
गुरुग्राम संजय कुमार मेहरा। भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने शनिवार की शाम को गुरुग्राम जिला भोंडसी जेल से राज्य की विभिन्न जेलों में कौशल विकास केंद्रों, पॉलिटेक्निक डिप्लोमा पाठ्यक्रमों एवं आईटीआई-स्तरीय व्यावसायिक कार्यक्रमों का औपचारिक शुभारंभ किया। इसी कार्यक्रम के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने पंजाब, हरियाणा एवं यू.टी. चंडीगढ़ में एक माह चलने वाले राज्यव्यापी नशा-रोधी जागरूकता अभियान का भी शुभारंभ किया। इस अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अहसनुद्दीन अमानुल्लाह, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू एवं उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश तथा राज्य प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी कार्यक्रम में उपस्थित रहे।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि यदि व्यक्ति जेल से बाहर आने के बाद उपयुक्त मार्गदर्शन, शिक्षा एवं कौशल समर्थन नहीं पाता तो उसका समाज में पुनर्वास कठिन हो जाता है। कई बार वह दोबारा अपराध चक्र में फंस जाता है। उन्होंने कहा कि यदि जेल या जैसा वे कहना पसंद करते हैं सुधार गृहvमें शिक्षा, कौशल, मनोवैज्ञानिक समर्थन और पुनर्वास की संरचित व्यवस्था न हो, तो जेलें अनजाने में वंचनाओं को और गहरा कर सकती हैं। आज की सुधारात्मक न्याय व्यवस्था पुनरावृत्ति रोकने के लिए योजनाबद्ध, सामूहिक और मानव-केन्द्रित रणनीति की मांग करती है।
अपने संबोधन में उन्होंने सुधारात्मक प्रणाली को मजबूत करने हेतु कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। उन्होंने कहा कि पुनर्वास केवल आशा पर नहीं, बल्कि एक योजनाबद्ध प्रक्रिया पर आधारित होना चाहिए। इसके लिए प्रत्येक जिले में पुनर्वास बोर्ड गठित किए जाएं, जिनमें प्रोबेशन अधिकारी, उद्योग प्रतिनिधि, सामाजिक संस्थाएँ एवं मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ शामिल हों ताकि प्रत्येक रिहाई एक ठोस कार्ययोजना के साथ हो।
उन्होंने प्रवासी मजदूरों की विशिष्ट संवेदनशीलताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि उनकी चुनौतियाँ परिस्थितिजन्य हैं, आपराधिक नहीं। उनके लिए सरल ज़मानत प्रक्रिया, बहुभाषीय कानूनी सहायता और आवश्यक दस्तावेज सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि मनोवैज्ञानिक पुनर्वास को व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ मजबूत किया जाना चाहिए। कौशल अवसर देता है, लेकिन मनोवैज्ञानिक स्थिरता व्यक्ति को आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती है। इस संदर्भ में आज आरंभ किया गया यूथ अगेंस्ट ड्रग्स अभियान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि प्रशिक्षण भविष्य की अर्थव्यवस्था के अनुरूप होना चाहिए। डिजिटल कौशल, लॉजिस्टिक सेवाएँ और आधुनिक ट्रेड भविष्य का रास्ता हैं। उन्होंने उद्योग जगत से अपील की कि वे जेलों को अपनाने, अप्रेंटिसशिप देने और प्रशिक्षित कैदियों को रोजगार उपलब्ध कराने में सहयोग करें।
उन्होंने ब्रिटेन में अपनाए गए एक अभिनव मॉडल का उल्लेख किया, जिसे बेंगलुरु की एक सॉफ्टवेयर कंपनी के सहयोग से विकसित किया गया है। इस मॉडल में कैदियों को निगरानी चिप लगाकर घर पर रहने की अनुमति मिलती है, जिससे उनका पारिवारिक जीवन, आय और सामाजिक जिम्मेदारियाँ बाधित नहीं होतीं। यह मानवीय सुधार मॉडल सुरक्षा और पुनर्वास के बीच संतुलन स्थापित करता है।
न्यायमूर्ति अहसनुद्दीन अमानुल्लाह ने कहा कि समाज का सबसे बड़ा कर्तव्य यह है कि वह सुधार कर चुके व्यक्तियों को सम्मानपूर्वक स्वीकार करे। यदि समाज स्वीकार नहीं करेगा, तो किसी भी पुनर्वास व्यवस्था का उद्देश्य अधूरा रह जाएगा।
न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने कहा कि जेलों को दंड के स्थानों से आगे बढ़कर अवसर, पुनर्निमाण और नई शुरुआत के केन्द्रों में बदलना अत्यंत आवश्यक है। यह तभी संभव होगा जब उन्हें कौशल, शिक्षा और रोजगार के अवसरों से जोड़ा जाए। न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने कहा कि इस पहल की सफलता के लिए सरकार को कैदियों के लिए ठोस रोजगार अवसर सुनिश्चित करने होंगे और सार्वजनिक एजेंसियों के साथ साझेदारी को मजबूत करना होगा। न्यायमूर्ति शील नागू ने कहा कि जेलों में कौशल विकास केंद्रों और आईटीआई कोर्सों का शुभारंभ हिरासत-आधारित व्यवस्था से सुधारात्मक व्यवस्था की ओर एक निर्णायक परिवर्तन है। पुनर्वास का वास्तविक उद्देश्य प्रशिक्षित कैदी को रोज़गार योग्य नागरिक में बदलना है।














