Nili Ravi Buffalo: 3500 लीटर दूध देने वाली भैंसें बनीं किसानों की कमाई का जरिया, ‘कुबेर का खजाना’ साबित हो रहीं नीली रवि और मुरहा नस्लें

Nili Ravi Buffalo
Nili Ravi Buffalo: 3500 लीटर दूध देने वाली भैंसें बनीं किसानों की कमाई का जरिया, ‘कुबेर का खजाना’ साबित हो रहीं नीली रवि और मुरहा नस्लें

Nili Ravi Buffalo: अनु सैनी। बिहार के समस्तीपुर जिले में डेयरी व्यवसाय से जुड़े किसान अब तेजी से आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं। इसका कारण है नीली रवि और मुरहा नस्ल की भैंसें, जिन्हें किसान अब ‘कुबेर का खजाना’ कहने लगे हैं। ये भैंसें न सिर्फ अधिक दूध देती हैं बल्कि उनके दूध की गुणवत्ता और बाजार मूल्य भी काफी ऊंचा होता है। यही वजह है कि इन नस्लों का पालन किसानों के लिए मुनाफे का सौदा बन गया है।

भैंस पालन से किसानों की बढ़ी आमदनी | Nili Ravi Buffalo

समस्तीपुर में भैंस पालन सदियों से किसानों की आजीविका का हिस्सा रहा है। पहले जहां यह केवल घरेलू जरूरतें पूरी करने तक सीमित था, वहीं अब यह व्यवसायिक रूप ले चुका है। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के डेरी विज्ञान विभाग के विशेषज्ञ डॉ. विजय कुमार गोंड के अनुसार, समस्तीपुर की जलवायु और मिट्टी इन नस्लों के पालन के लिए बेहद उपयुक्त है। इनकी देखभाल अपेक्षाकृत आसान है और दूध उत्पादन भी नियमित रूप से बना रहता है।

हर 12 से 15 महीने में बछड़ा, दूध उत्पादन निरंतर

नीली रवि और मुरहा नस्ल की भैंसों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे हर 12 से 15 महीने के भीतर बछड़ा देती हैं। इससे दूध उत्पादन का चक्र कभी नहीं रुकता। वैज्ञानिकों के मुताबिक, एक स्वस्थ भैंस प्रतिदिन 8 से 12 लीटर दूध तक देती है। इस नस्ल की भैंसें साल भर में औसतन 3000 से 3500 लीटर दूध दे सकती हैं, जो किसी भी किसान के लिए आर्थिक रूप से बेहद लाभदायक साबित होता है।

दूध की गुणवत्ता में फैट सबसे खास

इन नस्लों के दूध में फैट की मात्रा 6.5% से 8% तक होती है, जबकि साधारण गाय या भैंस के दूध में यह मात्रा 4% के आसपास होती है। अधिक फैट का मतलब है बेहतर गुणवत्ता और बाजार में ऊंचा दाम। डेयरी उद्योग में इस दूध की मांग हमेशा बनी रहती है, क्योंकि इससे घी, मावा और पनीर जैसे उत्पाद अधिक मात्रा में प्राप्त किए जा सकते हैं।

समस्तीपुर की जलवायु है अनुकूल

डॉ. गोंड बताते हैं कि समस्तीपुर का मौसम इन भैंसों के लिए बिल्कुल अनुकूल है। यहां की गर्मी और सर्दी दोनों मौसमों में नीली रवि और मुरहा नस्लें खुद को आसानी से ढाल लेती हैं। ये नस्लें मजबूत शरीर वाली और रोग-प्रतिरोधक क्षमता से भरपूर होती हैं, जिससे इन्हें बीमारियां कम लगती हैं और इलाज पर भी ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता।

साफ-सुथरा वातावरण है सफलता की कुंजी

वैज्ञानिकों का कहना है कि इन भैंसों से बेहतर उत्पादन तभी संभव है जब उन्हें स्वच्छ और ठंडे वातावरण में पाला जाए। भैंसों के बाड़े को छांवदार और हवादार रखना चाहिए ताकि उन्हें गर्मी में परेशानी न हो। ज्यादा तापमान दूध की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, इसलिए भैंसों के लिए नियमित स्नान और पर्याप्त पानी जरूरी है।

आहार में संतुलन से बढ़ता है दूध उत्पादन

डॉ. गोंड किसानों को सलाह देते हैं कि भैंसों के आहार में हरा चारा, चोकर, दाना और मिनरल मिक्सचर का संतुलित उपयोग करें। इससे दूध की मात्रा और गुणवत्ता दोनों बनी रहती हैं। अगर भैंसों को रोजाना हरे चारे के साथ पर्याप्त पोषक तत्व दिए जाएं, तो उनका स्वास्थ्य बेहतर रहता है और वे लंबे समय तक दूध देती हैं।

टीकाकरण और सफाई बेहद जरूरी

पशुपालन में सफलता का एक और महत्वपूर्ण पहलू है नियमित वैक्सीनेशन और सफाई। विशेषज्ञों के अनुसार, समय-समय पर टीकाकरण कराने से पशु संक्रामक बीमारियों से बचे रहते हैं। बाड़े को रोजाना साफ रखना और सूखा वातावरण बनाए रखना जरूरी है, ताकि संक्रमण का खतरा न रहे।

दूध दुहने का समय भी रखे निश्चित

किसानों को दूध दुहने का समय सुबह और शाम तय रखना चाहिए। यह न केवल दूध की मात्रा को बढ़ाता है, बल्कि दूध की गुणवत्ता को भी बनाए रखता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, समय का नियमित पालन करने से भैंसें मानसिक रूप से स्थिर रहती हैं और अधिक दूध देती हैं।

कितनी होती है आमदनी?

डॉ. गोंड के मुताबिक, यदि किसान वैज्ञानिक तरीकों से भैंसों का पालन करें, तो एक भैंस से सालाना 80,000 से 1 लाख रुपये तक की अतिरिक्त आय संभव है। अगर कोई किसान 3 से 4 भैंसें पालता है, तो वह सालाना तीन से चार लाख रुपये तक का शुद्ध मुनाफा कमा सकता है। यही कारण है कि आज समस्तीपुर और आसपास के कई किसान इस नस्ल के पालन को अपनाकर लखपति बन चुके हैं।

सरकार और विश्वविद्यालय की पहल

डेयरी विज्ञान विभाग और राज्य सरकार भी किसानों को वैज्ञानिक तकनीकों से अवगत कराने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही हैं। विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ गांव-गांव जाकर किसानों को सिखा रहे हैं कि किस तरह से कम खर्च में अधिक उत्पादन किया जा सकता है।

भविष्य के लिए सुनहरा अवसर

समस्तीपुर में नीली रवि और मुरहा नस्ल की भैंसों का पालन न केवल आय का स्रोत बन गया है बल्कि रोजगार का नया माध्यम भी तैयार कर रहा है। कई युवाओं ने पारंपरिक खेती छोड़ अब डेयरी फार्मिंग को अपना करियर बना लिया है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि समस्तीपुर में नीली रवि और मुरहा नस्ल की भैंसें किसानों के लिए सचमुच “कुबेर का खजाना” साबित हो रही हैं। उचित देखभाल, संतुलित आहार और वैज्ञानिक तकनीक अपनाकर किसान न केवल अधिक दूध उत्पादन कर सकते हैं बल्कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बन सकते हैं।