्त पूजनीय बापू नंबरदार मग्घर सिंह जी (पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पिता ) पर अपने सच्चे मुर्शिद-ए-कामिल पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की बेअंत दया मेहर थी उन्होंने सारी जिंदगी अपने प्यारे सतगुरु के हुक्म में बिताई। पूजनीय बापू जी ने गुरुमुखता की महान मिसाल पेश की। Parmarthi Diwas
एक शिष्य सतगुरु की दया मेहर के समुद्र को किस तरह संभालता है, किस तरह अपने ज़ज्बातों को संभालता है, इसकी जीती जागती मिसाल थे पूजनीय बापू जी। श्रीगुरुसर मोडिया के आदरणीय संंत त्रिवेणी दास जी ने पूजनीय बापू जी को बहुत समय पहले ही बता दिया था कि उनके घर परमात्मा का भेजा हुआ कोई अवतार जन्म लेगा। त्रिवेणी दास जी ने यह भी बताया कि वह हस्ती थोड़ा समय ही उनके पास रहेगी और परमात्मा के हुक्मानुसार उस काम में जुट जाएगी, जिस काम के लिए परमात्मा ने उन्हें भेजा है। पूजनीय बापू जी ने परम पिता परमात्मा के इस भेद को जहाँ सालों तक अपने दिल में छिपाए रखा, वहीं अपनी इकलौती संतान के प्रति वैराग्य के समुद्र को भी दिल में संभाले रखा।
आपजी का जन्म वर्ष 1929 में गाँव श्री गुरूसर मोडिया, जिला श्री गंगानगर में पूज्य पिता श्री चित्ता सिंह और माता संत कौर जी के घर हुआ। आपजी के ताऊ जी के घर कोई संतान न होने के कारण आपजी को उन्होंने गोद लिया हुआ था, इसीलिए आपजी पूज्य ताऊ संता सिंह जी व माता चन्द कौर जी को ही अपने माता-पिता मानते थे।
बचपन से ही आप जी सद्गुणों से भरपूर थे और परमात्मा की भक्ति में लीन रहते थे। धार्मिक प्रवृत्ति होने के कारण भगवत गीता और जन्म साखी जैसे पवित्र ग्रंथ आप जी घर में ही रखते थे और समय मिलने पर पढ़ते रहते थे। आपजी ने पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज से गुरुमंत्र की अनमोल दात प्राप्त की। पूजनीय बापू जी मेहनती किसान थे और बहुत बड़े जमींदार होने के कारण आप जी के घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। आप जी का शुभ विवाह किक्करखेड़ा, तहसील अबोहर, जिला फाजिल्का के पूज्य श्री गुरदित्त सिंह जी और पूज्य माता जसमेल कौर जी की सुपुत्री नसीब कौर जी इन्सां के साथ हुआ। Parmarthi Diwas
पूजनीय बापू जी परमात्मा पर दृढ़ विश्वास रखते थे। आप जी का गांव के महात्मा त्रिवेणी दास जी के साथ भी बहुत प्रेम था। परमात्मा के प्रति विश्वास ही था कि घर में 18 वर्षों तक औलाद न होने के बावजूद आप जी को पूरा भरोसा था कि वह परमात्मा जरूर रहमत करेगा। वास्तव में पूजनीय बापू जी एक महान आत्मा थे, जिन्हें परमपिता परमात्मा ने सच्चे सतगुरु के अवतार धारण के लिए चुना था। संत जी अक्सर कहते थे कि आपके घर में कोई आम बच्चा जन्म नहीं लेगा बल्कि वह परमात्मा की भेजी हुई कोई महान हस्ती होगी, जो आपके पास 23 वर्षों तक रहेंगे और उसके बाद परमात्मा के हुक्म अनुसार अपने काम के लिए चले जाएंगे।
पूज्य बापू जी को इस बात का पूरा यकीन था, लेकिन उन्होंने इसकी भनक पूज्य माता नसीब कौर जी इन्सां को भी नहीं लगने दी और इस रहस्य को गुप्त रखा। पूज्य बापू जी ने सतगुरू हजूर पिता जी को बाल रूप से ही बेअंत प्रेम व प्यार दिया। जब पूज्य गुरू जी 12-13 वर्ष के थे तब भी पूजनीय बापू जी अपने लाडले को कन्धे पर बिठाकर चलते। आज के इस घोर कलियुग में कोई जिगर का टुकड़ा मांग ले तब बड़े-बड़ों के इरादे डोल जाते हैं, लेकिन पूज्य बापू जी और पूज्य माता जी के इस त्याग का उदाहरण इतिहास के पन्नों पर नई इबारत के साथ दर्ज हो गया। Parmarthi Diwas
विवाह के 18 वर्ष बाद प्राप्त हुई अपनी इकलौती सन्तान, जिसे बापू जी एक पल के लिए भी अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देते थे। ऐसे लाडले को उन्होंने परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के एक इशारे पर उनके सुपुर्द कर दिया। पूज्य परम पिता जी ने 23 सितम्बर 1990 को जब पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को पावन गुरगद्दी की बख्शीश की, तब पूजनीय बापू जी ने परम पिता जी से यही अर्ज की, कि हमारी जमीन-जायदाद भी ले लो, हमें तो डेरे में एक कमरा दे दो ताकि हम इनके (पूज्य गुरू जी) और आपजी के दर्शन करते रहें।
पूजनीय बापू जी ने सदा सादगी भरा जीवन व्यतीत किया। पूज्य गुरू जी को गुरुगद्दी की बख्शीश के बाद कई बड़े लोग पूजनीय बापू जी को मिलने के लिए आते तो वे आप जी की सादगी व शांत स्वभाव को देखकर बहुत प्रभावित होते। पूजनीय बापू जी दुनिया में अपने गुणों व नेक कार्यों के रंग बिखेरकर पांच अक्तूबर 2004 को कुल मालिक के चरणों में सचखंड जा विराजे। 10 अक्तूबर 2004 को पूज्य बापू जी की याद में श्रद्धांजलि स्वरूप श्रीगुरुसरमोडिया में रक्तदान कैंप लगाया गया जिसमें 17921 यूनिट रक्तदान हुआ जो गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड्स में भी दर्ज हुआ। अब भी हर वर्ष 5 अक्तूबर को पूज्य बापू जी की याद में रक्तदान शिविर लगाया जाता है। Parmarthi Diwas