विरोध व विकास समाज को उन्नति दे

Advocacy and development society

दो मूलभूत पहलू हैं। पिछले कई सालों से पंजाब के शिक्षा विभाग व अध्यापकों में ‘पढ़ो पंजाब, पढ़ाओ पंजाब’ मुहिम को लेकर विवाद चल रहा था। इस विवाद के बावजूद दसवीं कक्षा के परिणामों ने यह साबित कर दिया कि यदि दोनों वर्ग कुछ विचारों के मतभेदों को भुलाकर शिक्षा बेहतरी के लिए दृढ़ हों तब परिणाम और सुधर सकते हैं। इस बार पंजाब शिक्षा बोर्ड के दसवीं के परीक्षा परिणामों में बड़े स्तर पर सुधार हुआ है। यह आंकड़ा 88 प्रतिशत को पार कर गया है जो विगत वर्ष में 58 प्रतिशत तक सीमित था। विभाग के सचिव कृष्ण कुमार व अध्यापकों में न केवल मतभेद रहे बल्कि हालात टकराव भरे भी बनते रहे। कई बार कानून-व्यवस्था की भी समस्या आई लेकिन वास्तविक्ता यह थी कि दोनों गुटों के शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने को लेकर अपने-अपने विचार थे लेकिन लक्ष्य एक ही था।

स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने के लिए विभाग व अध्यापकों की कार्यप्रणाली सराहनीय थी। अध्यापकों ने सरकारी स्कूलों की दशा को सुधारने के साथ-साथ लोगों में सरकारी स्कूलों की छवि को भी सुधारने का प्रयास किया, जिसका परिणाम है कि इस बार स्कूली दाखिलों में बढ़ोतरी हुई है। लंबे समय के बाद सरकारी स्कूलों ने निजी स्कूलों को पछाड़ दिया है। व्यवस्था व सुविधाओं को लेकर भी पंजाब के कई सरकारी स्कूल मीडिया की सुर्खियां बने हैं, जहां दाखिले को लेकर बच्चों के अभिभावकों में भारी उत्साह रहा है। दरअसल पिछले तीन दशकों से प्रबंधों व शिक्षा स्तर में गिरावट आने से सरकारी स्कूल पतन की तरफ जा रहे थे। केवल पंजाब ही नहीं उत्तर भारत के कई राज्यों में विद्यार्थियों के पास प्रतिशतता में 50 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज आ गई थी।

कई स्कूलों के बोर्ड की परीक्षा में बैठे सभी विद्यार्थी ही फेल होते रहे। यदि शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी व अध्यापक शिक्षा को समर्पित होकर काम करें तब कोई मंजिल दूर नहीं। बेहतर हो यदि अध्यापकों को धरना-प्रदर्शनों पर परेशान करने की बजाए सरकार वचनबद्धता से उनकी समस्याओं का हल निकाले। भले ही सरकार ने कुछ स्कूलों को स्मार्ट स्कूलों का दर्जा दिया है लेकिन दूसरे स्कूलों में भी वह सभी सुविधाएं मुहैया करवाई जाएं जो विद्यार्थी के बहुपक्षीय विकास के लिए आवश्यक हैं। स्कूलों में प्रिंसीपलों व अध्यापकों के रिक्त पदों पर भर्ती की जानी चाहिए।

ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में ग्यारहवी, बारहवीं में नान-मेडिकल, मेडिकल, कामर्स की शिक्षा अभी सपना ही है। यदि सरकार अध्यापकों की भर्ती व सुविधाओं पर तत्काल ध्यान दे तब दाखिलों में कमी नहीं आएगी। दसवीं के बेहतर परिणामों के लिए शिक्षा विभाग व अध्यापक बधाई के पात्र हैं। उम्मीद है कि शिक्षा क्षेत्र में अपने खोए हुए रुतबे को पंजाब फिर प्राप्त करेगा। यहां हरियाणा सरकार व शिक्षा विभाग को भी सीख लेनी चाहिए। हरियाणा में अभी भी परीक्षाओं में नकल नहीं रूक रही, सााि ही परीक्षा परिणामों में सुधार की बजाय गिरावट का आकड़ा नहीं थम रहा जिसे कि भावी पीढ़ियों के समुचित विकास के लिए थामना बेहद जरूरी है।

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