बिलोचिस्तान की तहसील गंधेय के गाँव कोटड़ा की पवित्र धरा पर जब सच्चे सतगुरु बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने अवतार धारण किया, तब से आध्यात्मिकता का नया सूर्योदय हुआ, तो ईश्वरीय नूर का वह अथाह सागर जिस दिशा में भी बहा, वहाँ भक्ति, प्रेम, मस्ती और भाईचारे की सुगंध फैल गई। नफरतें समाप्त होती गईं, भेदभाव मिटने लगा। यह किसी चमत्कार से कम न था कि सभी धर्मों, जातियों, भाषाओं के लोग एक ही स्थान पर बैठकर प्रभु की चर्चा करने लगे। सभी धर्मों की साझा शिक्षा ने सबको एकता के सूत्र में बाँध दिया। शाह मस्ताना जी महाराज के पावन दर्शन और उनके श्रीमुख से निकले अमृतमय वचनों को सुनकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता।
इंसानियत को अपनाने का संदेश, परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग और पाखंड व अंधविश्वास से मुक्ति का वरदान पाकर जगत धन्य हो उठा। आपकी सहज, सरल भाषा और रब्बी नूर के दर्शन कर लोग ईश्वरीय प्रेम में रंगते चले गए। आपजी के प्रेम में दीवाने भक्त आपकी एक झलक पाकर ही परम आनंद में नाच उठते, हर आज्ञा को शीश नवाते, हर श्वास समर्पित कर देते। यह किसी महान आध्यात्मिक शक्ति का ही दर्शन था। आपजी के जीवन वृतांत से स्पष्ट होता है- भक्ति मन की गहराइयों से उठी सच्ची तड़प है, मन की पवित्रता, नेक विचार और सच्चे आचरण का नाम है। भक्ति केवल रटने या बाहरी दिखावे का नाम नहीं, बल्कि गुरु के लिए जगने वाला पवित्र तड़प है। गुरु का आदेश ही सब कुछ है, और गुरु की रजा में रह पाना ही जीवन की सर्वोच्च प्राप्ति है।
-सम्पादक















