Urea Fertilizer: यमुनानगर में नहीं रुक रहा यूरिया खाद की अवैध सप्लाई का खेल

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Pratap Nagar News: यमुनानगर में नहीं रुक रहा यूरिया खाद की अवैध सप्लाई का खेल

प्लाईवुड फैक्ट्रियों में पहुँच रहा किसानों का सब्सिडी वाला यूरिया, विभागीय मिलीभगत के आरोप तेज

प्रताप नगर (सच कहूँ/राजेंद्र कुमार)। Pratap Nagar News: जिला यमुनानगर में यूरिया खाद की अवैध सप्लाई का धंधा लगातार फैलता जा रहा है। किसानों को खेती के लिए दी जाने वाली सब्सिडी वाली यूरिया भारी मात्रा में प्लाईवुड उद्योग और उससे जुड़े अन्य औद्योगिक कार्यों में खपाई जा रही है। इससे न केवल किसानों को नुकसान हो रहा है, बल्कि सरकार को भी करोड़ों रुपये की राजस्व हानि झेलनी पड़ रही है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह सब केवल खाद माफिया कर रहे हैं, या फिर इसमें विभागीय अधिकारियों व राजनीतिक संरक्षण भी शामिल है। स्थानीय लोगों और किसानों का आरोप है कि यह नेटवर्क इतना बड़ा और संगठित है कि इसकी जानकारी संबंधित विभागों को न होना संभव ही नहीं।

सैकड़ों स्थानों पर खुलेआम बिक रहा यूरिया

जिले में सलेमपुर बांगर, बलाचौर, मानकपुर, जगाधरी, बुडिया रोड, अग्रसेन चौक, यमुनानगर–सहारनपुर रोड और आसपास के ग्रामीण इलाकों में बड़ी सहजता से यूरिया की खुलेआम अवैध बिक्री हो रही है। यह वही यूरिया है जिसे सरकार किसानों को रियायती दरों पर उपलब्ध कराती है। लेकिन माफिया इसका लाभ उठाकर इसे बाजार मूल्य से अधिक दरों पर फैक्ट्रियों को बेच रहे हैं। किसानों के लिए बनी इस खाद को औद्योगिक इकाइयों में खपाने के लिए बाकायदा सप्लाई चैन, स्टोरेज पॉइंट और कथित “सुरक्षा व्यवस्था” तैयार की गई है, ताकि कार्रवाई से पहले ही माल को सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट कर दिया जाए।

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, जिले में सैंकड़ों प्लाईवुड फैक्ट्रियाँ हैं जहाँ यूरिया ग्लू (राल) तैयार करने में उपयोग किया जाता है। असल में यूरिया औद्योगिक उपयोग के लिए भी उपलब्ध होता है, लेकिन उसकी कीमत सब्सिडी वाले कृषि यूरिया से कई गुना अधिक होती है। इसी लाभ के चलते खाद माफिया और फैक्ट्री मालिकों के बीच गहरी सांठगांठ बन गई है। माफिया किसानों से यह खाद उंचे दामों पर खरीदते हैं, या फिर कुछ डीलर उनकी मिलीभगत से बड़ी मात्रा में स्टॉक डायवर्ट कर देते हैं।

किसानों के हिस्से का यूरिया कहाँ जा रहा है?

हर सीजन में किसान यूरिया की कमी की शिकायत करते हैं। कतारों में लगकर भी उन्हें पर्याप्त मात्रा में खाद नहीं मिल पाती। कई बार दुकानों पर “स्टॉक खत्म” की पर्ची लटकती रहती है, जबकि कुछ ही दूरी पर फैक्ट्रियों के गेटों पर रात के समय यूरिया की बोरियों से भरे वाहन उतरते दिखाई देते हैं। किसानों का कहना है कि जब भी मांग बढ़ती है, यूरिया की कमी का बहाना बन जाता है, जबकि असली माल पहले ही औद्योगिक इकाइयों में भेज दिया जाता है।

किसान नेताओं का दावा है कि यदि प्रशासन एक दिन के लिए भी सख़्ती से सभी औद्योगिक क्षेत्रों पर निगरानी रख दे, तो खुलासा हो जाएगा कि लाखों टन यूरिया कहाँ जा रहा है। कई किसानों ने प्रशासन को शिकायतें भी दी हैं, लेकिन अब तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई है।

विभागीय अधिकारियों पर सवाल | Pratap Nagar News

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि इतनी बड़ी मात्रा में यूरिया का अवैध प्रवाह हो रहा है, फिर भी संबंधित विभागों—जैसे कृषि विभाग, मार्केटिंग बोर्ड, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग—को इसकी जानकारी कैसे नहीं है।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि बिना विभागीय मिलीभगत के यह धंधा संभव ही नहीं। यूरिया की आवाजाही पर सख़्त निगरानी, रिकॉर्डिंग और बिलिंग की व्यवस्था होती है। किसी भी एक ट्रक के डायवर्जन का पता लगाना कठिन नहीं, लेकिन जब दर्जनों ट्रक बिना रिकॉर्ड के घूम रहे हों, तो यह स्पष्ट संकेत है कि “ऊपर तक सब सेट” है।

कई मौकों पर छापेमारी की खबरें तो आती हैं, लेकिन आमतौर पर छोटी मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। बड़े सप्लायर और फैक्ट्री मालिकों तक कार्रवाई पहुँचती ही नहीं। अधिकतर मामलों में कुछ किलो या कुछ बोरी जब्त कर ली जाती हैं और मामला रफा-दफा हो जाता है।

राजनीतिक संरक्षण के भी आरोप

जिले के विभिन्न इलाकों में लोगों का कहना है कि यह अवैध व्यापार कुछ राजनीतिक लोगों के संरक्षण में चल रहा है। चुनावी फंडिंग और उद्योगों से जुड़ी लॉबी के कारण इस कारोबार पर रोक नहीं लग पाती। कई किसानों ने बताया कि जब भी वे शिकायत लेकर किसी अधिकारी के पास जाते हैं, उन्हें बताया जाता है कि “ऊपर से दबाव है, ज़्यादा पूछताछ मत करो।”

हालाँकि इन आरोपों की आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी है, लेकिन जिस पैमाने पर यूरिया की सप्लाई हो रही है, उससे यह स्पष्ट है कि नेटवर्क बहुत मजबूत है और नेताओं, अधिकारियों और माफिया के बीच किसी स्तर पर रिश्ते अवश्य हैं।

प्लाईवुड उद्योग का तर्क—‘औद्योगिक काम के लिए आवश्यक’

उद्योगिक क्षेत्र की ओर से यह तर्क आता है कि ग्लू बनाने के लिए यूरिया का उपयोग अनिवार्य है और वे इसे खुले बाजार से खरीदते हैं। लेकिन जब उनसे पूछा जाता है कि क्या वे कृषि यूरिया का उपयोग करते हैं या औद्योगिक यूरिया का, तो कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिलता। कई उद्योगपतियों का कहना है कि वे “सस्ते स्रोतों” से माल लेते हैं, लेकिन वे यह खुलासा नहीं करते कि वे स्रोत क्या हैं।

कानूनी रूप से औद्योगिक यूरिया का उपयोग ही मान्य है, लेकिन उसकी कीमत कई गुना अधिक होने के कारण फैक्ट्रियाँ सब्सिडी वाले यूरिया को प्राथमिकता देती हैं।

प्रशासन की चुप्पी और कार्रवाई का इंतजार

कई किसान संगठनों ने प्रशासन से कड़ी कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि यदि जिला प्रशासन चाहे, तो 48 घंटे में इस पूरे रैकेट का पर्दाफाश किया जा सकता है। बस जरूरत है—आपूर्ति मार्गों की ट्रैकिंग, फैक्ट्रियों की निगरानी, और डीलरों के स्टॉक का अचानक निरीक्षण।

प्रशासन की ओर से अब तक कोई बड़ा बयान सामने नहीं आया है। कुछ अधिकारियों ने ऑफ द रिकॉर्ड कहा है कि मामले की जांच की जा रही है और समय-समय पर कार्रवाई होती रहती है। लेकिन जमीन पर हालात इसके उलट कहानी बयां करते हैं। Pratap Nagar News

किसानों का नुकसान, माफिया का फायदा

सब्सिडी वाले यूरिया का उद्देश्य किसानों की लागत कम करना है। लेकिन जब यह खाद उन्हें समय पर या पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलता, तो उनकी फसल प्रभावित होती है, उत्पादन घटता है और आय कम होती है। दूसरी ओर, माफिया इसका करोड़ों रुपये कमाता है, और उद्योगपतियों को भी सस्ता कच्चा माल मिल जाता है।

यदि स्थिति यही रही, तो आने वाले वर्षों में किसानों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं, क्योंकि यूरिया की मांग हर सीजन में बढ़ती जा रही है।

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