सत्संग भी करेंगे, नाम भी देंगे दूसरा दरवाजा खुलने पर

shah mastana ji sach kahoon

घुक्कर सिंह नम्बरदार गांव झुम्बा भाई का जिला बठिंडा ने बताया कि सन् 1959 की बात है कि मैं अपने गांव की साध-संगत के साथ डेरा सच्चा सौदा सरसा में सत्संग सुनने के लिए आया हुआ था। पूज्य सतगुरू जी के दर्शन करके मुझे असीम खुशी मिली। हमारे गांव की साध-संगत चाहती थी कि हमारे गांव में सत्संग हो। मैं और भक्त ईशर सिंह ने पूजनीय बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज के पावन चरण कमलों में अर्ज की कि साईं जी! हमारे गांव में भी सत्संग करो जी। परम दयालु दातार जी ने फरमाया,‘‘भाई! तुम्हारा कौनसा गांव है, घुदा-झूम्बा?।’’ हमनें कहा कि हां जी। वही झुम्बा। सतगुरू जी ने फरमाया, ‘‘भाई! जब दूसरा दरवाजा खुलेगा अर्थात् (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के स्वरूप में आकर) तब वहां सत्संग करेंगे।’’ हमनें विनती की कि सार्इं जी ! वहां बहुत से लोगों ने नाम लेना है। शहनशाह जी ने फिर अपने वचन को दोहराया, ‘‘वहां पर सत्संग भी करेंगे, नाम भी देंगे, दूसरा दरवाजा खुलने पर।’’ उस समय शहनशाह जी पवित्र वचन समझ नहीं सके।

कुछ समय बाद ही 28 फरवरी 1960 को शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज की गुरूगद्दी व डेरा सच्चा सौदा की तमाम जिम्मेवारी सौंप दी और वचन फरमाए हमने आज सरदार सतनाम सिंह जी को आत्मा से परमात्मा कर दिया है। 18 अप्रैल 1960 को शाहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज नूरी स्वरूप बदलकर ज्योति जोत समा गए। सच्चे रूहानी फकीरों के वचन सच्चे और अटल होते हैं। उसके बाद पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने बेरपवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज द्वारा फरमाए गए पावन वचनों अनुसार गांव में सत्संग भी किया और नाम भी दिया। उस समय हमें पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी के वचनों की समझ आई कि ‘सत्संग भी करेंगे , नाम भी देंगे। दूसरा दरवाजा खुलने पर।’ इस प्रकार पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने अपने वचन अपनी दूसरी बॉडी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज) के रूप में पूरे किए।

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