नई दिल्ली। देश की प्रमुख संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा को लेकर मंगलवार को एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर अभियान सामने आया, जिसमें 272 प्रतिष्ठित नागरिक—जिनमें से कई पूर्व उच्च न्यायाधीश, सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी और सशस्त्र बलों के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं—ने एक खुला पत्र जारी कर चिंता व्यक्त की। इस पत्र में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी तथा विपक्षी दलों द्वारा चुनाव आयोग पर लगाए जा रहे आरोपों की कड़ी आलोचना की गई है। Election Commission
पत्र में कहा गया है कि हाल के दिनों में कुछ राजनीतिक दल चुनाव आयोग पर “मतदाता सूची में हेरफेर” और “सत्ता पक्ष के साथ मिलीभगत” जैसे गंभीर आरोप लगा रहे हैं, जिनका कोई ठोस प्रमाण सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत नहीं किया गया है। पत्र में यह भी उल्लेख किया गया कि यद्यपि राहुल गांधी का नाम सीधे नहीं लिया गया, परंतु विपक्षी दलों की ओर से आयोग पर किए जा रहे हमलों को अत्यंत “अत्युक्तिपूर्ण और आधारहीन” बताया गया।
संवैधानिक संस्थाओं पर ‘अनुचित प्रहार’ की चिंता | Election Commission
पूर्व न्यायाधीशों और अधिकारियों ने लिखा कि लोकतंत्र की मजबूती उसके संस्थागत ढांचे पर आधारित है, और इन संस्थानों को बिना पर्याप्त तथ्यों के कटघरे में खड़ा करना लोकतांत्रिक आचरण के विरुद्ध है। उनके अनुसार, कुछ राजनीतिक नेता नीतिगत विकल्प प्रस्तुत करने के बजाय “नाटकीय और उत्तेजक आरोपों” के सहारे जनभावनाओं को भड़काने का प्रयास कर रहे हैं। पत्र में यह भी कहा गया कि देश की न्यायपालिका, संसद, सेनाओं तथा अब चुनाव आयोग तक—सभी संस्थानों पर संदेह का वातावरण बनाना “एक खतरनाक प्रवृत्ति” है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर अविश्वास बढ़ सकता है।
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों का कहना है कि SIR प्रक्रिया पर बार-बार सवाल उठाना तथ्यहीन है, क्योंकि आयोग ने अपनी प्रक्रिया सभी के समक्ष स्पष्ट की है। उनके अनुसार, पात्र मतदाताओं का पंजीकरण और अपात्र नामों का हटाया जाना एक नियमित और न्यायालयों द्वारा अनुमोदित कार्यप्रणाली है। उन्होंने कहा कि भावनात्मक रूप से तीखे शब्द भले जनता को प्रभावित कर सकते हों, किंतु व्यवहारिक परीक्षण में ये आरोप टिक नहीं पाते।
चुनावी परिणामों पर ‘चयनात्मक प्रतिक्रिया’ पर सवाल | Election Commission
पत्र में विपक्षी दलों के “चुनिंदा रोष” का भी उल्लेख किया गया। हस्ताक्षरकर्ताओं का कहना है कि जब विपक्ष कुछ राज्यों में जीत दर्ज करता है, तब चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जाता; किंतु हार की स्थिति में आयोग को दोषी ठहराया जाना राजनीतिक अवसरवाद दर्शाता है।
इस संदर्भ में बिहार, हरियाणा और महाराष्ट्र के हालिया चुनावों का उल्लेख किया गया, जहां विपक्ष की हार को आधार बनाकर आयोग पर आरोप लगाए गए। पत्र में देशवासियों और नागरिक संगठनों से आग्रह किया गया है कि वे लोकतांत्रिक संस्थाओं में विश्वास बनाए रखें तथा चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं के समर्थन में खड़े हों—आलोचना से ऊपर उठकर, तथ्य और भरोसे के आधार पर।















