राजद्रोह के प्रावधान को चुनौती देने वाली एक और याचिका दायर

Supreme Court

नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। उच्चतम न्यायालय में एक और याचिका दायर करके भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए के तहत राजद्रोह के अपराध की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। महिला पत्रकार- पेट्रीसिया मुखिम और अनुराधा भसीन की ओर से यह याचिका दायर की गई है। राजद्रोह को चुनौती देने वाली यह पांचवी याचिका है। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि जब तक इस कानून को हटा नहीं दिया जाता तब तक पत्रकारों को डराने, चुप कराने और दंडित करने के लिए राजद्रोह अपराध का इस्तेमाल बेरोकटोक जारी है।

याचिका में कहा गया है कि जब तक इस प्रावधान को आईपीसी से हटा नहीं दिया जाता है, तो यह अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता के रास्ते में बाधक बनता रहेगा। इससे पहले दो पुरुष पत्रकारों ने राजद्रोह के प्रावधान वाली धारा 124ए की संवैधानिकता को चुनौती दी है, जिस पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया जा चुका है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने भी एक याचिका दायर की है।

सुप्रीम कोर्ट याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया था

सुप्रीम कोर्ट 15 जुलाई को एडिटर्स गिल्ड आॅफ इंडिया तथा एक पूर्व मेजर जनरल की याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया था जिन्होंने कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि उनकी मुख्य चिंता कानून के दुरुपयोग को लेकर है। शौरी ने अपनी याचिका में, अदालत से कानून को “असंवैधानिक” घोषित करने का आग्रह किया क्योंकि इसका भारी दुरुपयोग हुआ है। साथ ही नागरिकों के खिलाफ बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने के लिए मामले दायर किए जा रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने भी केन्द्र से किया था सवाल

राजद्रोह कानून को औपनिवेशिक काल की देन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी 5 दिन पहले केंद्र सरकार से सवाल किया है कि आखिर इसे हटाया क्यों नहीं जा रहा। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह देश में आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों की ओर से बनाया गया कानून था। उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह पर ‘औपनिवेशिक-काल’ के दंडात्मक कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि उसकी चिंता कानून के दुरुपयोग को लेकर है और उसने केंद्र से सवाल किया कि वह राजद्रोह पर औपनिवेशिक काल के कानून को समाप्त क्यों नहीं कर रहा।

 

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