
किसान वैज्ञानिक तरीके से करें चने की खेती, उत्पादन के साथ आमदनी में भी होगी बढ़ोतरी
डॉ. संदीप सिंहमार (सच कहूँ न्यूज़)। Gram Cultivation: चने की खेती भारत में रबी मौसम की प्रमुख दलहनी फसल है, जो उत्तरभारत में प्रमुखता से की जाती है। चना प्रोटीन और फाइबर का उत्कृष्ट स्रोत है। यह खेती कम लागत में की जा सकती है और अच्छी उपज से किसान भाइयों के लिए लाभकारी साबित होती है। चने की खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर के तीसरे सप्ताह से लेकर नवंबर के मध्य तक होता है।
इस दौरान बुवाई करने से फसल का बेहतर विकास होता है और रोग-कीटों का प्रकोप कम होता है। यदि सिंचाई की सुविधा हो तो बुवाई दिसंबर तक की जा सकती है, लेकिन देर से बुवाई में उपज कम होने के साथ कीट रोगों का खतरा बढ़ जाता है। असिंचित भूमि में मृदा में उपलब्ध नमी के आधार पर भी बुवाई की जा सकती है, किन्तु 15 नवंबर तक ही उपयुक्त माना जाता है।
मिट्टी और खेत की तैयारी
चने की खेती के लिए बलुई दोमट से लेकर मध्यम काली मिट्टी उपयुक्त होती है। खेत में पानी भराव नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे जड़ें सड़ सकती हैं। खेत की गहरी जुताई बरसात के बाद कर लें ताकि मृदा की नमी बनी रहे। बुवाई से पहले 2-3 बार हल्की जुताई कर खेत को समतल और भुरभुरी बनाना आवश्यक है। इसके पश्चात रोटेवेटर या हैरो से मिट्टी की पाटा लगाई जाती है जिससे बीज को नमी मिल सके।
बीज का चयन और उपचार | Gram Cultivation
बुवाई के लिए हमेशा रोग-कीट मुक्त, स्वस्थ, प्रमाणित बीज का चयन करना चाहिए जिसकी अंकुरण क्षमता अच्छी हो। बीज बोने से पहले उसका उपचार आवश्यक है ताकि जड़ गलन जैसे रोगों से बचाव हो सके। इसके लिए बीजों को थाइलम, मैन्कोजेब या कार्बेन्दाजिम जैसे दवाओं से 2-3 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित किया जाता है। इसके साथ ही राइजोबियम कल्चर से भी बीज का उपचार करें जो फसल की जड़ में नाइट्रोजन फिक्सेशन बढ़ाता है और उपज बेहतर बनाता है।
बुवाई का तरीका-गहराई
चना की बुवाई कतार में करनी चाहिए, जिसमें कतार के बीच की दूरी देशी चने के लिए 30 सेमी और काबुली चने के लिए 30 से 45 सेमी होनी चाहिए। बीज की बुवाई 5-7 सेमी गहराई में सिंचित क्षेत्रों में और 7-10 सेमी गहराई में बारानी क्षेत्रों तथा धारणीय नमी वाले स्थानों पर करें। बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई जरूर करें ताकि बीज जल्दी अंकुरित हो सके।
खाद का प्रबंधन
चना के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 20 किग्रा नत्रजन, 60 किग्रा फास्फोरस, 20 किग्रा पोटाश और 20 किग्रा गंधक देना लाभकारी होता है। उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी जांच के अनुसार ही करें। अगर फसल में सल्फर और जिंक की कमी हो तो उनकी पूर्ति सल्फरयुक्त और जिंकयुक्त उर्वरकों से की जानी चाहिए। असिंचित या देर से बुवाई की स्थिति में फूल आने के समय 2 प्रतिशत यूरिया का छिड़काव उपज बढ़ाने में मदद करता है। Gram Cultivation
सिंचाई और फसल प्रबंधन
चना में पहली सिंचाई पौधों में शाखाएं बनने के समय बुवाई के 45-60 दिन बाद करनी चाहिए और दूसरी सिंचाई फली बनने के दौरान दिन विशेष कर दें। फुल आने की अवस्था में अधिक सिंचाई नुकसानदायक होती है क्योंकि इससे फूल गिर सकते हैं तथा वानस्पतिक वृद्धि अधिक हो सकती है, जिससे दाने कम लगते हैं। फसल में स्प्रिंकलर या बौछार सिंचाई विधि लागू करें। सामान्यत: चना की खेती असिंचित होती है, लेकिन सिंचाई की स्थिति में फली बनने पर कम जल देना लाभदायक होता है।
रोग और कीट प्रबंधन
चना में जड़ गलन, उखटा रोग, चना फली भेदक, इल्ली और रस्ट रोग आम हैं। बीज उपचार, खेत की सफाई, रोग प्रतीरोधी किस्मों का चयन, और उचित समय पर रासायनिक या जैविक नियंत्रण तकनीकों का उपयोग रोग-कीटों को नियंत्रित करता है।
कटाई और उपज
चना की फसल की कटाई तब करें जब फसल पूरी तरह पक जाए और फली का रंग बदल जाए। वायुमंडलीय नमी कम हो तभी फसल की कटाई करें ताकि दानों की गुणवत्ता और संग्रहण क्षमता बनी रहे। अच्छे प्रबंधन से बैच में प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल की उपज प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार चने की खेती का वैज्ञानिक और व्यवस्थित तरीका अपनाकर किसान अच्छी पैदावार और लाभ कमा सकते हैं। खेती के हर चरण में उचित समय, बीज, मिट्टी, उर्वरक, सिंचाई और रोग प्रबंधन का ध्यान रखने से यह फसल सफल होती है।
मिट्टी परीक्षण की आवश्यकता
चना की खेती में उपयुक्त मिट्टी का चुनाव और उसकी उर्वरता सुनिश्चित करना सफलता की कुंजी है। मिट्टी परीक्षण से पता चलता है कि आपकी मिट्टी में पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर, जिंक, तथा मिट्टी की पीएच वैल्यू कितनी है। मिट्टी परीक्षण के लिए खेत के विभिन्न हिस्सों से 6-8 इंच गहराई तक मिट्टी का नमूना लेना चाहिए। इन नमूनों को अच्छी तरह मिलाकर सूखा लें और नजदीकी मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में भेजें। रिपोर्ट का विश्लेषण कर विशेषज्ञ सलाह लें।
मिट्टी के गुण और सुधार
चना के लिए हल्की दोमट, काली मिट्टी या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है, जो जल निकासी अच्छी हो। मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए ताकि जड़ें अच्छी तरह फैल सकें। गोबर की सड़ी हुई खाद, वर्मी कम्पोस्ट और हरी खाद (धैन्चा, सन) डालकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाएं। ये मिट्टी की संरचना भी सुधारते हैं। मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए खेत में घास या प्लास्टिक मल्चिंग करें। Gram Cultivation
मिट्टी में पोषक तत्वों की पूर्ति
नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की कमी पूरी करने के लिए उपयुक्त उर्वरक देने चाहिए। चने की फसल के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 20-25 किग्रा नाइट्रोजन, 50-60 किग्रा फास्फोरस, 20 किग्रा पोटाश और 20 किग्रा गंधक उपयुक्त है। नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया (राइजोबियम कल्चर) का इस्तेमाल बीज उपचार या खेत में करें।
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