बाबा महेंद्र सिंह टिकैत थे किसानों-मजदूरों के सच्चे मसीहा: बिजेंद्र सिंह 

Ghaziabad
Ghaziabad बाबा महेंद्र सिंह टिकैत थे किसानों-मजदूरों के सच्चे मसीहा: बिजेंद्र सिंह 

गाजियाबाद(सच कहूँ/रविंद्र सिंह)। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के संस्थापक एवं किसान आंदोलन के महानायक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की 90वीं जयंती के अवसर पर भाकियू कार्यकर्ताओं ने गाजियाबाद के कमला नेहरू नगर स्थित धरनास्थल पर हवन कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। चौधरी टिकैत के जन्म दिवस पर देश भर में किसानों ने अपने -अपने जनपद में हवन ,जरूरतमंदों को भोजन कराया। उनके पैतृक गाँव और किसानों की राजधानी मुजफ्फरनगर जिले के गांव सिसौली में भी “किसान जागृति दिवस” के रूप में  हवन आदि  कार्यक्रम आयोजित हुए। गाजियाबाद जनपद में “किसान जागृति दिवस”  कार्यक्रम का नेतृत्व भाकियू के जिलाध्यक्ष बिजेंद्र सिंह ने किया। इस मौके पर जिले भर से जुटे सैकड़ों किसानों ने बाबा टिकैत के पदचिन्हों पर चलने का संकल्प लिया।

जिलाध्यक्ष बिजेंद्र सिंह ने कहा कि महेंद्र सिंह टिकैत किसानों और मजदूरों के सच्चे मसीहा थे। बीबीसी लंदन द्वारा “दुनिया का बेताज बादशाह” की उपाधि से सम्मानित टिकैत ने समाज के सबसे कमजोर वर्गों की आवाज को बुलंद किया। उन्होंने कहा, “बाबा टिकैत ने कभी व्यक्तिगत लाभ की राजनीति नहीं की, उनका पूरा जीवन किसान और मजदूर की बेहतरी के लिए समर्पित रहा।कार्यक्रम के दौरान किसानों ने उनके जीवन संघर्षों को याद करते हुए कहा कि आज भी टिकैत का संघर्ष हर किसान के दिल में जीवित है। किसान नेताओं ने युवा किसानों से अपील की कि वे टिकैत के दिखाए रास्ते पर चलकर कृषि और किसान की गरिमा को बनाए रखें।

कार्यक्रम में भाकियू पदाधिकारियों सहित बड़ी संख्या में किसान, महिला कार्यकर्ता और युवा मौजूद रहे। हवन के बाद उपस्थित जनसमूह ने  “जय किसान, जय टिकैत”  के नारों से धरना स्थल को गुंजायमान कर दिया। इस मौके पर जनपद के समस्त भाकियू पदाधिकारी और सैकड़ों किसान मौजूद रहे।

किसान आंदोलन की मशाल थे टिकैत: चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के संघर्षपूर्ण जीवन की गाथा

भारतीय किसान आंदोलन के इतिहास में अगर किसी नाम को प्रतीक के रूप में याद किया जाता है, तो वह है  चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत । पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर ज़िले के सिसौली गांव से निकलकर दिल्ली के रामलीला मैदान और नजफगढ़ की सड़कों तक, टिकैत का जीवन किसानों के हक और हक़ूक़ की लड़ाई का पर्याय बन गया। किसानों के मसीहा माने जाने वाले टिकैत न केवल एक संगठनकर्ता थे, बल्कि वह उस दौर की आवाज़ थे जब ग्रामीण भारत की उपेक्षा हो रही थी और किसान नीतिगत निर्णयों से बाहर थे। उन्होंने “भारतीय किसान यूनियन” (भाकियू ) की स्थापना कर किसानों को एक मंच पर संगठित किया और सरकार की नींद उड़ाई।

शुरुआती जीवन और नेतृत्व की शुरुआत

चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जन्म 6 अक्टूबर 1935  को उत्तर प्रदेश के सिसौली गांव में एक जाट किसान परिवार में हुआ। परंपरागत खेती से जुड़े परिवार में पले-बढ़े टिकैत ने कम उम्र में ही किसानों की समस्याओं को नजदीक से देखना शुरू किया। मात्र  23 वर्ष की उम्र में , उन्हें  खाप पंचायत  के ‘चौधरी’ का पद मिला ,यह शुरुआत थी उनके जननेता बनने की।

 भारतीय किसान यूनियन की स्थापना

टिकैत ने वर्ष 1986 में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू ) को पुनर्गठित किया, और उन्होंने खुद इसे एक गैर-राजनीतिक, लेकिन प्रभावशाली किसान संगठन के रूप में खड़ा किया। उनका उद्देश्य था,बिजली, पानी, फसल की कीमत और कर्जमाफी जैसे मुद्दों  पर किसानों की एकजुटता।

ऐतिहासिक आंदोलन और सरकार से टकराव

टिकैत के नेतृत्व में कई बड़े किसान आंदोलन हुए, उनमें प्रमुख थे। 1988 का मेरठ आंदोलन – जिसमें हजारों किसानों ने ज़बरदस्त प्रदर्शन कर सरकार को झुकने पर मजबूर किया। 1989 का दिल्ली रामलीला मैदान आंदोलन– 5 लाख से अधिक किसानों ने शांति से धरना दिया, जो इतिहास में सबसे बड़ा शांतिपूर्ण किसान आंदोलन माना गया। 1990 के दशक में कई बार बिजली दरों, गन्ने के मूल्य और सिंचाई सुविधाओं को लेकर यूपी सरकार से सीधा टकराव हुआ ।

 राजनीति से दूरी, जनहित में  नज़दीकी

चौधरी टिकैत हमेशा राजनीति से दूरी बनाकर चलते रहे। उनका मानना था कि “राजनीति किसानों को बांटती है, आंदोलन उन्हें जोड़ता है।” हालांकि, उनका प्रभाव ऐसा था कि कई सरकारें उनके इशारे पर नीतियों में बदलाव करने को विवश रहीं।

 विरासत और आज का संदर्भ

 देश के किसानों -मजदूरों के लिए वो सबसे कष्ट की घड़ी थी जब 15 मई -2011 में उनका निधन हो गया, लेकिन आज भी उनके बेटे चौधरी  नरेश टिकैत और चौधरी  राकेश टिकैत उनके पदचिन्हों पर चलते हुए,भारतीय किसान यूनियन  (भाकियू) का नेतृत्व कर रहे हैं। दो अक्टूबर 2018 को दिल्ली के लिए चली ,हरिद्वार से किसान क्रांति यात्रा, के बाद  2020–21 के किसान आंदोलन  में चौधरी  राकेश टिकैत की भूमिका ने एक बार फिर टिकैत नाम को राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बना दिया। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जीवन भारतीय किसान आंदोलन का जिंदा दस्तावेज़ है। उन्होंने न केवल किसानों को संगठित किया, बल्कि उन्हें आत्मसम्मान के साथ खड़ा होना सिखाया। आज जब देश में कृषि नीतियों पर फिर से मंथन हो रहा है, टिकैत की सोच और संघर्ष पहले से कहीं ज़्यादा प्रासंगिक हो गए हैं।