हिजबुल पर शिकंजा

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अमेरिका ने एक और कार्रवाई करते हुए आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन पर पाबंदी लगा दी है। यह कदम पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका है। पाकिस्तान द्वारा घोषित हिजबुल मुजाहिद्दीन कश्मीर की कथित आजादी में आतंकवाद का समर्थन कर रहा था। इससे पूर्व संयुक्त राष्ट्र अमेरिका मुजाहिद्दीन प्रमुख सलाहुदीन को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर चुका है। इस घटनाक्रम से पाकिस्तान की नौटंकी और भद्दी हरकतों का पदार्फाश हुआ है।

अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान कश्मीर की आजादी की दुहाई देकर सलाहुद्दीन की पीठ थपथपा रहा था। सलाहुद्दीन भारत का वांछित आतंकवादी है जिसकी सक्रियता से जम्मू कश्मीर में आतंकवादी हिंसा हो रही है। अमेरिका के इस नए फैसले से भारत का पक्ष मजबूत हो गया है।

पाबंदी के बाद अमेरिका को पाकिस्तान पर और दबाव बनाने की आवश्यकता है ताकि हिजबुल के खिलाफ कार्रवाई की जा सके। आम तौर पर होता यही रहा है कि वांछित आतंकवादी भी पाकिस्तान में सरेआम रैलियां करते नजर आते हैं। हाफिज मोहम्मद सैय्यद के सिर पर अमेरिका ने इनाम भी रखा है।

इसके बावजूद सैय्यद हजारों की तदाद में लोगों को इकठ्ठा कर भारत के खिलाफ जहर उगलता रहता है। जमात-उद-दावा पर पाबंदी के बाद सैय्यद ने अपना नया संगठन तहरीक-ए-आजादी बना लिया है। पाबंदी का प्रभाव नाम बदलने से समाप्त हो जाता है।

विश्व के प्रत्येक देश की जिम्मेवारी बनती है कि आतंकवादी घोषित हो चुके लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय एकजुटता की अभी भी कमी है। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के प्रभावशाली सदस्य देश अभी भी आतंकवाद के मामले पर बंटे हुए हैं।

चीन का आतंकवाद के खिलाफ रवैया मौकाप्रस्त बन गया है। रूस आतंकवाद के मामले में मौन भूमिका निभा रहा है। चीन, भारत एवं अमेरिका की दोस्ती को अपने लिए खतरा समझ पाकिस्तान ही नहीं बल्कि आतंकवादियों का भी समर्थन कर रहा है। यदि ओसामा बिन लादेन आतंकवादी था तो अमेरिका ने उसे पाक से ढूंढा और कुछ घंटों में मार गिराया।

आतंकवाद विरुद्ध दोहरे मापदंड खत्म किए जाने की जरूरत है। जब तक सुरक्षा परिषद के सदस्य आतंकवाद के खिलाफ स्पष्ट नीतियां नहीं बनाते तब तक आतंकवाद को खत्म करना आसान नहीं है। मुजाहिद्दीन मामले में अमेरिका का कदम अच्छा है, किंतु यह बात पाक और चीन को हजम नहीं हो रही। फिर भी यह घटनाक्रम भारत के लिए जीत के जैसा है।

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