
Delhi-NCR Pollution: अनु सैनी। दिल्ली में हर साल नवंबर का महीना आते-आते हवा का स्तर खतरनाक हो जाता है। शहर मानो धुएँ की चादर ओढ़ लेता है, जिसमें न सिर्फ लोगों की सांसें अटकती हैं, बल्कि सरकारें और नीतियां भी ठहर जाती हैं। इस साल भी हालात बदले नहीं। एयर क्वालिटी इंडेक्स लगातार ‘गंभीर’ श्रेणी में बना हुआ है। स्मॉग की मोटी परत आसमान को ढंक लेती है और दिन भी धुंधला नज़र आने लगता है। ऐसे में प्रदूषण रोकने के लिए हर बार की तरह आपातकालीन कदमों की चर्चा शुरू होती है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट का एक सख्त सुझाव सामने आया है, जिसने लग्ज़री पेट्रोल और डीज़ल कारों के मालिकों में हलचल मचा दी है।
लग्ज़री कारों पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी | Delhi-NCR Pollution
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है कि दिल्ली में चल रही लग्ज़री पेट्रोल-डीज़ल कारों को धीरे-धीरे सड़कों से हटाने पर विचार किया जाए। अदालत का कहना है कि जब तक शहर इन हाई-एमिशन वाहनों को अलविदा नहीं कहेगा, तब तक प्रदूषण रोकने के उपाय अधूरे ही रहेंगे। कोर्ट की बेंच ने साफ कहा कि “ऐसे समय में जब दिल्ली की हवा दम घोंट रही है, हमें प्रदूषण फैलाने वाले हर स्रोत पर कड़ी नजर डालनी होगी, चाहे वे उद्योग हों, निर्माण कार्य हो या फिर लग्ज़री वाहन।”
क्यों निशाने पर आईं लग्ज़री कारें
विशेषज्ञों के अनुसार लग्ज़री सेडान, SUV और हाई-कैपेसिटी इंजनों वाली पेट्रोल-डीजल कारें, साधारण वाहनों की तुलना में कई गुना अधिक प्रदूषक गैसें उत्सर्जित करती हैं। विशेषकर सर्दियों में जब वायु में नमी बढ़ जाती है, यह उत्सर्जन हवा में फंसकर स्मॉग बना देता है। राजधानी की सड़कों पर बड़ी संख्या में चल रही ऐसी गाड़ियां कुल उत्सर्जन में उल्लेखनीय योगदान करती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसी आधार पर कहा कि जब तक इन्हें हटाने की ठोस तैयारी नहीं की जाएगी, दिल्ली की हवा साफ होना मुश्किल है।
सरकार और एजेंसियों की खामोश प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के सुझाव के बाद दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार और पर्यावरण एजेंसियों की प्रतिक्रिया का इंतजार किया जा रहा है। अभी तक किसी पक्ष ने आधिकारिक तौर पर यह नहीं बताया है कि लग्ज़री कारों को हटाने की प्रक्रिया कैसी होगी, चरणबद्ध होगी या नहीं, और इसका असर किन-किन लोगों पर पड़ेगा। हालांकि, शीर्ष अधिकारियों का मानना है कि यदि अदालत इसे निर्देश में बदल देती है, तो वाहन नीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
दिल्ली में वाहन प्रदूषण का वास्तविक योगदान
दिल्ली-NCR में प्रदूषण के कई स्रोत हैं—पराली, उद्योग, निर्माण कार्य, कचरा जलाना, और सबसे बड़ा योगदान वाहन। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, सर्दियों में वाहन उत्सर्जन कुल प्रदूषण में 30–40% तक हिस्सा रखता है। पेट्रोल-डीजल से चलने वाले बड़े इंजन वाली गाड़ियां, खासकर पुराने मॉडल, प्रदूषण को तेज़ी से बढ़ाते हैं। यही वजह है कि ऑड-ईवन जैसी अस्थायी योजनाएं कभी-कभी राहत देती हैं, लेकिन स्थायी समाधान के बिना हालात फिर बिगड़ जाते हैं।
क्या लग्ज़री कारें सच में इतनी खतरनाक हैं?
ऑटोमोटिव विशेषज्ञ बताते हैं कि लग्ज़री और हाई-पावर कारों का ईंधन उपभोग अधिक होता है। जितना अधिक ईंधन जलेगा, उतना अधिक कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर निकलता है। यूरो-6 मानक लागू होने के बाद भी पुराने लग्ज़री वाहनों में उत्सर्जन की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। कई कारों की टेलपाइप से निकलने वाला प्रदूषण एक छोटी कार की तुलना में कई गुना अधिक होता है। ऐसे में भीड़भाड़ वाले शहर में इन वाहनों का लगातार चलना हवा को और जहरीला बनाता है।
कोर्ट का संकेत—समाधान सिर्फ प्रतिबंध नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल वाहनों को हटाना ही समाधान नहीं है। सरकार को सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करना होगा, इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से बढ़ावा देना होगा और प्रदूषण नियंत्रण के लिए स्थायी नीति तैयार करनी होगी। अदालत ने जोर दिया कि “लक्षणों का इलाज नहीं, कारणों पर हमला जरूरी है।”
लग्ज़री कार मालिकों की चिंता बढ़ी
दिल्ली और गुरुग्राम में हजारों लग्ज़री कारें रजिस्टर्ड हैं—जिनका मूल्य कई लाख से करोड़ों तक है। सुप्रीम कोर्ट के सुझाव के बाद कार मालिक यह जानना चाह रहे हैं कि क्या उनकी गाड़ी सड़क से हटाई जाएगी? क्या उन्हें इलेक्ट्रिक वाहन खरीदना पड़ेगा? क्या सरकार उन्हें मुआवजा या स्क्रैप पॉलिसी का लाभ देगी? फिलहाल इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है, इसलिए लोगों में असमंजस बना हुआ है।
ऑटोमोबाइल उद्योग की प्रतिक्रिया
वाहन उद्योग ने इस सुझाव पर चिंता जताई है। कंपनियों का कहना है कि दिल्ली में लग्ज़री कारों की बिक्री पर रोक या उनके उपयोग पर प्रतिबंध से बाजार पर असर पड़ेगा। हालांकि इंडस्ट्री का एक बड़ा वर्ग यह भी मानता है कि प्रदूषण रोकने के लिए EV (इलेक्ट्रिक वाहन) भविष्य का रास्ता है और सरकार को इस दिशा में मजबूत कदम उठाने चाहिए। कई कंपनियां पहले ही हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक मॉडल लॉन्च कर चुकी हैं।
क्या लागू हो सकता है चरणबद्ध मॉडल
विशेषज्ञों के अनुसार कोर्ट के सुझाव को लागू करने के लिए सरकार कुछ चरण अपना सकती है:-
पुराने 10–15 साल पुराने लग्ज़री वाहनों को पहले हटाना।
नए मॉडल के लिए अतिरिक्त टैक्स या प्रतिबंध।
इलेक्ट्रिक लग्ज़री वाहनों को बढ़ावा।
स्क्रैप पॉलिसी को प्रोत्साहन।
हालांकि यह सब भविष्य की नीति पर निर्भर करेगा।
दिल्ली की हवा से जुड़ी गंभीर सच्चाई
दिल्ली में प्रदूषण सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि स्वास्थ्य को बड़ा नुकसान पहुंचाने वाला संकट बन चुका है। AIIMS और अन्य चिकित्सा संस्थानों की रिपोर्ट के अनुसार सर्दियों में सांस की बीमारियाँ 30–40% तक बढ़ जाती हैं। बच्चों, बुजुर्गों और दमा के मरीजों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ता है। लंबे समय तक जहरीली हवा में सांस लेने से फेफड़ों की क्षमता घटती है, हृदय संबंधी रोग बढ़ते हैं और कैंसर का खतरा भी बढ़ता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह करोड़ों लोगों की स्वास्थ्य सुरक्षा से जुड़ा है।
सार्वजनिक परिवहन ही स्थायी समाधान
विशेषज्ञ कहते हैं कि दिल्ली में मेट्रो, इलेक्ट्रिक बसें और साझा परिवहन को मजबूत किए बिना किसी भी प्रतिबंध का असर सीमित रहेगा। जब तक लोग आरामदायक और तेज़ सार्वजनिक परिवहन का विकल्प नहीं अपनाएंगे, तब तक निजी वाहनों पर निर्भरता खत्म नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी यही संकेत दिया कि जड़ पर हमला किए बिना हवा साफ नहीं होगी।
नीतिगत बदलाव की जरूरत
इस सुझाव ने एक चर्चा खड़ी कर दी है, क्या भारत अब उन देशों की तरह सख्त प्रदूषण नीतियां अपनाएगा, जहां धीरे-धीरे डीज़ल वाहनों को अलविदा कहा जा रहा है? यूरोप के कई शहरों ने पहले ही डीज़ल एसयूवी पर प्रतिबंध लगा दिया है। दिल्ली जैसे शहर में भी इसी तरह की कठोर नीतियों की जरूरत है। अगर यह कदम उठाया जाता है, तो यह भारत की ऑटो इंडस्ट्री के भविष्य को नए रूप में ढाल सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का सुझाव कितना प्रभावी होगा
अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि कोर्ट के सुझाव को सरकार कितना लागू करेगी। लेकिन इतना तय है कि दिल्ली की हवा और गंभीर हो चुकी है। प्रदूषण रोकने के लिए अब सामान्य उपाय नहीं, बल्कि कड़े और दूरगामी फैसलों की जरूरत है। लग्ज़री कारों को हटाने का सुझाव इसी दिशा में देखा जा रहा है—जहां आराम की जगह हवा की गुणवत्ता को प्राथमिकता दी जाए।
दिल्ली की सांसें बचाने का वक्त
दिल्ली आज उस मोड़ पर खड़ी है जहां हवा साफ करना सिर्फ एक नीति का विषय नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों का स्वास्थ्य बचाने का सवाल है। सुप्रीम कोर्ट का सुझाव एक चेतावनी भी है और एक दिशा भी। यदि सरकार, नागरिक और उद्योग मिलकर कदम उठाएं, तभी दिल्ली की हवा अगले कुछ वर्षों में सांस लेने लायक हो सकेगी। लग्ज़री कारों पर रोक भले विवाद का विषय बन गई हो, पर यह बहस ज़रूरी है—क्योंकि आखिरकार बात हवा की है, और हवा किसी एक की नहीं, हम सबकी है।














