
सच्चे रूहानी रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इन्सान अगर सच के रास्ते पर चलता है तो उसे परमात्मा के नजारे एक दिन जरूर मिलते हंै। इस कलियुग में झूठ के रास्ते पर चलने वाले लोग, हो सकता है कि थोड़े समय के लिए अपनी वाहवाही करवा सकें या थोड़ा आगे आ सकें, लेकिन उनके अंत:करण व घर-परिवार में हमेशा अशांति, बीमारियां व परेशानियां छाई रहती हंै, और जो इन्सान मालिक से प्यार करते हंै, सच के रास्ते पर अडिग होकर चलते हैं, उनके गम, चिंता, परेशानियां समाप्त हो जाती हैं। उनको मोक्ष मुक्ति जरूर मिलती है।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इन्सान का सच की राह पर चलना बहुत जरूरी है। अगर सच के राह पर चलते समय उसके सामने थोड़ी बहुत बीमारी या परेशानियां आती हैं तो वह सोचता है कि सच की राह पर चलने वाले के सामने ही परेशानियां क्यों आती हैं? लेकिन वास्तविकता तो यह है कि इन्सान को परमात्मा के रास्ते पर चलकर, पिछले जन्मों के जितने भी पाप-कर्म हैं उनको इसी जन्म में धरती पर रहकर खत्म करना पड़ता है, क्योंकि अगर इन्सान इस जन्म में अपने बुरे कर्मों का भुगतान नहीं करता तो जन्मों-जन्मों तक उनका भुगतान करना पड़ेगा व नर्कों में जाना होगा। लेकिन सत्संगी जीव का नरक से कोई लेना-देना नहीं, वो तो निजधाम, सचखंड जाते हैं। इसलिए वो बिल्कुल पाप-पवित्र होकर जाते हैं तथा इस दौरान उनको कई परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है जिनको देखकर वह सोचने को मजबूर हो जाता है, कि सत्संगी को ऐसा क्योें करना पड़ता है।
इससे बचने का बिल्कुल आसान तरीका है, उस मालिक के नाम का एक घंटा सुबह व शाम सुमिरन करना, सच्चे दिल व लगन से सेवा, व्यवहार के सच्चे व दृढ़ यकीनी बनना जरूरी है। सुमिरन व सेवा पहाड़ जैसे कर्म को कंकर में बदल देते हैं। वरना इन्सान को आमतौर पर बीमारियों व परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें उस मालिक का कोई लेना-देना नहीं है, यह तो केवल इन्सान के बुरे कर्मों का ही फल है। संत, पीर-फकीर तो केवल रास्ता ही दिखा सकते हैं, लेकिन परमात्मा इन परेशानियों को खत्म कर सकते हैं, जिसके लिए उस मालिक को याद करना होता है। अगर आप उस मालिक को याद ही नहीं करते तो मालिक पर आरोप क्यों लगाते हो। कई बार इसान सोचता है कि उसने इस जन्म में कोई बुरा काम नहीं किया। लेकिन इन्सान को अपने संचित कर्मों का लेखा-जोखा ही भोगना पड़ता है। सुमिरन ही एक मात्र तरीका है जिससे इन्सान के संचित व बुरे कर्म कट सकते हैं।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इन्सान को दीनता व नम्रता रखना भी बहुत जरूरी है, क्योंकि अहंकार सबसे बुरी बला है। जो इन्सान व मालिक के प्यार को कैंची की तरह काटकर रख देती है। इन्सान एक तरफ तो मालिक के प्यार व उसकी खुशियों को पाना चाहता है, लेकिन दूसरी ओर वह अपने मन में अहंकार रखता है। जिस प्रकार एक म्यान में दो तलवार नहीं आ सकती, उसी प्रकार एक जिस्म (शरीर) में भगवान का प्यार व अहंकार दोनों इकट्ठे नहीं रह सकते। इसलिए अगर आप उस खुदा को पाना चाहते हो तो खुदी को मिटा डालो, वरना धीरे-धीरे यह आपको मिटा डालेगी और आपको मालिक के प्यार से दूर कर देगी। इसलिए इन्सान को अहंकार त्यागकर दीनता, नम्रता धारण करनी चाहिए। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि सभी से ‘जी, जी’ कहकर बात करें। हाथ बांधने से खुशियां मिलती हैं, जाती नहीं। इसका मतलब यह नहीं कि हम किसी से डरकर हाथ जोड़ रहे हैं, बल्कि दीनता नम्रता ही भक्तों के गहने होते हैं, लेकिन भक्त को हमेशा दृढ़ता व हिम्मत से चलना है। दीनता व नम्रता के रास्ते पर चलने वाले जीव का मालिक जरूर साथ देता है और उसे अंदर व बाहर से खुशियों से मालामाल कर देता है।














