Bihar Election Survey: इस सर्वे ने बिहार में सभी पार्टियों की उड़ा दी नींद, ये पार्टी बना सकती है सरकार, प्रशांत किशोर ने किया बड़ा उलटफेर

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Bihar Election Survey: इस सर्वे ने बिहार में सभी पार्टियों की उड़ा दी नींद, ये पार्टी बना सकती है सरकार, प्रशांत किशोर ने किया बड़ा उलटफेर

Bihar Election Survey:  पटना (एजेंसी)। बिहार चुनाव में सभी पार्टियों ने अपनी बिसात बिछा चुके हैं। सभी पार्टियों चुनावी अखाड़े में पहुंच चुकी है। पहले चरण की वोटिंग 6 नवंबर को होनी है। इस बीच सी-वोटर का सर्वे आया है। इस सर्वे में सभी पाटियों की नींद उड़ा दी है। सर्वे के अनुसार प्रशांत किशान ने धमाकेदार पारी का आगाज किया है। और सीएम की पसंद पर जनता ने उन्हें दूसरे स्थान पर ला दिया है। उन्हें 23.2% लोगों ने अपनी पसंद बताया है वहीं तेजस्वी यादव को 36.5 प्रतिशत लोगों की पसंद है। सीएम नीतीश कुमार को 15.9 प्रतिशत लोगों ने अपनी पसंद बताया है। वहीं भाजपा गठंबधन के सत्ता में लौटने की संभावना: 40% मतदाताओं का मानना है कि नीतीश-मोदी की जोड़ी फिर से सरकार बना सकती है। महागठबंधन को मौका: 38.3% लोग मानते हैं कि इस बार बिहार की कमान तेजस्वी यादव को मिल सकती है। जन सुराज की संभावनाएं: 13.3% लोगों ने माना कि प्रशांत किशोर की पार्टी तीसरी ताकत के रूप में उभर सकती है।

बिहार की सियासत में वर्ष 2020 में निर्दलीय उम्मीदवारों ने किया सबसे निराशाजनक प्रदर्शन

बिहार की सियासत में एक समय निर्दलीय विधायकों का बोलबाला हुआ करता था, लेकिन समय के साथ आम जनता का निर्दलीय उम्मीदवारों से मोहभंग हुआ और वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में इन विधायकों के जीतने का सबसे खराब रिकॉर्ड रहा जो महज एक सीट पर सिमट कर रह गया। वर्ष 2020 के हुये चुनाव में 1299 निर्दलीय प्रत्याशी ने विधायक बनने का सपना संजोये चुनाव लड़ा, लेकिन इनमें से एक ही विधायक बनने में सफल रहे। चकाई विधानसभा क्षेत्र में निर्दलीय सुमित कुमार सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की सावित्री देवी को 581 मतों के अंतर से पराजित किया था। श्री सिंह को 45548, वहीं सावित्री देवी को 44967 मत मिले। श्री सिंह नीतीश सरकार में अभी विज्ञान, प्रावैधिकी एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री हैं।

भारतीय चुनावी तंत्र में निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका हमेशा से एक महत्वपूर्ण और चर्चित विषय रहा है। ये उम्मीदवार, जो किसी भी राजनीतिक दल के बैनर तले नहीं लड़ते, अपने आप को चुनावी अखाड़े में उतरते हैं और विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर अपनी निष्पक्ष और स्वतंत्र राय रखते हैं। चुनाव से पूर्व, निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रमुख लक्ष्य होता है समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुंचना और उनके मुद्दों को समझना। वे अक्सर उन मुद्दों को उठाते हैं जो प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा उपेक्षित रहते हैं। इसके अलावा, वे राजनीति में नैतिकता और पारदर्शिता के प्रतीक के रूप में उभरते हैं।

वर्ष 1952 को बिहार में पहली बार हुये विधानसभा चुनाव में 638 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनावी दंगल में अपनी किस्मत आजमायी। इस चुनाव में 14 निर्दलीय प्रत्याशियों को जीत मिली। वर्ष 1957 के चुनाव मे 527 निर्दलीय प्रत्याशी विधायक बनने के इरादे से चुनावी संग्राम में उतरे, जिनमें 16 को सफलता मिली। वर्ष 1962 में 367 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनावी रणभूमि में अपनी किस्मत आजमायी, जिसमें 12 उम्मीदवारों को विधायक बनने का सौभाग्य मिला।वर्ष 1967 में 738 निर्दलीय प्रत्याशी ने अपना भाग्य आजमाया, जिसमें जीत का सेहरा 33 उम्मीदवारों के सिर सजा। इसी चुनाव में बिहार में सबसे ज्यादा निर्दलीय विधायक जीते थे।

वर्ष 1969 में हुये विधान सभा चुनाव में 426 निर्दलीय प्रत्याशी विधायक बनने के इरादे से चुनावी संग्राम मे उतरे, लेकिन 24 को ही विजय मिली। वर्ष 1972 में 579 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनावी रणभूमि में अपनी किस्मत आजमायी जिसमें केवल 17 को सफलता मिली।वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद हुये चुनाव में 2206 निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी समर में अपना भाग्य आजमाने के इरादे से उतरे। इस चुनाव में 24 विधायक बनने में सफल हुये।वर्ष 1980 में 1347 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनावी रणभूमि में अपनी किस्मत आजमायी, जिसमें 23 उम्मीदवारों को विधायक बनने का अवसर मिला। वर्ष 1985 में 2804 निर्दलीय प्रत्याशी विधायक बनने के इरादे से चुनावी संग्राम मे उतरे, जिनमें 29 को सफलता मिली।

वर्ष 1990 में 4320 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनावी दंगल में अपनी किस्मत आजमायी। इस चुनाव में 30 निर्दलीय प्रत्याशियों को जीत मिली। वहीं वर्ष 1995 में 5674 निर्दलीय प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमाया, जिसमें जीत का सेहरा केवल 12 उम्मीदवारों के सिर सजा। वर्ष 2000 में 1482 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनावी रणभूमि में अपनी किस्मत आजमायी जिसमें 20 को सफलता मिली। वर्ष 2000 में बिहार विभाजन के बाद हुए चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवारों के चुनाव जीतने की क्षमता में तेजी से गिरावट हुई है।वर्ष 2005 फरवरी के चुनाव में 1493 निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी अखाड़े में उतरे जिसमें 17 को जीत मिली।इस चुनाव में 122 सीटों का स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाने के कारण कोई भी गठबंधन सरकार नहीं बना पाया और कुछ समय के राष्ट्रपति शासन के बाद अक्टूबर-नवंबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुए।इस बार के चुनाव में 746 निर्दलीय प्रत्याशी विधायक बनने के इरादे से चुनावी संग्राम मे उतरे, जिनमें 10 को सफलता मिली।

वर्ष 2010 में 1342 निर्दलीय प्रत्याशी विधायक बनने के इरादे से चुनावी दंगल में उतरे लेकिन छह को ही विजय मिली। इसके बाद वर्ष 2015 में 1150 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनावी अखाड़े में अपनी किस्मत आजमायी। इस चुनाव में सिर्फ चार निर्दलीय प्रत्याशियों को ही जीत मिली। वर्ष 2020 में निर्दलीय विधायकों का आंकड़ा सिमट कर एक हो गया। हालांकि जुलाई 2024 में रूपौली विधानसभा सीट पर हुये उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह को मिली जीत के बाद बिहार विधानसभा में निर्दलीय विधायकों को आकड़ा बढ़कर दो हो गया।

चुनाव के बाद, निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, खासकर जब कोई भी पार्टी स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं कर पाती। ऐसे में, निर्दलीय उम्मीदवार सरकार गठन में किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं। वे समझौते की स्थिति में, सरकार के निर्माण या गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। निर्दलीय उम्मीदवार सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम करते हैं। हालांकि, निर्दलीय उम्मीदवारों को अपने अभियान और प्रचार में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। राजनीतिक दलों के समर्थन और संसाधनों के बिना, उन्हें अपनी पहचान बनाने और जनता तक पहुंचने में अधिक प्रयास करना पड़ता है। फिर भी, उनकी उपस्थिति और योगदान भारतीय राजनीति की विविधता और गतिशीलता को दर्शाता है। बिहार के सियासी इतिहास में निर्दलीय विधायकों के जीतने का सबसे खराब रिकॉर्ड 2020 के चुनाव में रहा है।देखना दिलचस्प होगा कि वर्ष 2025 में कितने निर्दलीय विधानसभा पहुंचने में सफल होते है।