कभी चलता था पंजाब ट्रांसपोर्टर का ‘सिक्का’, आज मंदी का शिकार

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प्राईवेट ट्रांसपोर्टरों पर दिखाई दे रहा सरकारी मुफ्त सफर योजना का बड़ा प्रभाव

  • 2800 के करीब प्राईवेट बसों का चक्का घूमना हुआ मुश्किल, आमदनी पर भारी पड़ रहा खर्च

संगरूर (सच कहूँ/गुरप्रीत सिंह)। किसी समय पंजाब की धाक जमाने वाली सख्शियतों में शामिल बड़े ट्रांसपोर्टर आज इतनी मन्दहाली में से गुजर रहे हैं कि उनको अपनी मशहूर ट्रांसपोर्ट का नाम चलाने के लिए बड़ा घाटा सहन करना पड़ा रहा है। पंजाब में जब से महिला सवारियों के लिए (Government Free Travel Scheme) सरकारी बसों में मुफ्त सफर की सुविधा दी जाने लगी है, तब से ही पंजाब के प्राईवेट बसें चलाने वाले ट्रांसपोर्टर इसकी बुरी तरह चपेट में आ गए हैं क्योंकि उनको अपनी बसों के लिए सवारियां मिलनी बंद हो गई हैं, जिस कारण मजबूरन उनको बसों में सवारियां चढ़ाने के लिए विशेष ‘आॅफर’ देने पड़ रहे हैं।

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हासिल जानकारी के अनुसार पंजाब में 2800 के करीब प्राईवेट बसें सड़कों पर दौड़ रही हैं, जो हजारों किलोमीटर का सफर तय कर सवारियों को उनके घरों तक पहुंचाती हैं। आज से दस वर्ष पहले पंजाब में बस ट्रांसपोर्टर का धंधा मुनाफे वाला माना जाता था, लेकिन जब से सरकार ने महिलाओं के लिए मुफ्त सफर शुरू किया है, तब से ही इस धंधें के पैर बुरी तरह लड़खड़ा गए। धीरे-धीरे इस धंधे पर इतना ज्यादा बुरा असर दिखाई देने लगा कि विभिन्न क्षेत्रों के नामी ट्रांसपोर्टर भी संभल नहीं सके, क्योंकि सवारियों के बिना बसें खाली रहने लगीं व आमदन पर खर्च भारी पड़ने लगे।

इस सबंधी पंजाब के विभिन्न ट्रांसपोर्टरों से बात की तो उनमें से कईयों ने सिर्फ इतना कहा हम तो अब सिर्फ नाम की ही बसें चला रहे हैं। एक छोटे टांसपोर्टर केवल सिंह ने बताया कि आज पंजाब की सड़कों पर अपनी बस्स चलाना इतना आसान नहीं रहा। उन्होंने बताया कि तकरीबन 40 लाख रूपये एक बस को सड़क पर चलाने के लिए लगाने पड़ते हैं। सबसे पहले रूट पर्मिट से लेकर कई तरह के टैैक्स, फिर रोजमर्रा के खर्च की बस करवा रहे हैं। उन्होंने बताया कि एक बस को 2.82 रुपये प्रति किलोमीटर रोजाना टैक्स अदा करना पड़ रहा है।

भले ही अगर कोई बस 300 किलोमीटर चलती है तो उसे महीने का 27 हजार के लगभग टैक्स देना पड़ता है लेकिन आज खाली बसें लेकर हम सड़कों पर घूम रहे हैं और बस स्टैंड फीस तक भी नहीं निकाल पा रहे। उन्होंने बताया कि बस के नये टायर ही तकरीबन 50 हजार रूपये के हैं, जिनको एक लाख किलामीटर के बाद बदलना पड़ता है लेकिन आज के हालातों में ट्रांसपोर्टर सिर्फ टायरों में रबड़ डालकर ही अपना समय निकाल रहे हैं। नये टायर डालना हमारे बस की बात नहीं रह गई है।

एक और ट्रांसपोर्टर रमनदीप सिंह ने बताया कि अगर किसी ने नया रूट पर्मिट लेना है तो उसे 2750 रुपये प्रति किलोमीटर तक के पैसे अदा करने पड़े हैं, भाव किसी को 300 किलोमीटर का पर्मिट मिलता है तो 2750गुणा300 बन जाता है, जो लाखों में चला जाता है। इसके अलावा बस की नई चासी 24 लाख में पड़ती है। इतने रूपये लगाकर भी आज कोई भी ट्रांसपोर्टर पेट भर खाना नहीं खा पा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को इस धंधे को बचाने के लिए कुछ न कुछ करना होगा, तभी यह धंधा बच सकता है।

सुखदीप सिंह ने बताया कि प्राईवेट बसें भी लोक सेवा का जरिया है क्योंकि छोटे रूटों पर जहां सरकारी बसें नहीं जाती, वहां प्राईवेट बस चालक लोगों को सुविधा देते हैं लेकिन अब यह धंधा खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है। इस धंधे से हजारों परिवार जुड़े हुए हैं, अकेले ट्रांसपोर्टर ही नहीं, ड्राईवर, कंडक्टर, अड्डा इंचार्ज, हैल्पर के अलावा और भी बड़ी संख्या में लोग इस धंधे से जुड़े हुए हैं लेकिन आज प्राईवेट बसों के जिस तरह के हालात हैं, वह बेहद बुरे हैं, उन्होंने कहा कि नया बना पटियाला के बस स्टैंड में एक बार बस अंदर लेकर जाने व बाहर लेकर आने पर 190 रुपये अड्डा फीस लगती है और कई बार तो हालात यह होते हैं कि बस में 10 सवारियां होती हैं और उन सवारियों का किराया भी बस स्टैंड फीस से कम होता है।

‘बड़े ट्रांसपोर्टरों और घरानों के चलते भुगत रहे घाटा‘ | (Punjab Transport)

पंजाब के एक बस ट्रांसपोर्टर ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पंजाब की राजनीति में बड़ा प्रभाव रखने वाले बड़े घराने, जिनकी बड़ी संख्या में बसें हैं, उनके चलते भी हमारी कोई बात नहीं बन रही। उन्होंने कहा कि सभी बस ट्रांसपोर्टर बड़े नहीं है। पंजाब के 80 फीसदी से अधिक ट्रांसपोर्टर ऐसे हैं, जिनके पास 3 या 4 बसें ही हैं, लेकिन सरकार सभी ट्रांसपोर्टरों को एक समान देख रही है, जिसका खामियाजा छोटे ट्रांसपोर्टर भुगत रहे हैं।

सरकार निजी बस ट्रांसपोर्टरों को भी सहारा दे: डॉ. मान

पंजाब के प्रसिद्ध समाज सेवी डॉ. एएस मान ने कहा कि आज ज्यादातर पंजाब के बस ट्रांसपोर्टर बुरे हालातों में से गुजर रहे हैं, जब से सरकार ने महिलाओं का मुफ्त सफर शुरू किया है, तब से ही प्राईवेट बसें खाली रहने लगी हैैं व इस धंधे से भी हजारों छोटे परिवार जुड़े हुए हैं। सरकार को इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है। इन धंधों में कोई मुनाफा न होने के कारण पंजाब के युवा विदेशों में जा रहे हैं। अगर पंजाब के ब्रेन को ड्रेन होने से रोकना है तो सरकारों को यहां धंधों को उत्साहित करना होगा व मुफ्त बस सफर की सुविधा को एक दायरे में लाना होगा।

क्या कहते हैं संगठन के नेता गमदूर सिंह | (Punjab Transport)

जब इस संबंधी प्राईवेट बस चालक की संगठन के राज्य नेता गमदूर सिंह धालीवाल से बात की तो उन्होंने कह कि पंजाब में प्राईवेट बसों का कारोबार अंतिम सांस ले रहा है। उन्होंने कहा कि पंजाब के बड़ी संख्या में ट्रांसपोर्टर परेशानियों के चलते गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हो चुके हैं क्योंकि बड़ी संख्या में ट्रांसपोर्टर टैक्स भरने में असमर्थ हैं, सरकार इन ट्रांसपोर्टरों को छूट देने की जगह और परेशान कर रही है।

उन्होंने कहा कि हम कई बार सरकार से मिलने का समय मांग चुके हैं लेकिन अभी तक कोई समय नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस धंधे को लेकर कुछ नहीं सोचा तो हजारों परिवारों को रोटी के लाले पड़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम तो सरकार को सिर्फ यही कहना चाहते हैं एक बार मिलकर उनकी परेशानी सुनी जाए व उनके व्यापार की डूब रही किश्ती को किनारे लगाया जाए।

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