भाजपा बनाम शेष राजनीतिक पार्टियांक्षे

BJP, Political Parties, Mamata Banerjee

त्रीय क्षत्रपों में 2019 के आम चुनावों में नेतृत्व करने की होड़ मची हुई है। इनमें से अधिकतर नेता दिल्ली पहुंच रहे हैं और वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि मजबूत भाजपा और इसकी मोदी-शाह की जोड़ी के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा के निर्माण में वे आगे रहें। इस कम में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तूणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने न केवल सभी पार्टियों के नेताओं अपितु अरूण शौरी, यशवनत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे भाजपा के बागी नेताओं को भी एकजुट करने का प्रयास किया।

बुधवार को उन्होंने राकांपा, सपा, राजद, तेदेपा, तेलंगाना राष्ट्र समिति, द्रम्रक और शिव सेना के नेताओं से मुलाकात की। उन्होने यह मुलाकात संसद के सत्र के दौरान संसद परिसर में की। इस बैठक के लिए आमंत्रित नेताओं में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम शामिल नहंी था अपितु सोनिया गांधी का था। इसका तात्पर्य यह है कि ममता चाहती हैं कि 2019 के चुनावों में क्षेत्रीय पार्टियां आगे रहें। ममता के इस कदम से अन्य नेता भी प्रभावित हैं इसीलिए आंध प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेदेपा अध्यक्ष चन्द्रबाबू नायडू तथा तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति अध्यक्ष ने अगले सप्ताह दिल्ली आने का निर्णय किया है।

हालांकि दोनों नेता अपने मुद्दों पर और दलों का समर्थन मांगने आ रहे हैं किंतु इस बात से इंकार नहंी किया जा सकता है कि वे संघीय मोर्चा के निर्माण में अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं। नेतृत्व की होड़ में लगे इन नेताओं को ध्यान में रखना चाहिए कि नेत्त्व की होड़ से उनका उद्देश्य भटक सकता है। उत्तर प्रदेश में नाम पर राजनीति: क्या शेक्सपीयर की इस उक्ति कि नाम में क्या रखा है को योगी का उत्तर प्रदेश समझ पाएगा? शायद नहीं। और इसी के चलते लगता है राज्य में एक अनावश्यक विवाद पैदा हो जाएगा।

बुधवार को राज्य की भाजपा सरकार ने सभी विभागों और उच्च न्यायालय की इलाहाबाद और लखनऊ खंडपीठों को निर्देश देते हुए आदेश जारी किया कि सभी दस्तावेजों और अभिलेखों में डॉ0 अम्बेडकर के नाम में रामजी भी जोडा जाए और अब उनका नाम डा0 भीमराव रामजी अंबेडकर होगा। इसके लिए सरकार ने तर्क दिया है कि संविधान की आठवीं अनुसूची के पन्नों पर उन्होने अपने हस्ताक्षर इसी नाम से किए हैं और साथ ही रामजी उनके पिताजी का नाम है तथा महाराष्ट्र में बेटा अपने पिता का नाम मध्य नाम के रूप में जोड़ता है।

साथ ही अंबेडकर की अंग्रेजी वर्तनी वैसे ही रहेगी किंतु हिन्दी में उसे आंबेडकर पढ़ा जाएगा। सरकार के इस कदम से विवाद पैदा होगा तथा बसपा और सपा इसमें राजनीति की बू सूंघेंघे। दलित आदर्शों के साथ राजनीति और इसके माध्यम से दलित वोट बैंक को लुभाना हिन्दुत्व पार्टी के लिए आसान नहंी है। इससे विरोधी दलों को एकुजट होने का एक और मौका मिलेगा।

कर्नाटक में चुनावी समर: कर्नाटक में चुनावों का बिगुल बज गया है। राज्य में चुनाव 12 मई को होंगे और परिणाम 15 मई को घोषित किया जाएगा। राज्य में सत्ता के दो मुख्य दावेदार भाजपा और कांग्रेस ने प्रचार कार्य में तेजी ला दी है। किंतु शुरूआत ही गलत हुई है अ‍ैर निर्वाचन सदन भी विवाद में फंस गया है तथा उसकी निष्पक्षता पर प्रश्न चिह्न लग गया है।

मंगलवार को निर्वाचन आयोग द्वारा चुनावों की तारीख की घोषणा से पूर्व ही भाजपा के आईटी प्रकोष्ठ के सदस्य ने चुनावों की तारीख ट्वीट कर सार्वजनिक कर दी। इसी तरह कांग्रेस के एक स्थानीय नेता ने भी निर्वाचन आयोग से पहले चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी थी। हालांकि उनकी ओर से चुनाव की तारीख तो वही थी किंतु मतगणना की तरीख गलत थी।

उन्होंने कहा कि उन्हें यह सूचना टीवी समाचार से मिला। तथापि यह मामला यहंी समाप्त नहंी हुआ और विपक्ष को यह पूछने का बहाना मिल गया कि क्या चुनावों की तारीख की घोषणा करने से पूर्व निर्वाचन अयोग ने भाजपा से परामर्श किया था। निर्वाचन आयोग ने इस मामले में जांच की शुरूआत कर दी है। क्या यह जांच स्वतंत्र और निष्पक्ष होगी?

बिहार पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक दंगे: बिहार और पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा जारी है। पिछले सपताह दोनों राज्यों में रामनवमी के अवसर पर पुलिस को सजग रहना पडा। बिहार के मुंगेर, भागलपुर और सीवान सहित सात जिलों में सांप्रदायिक तनाव बना रहा तथा अनधिकृत धािर्मक जुलूसों और मूर्ति विसर्जन जुलुसों को लेकर दोनों समुदायों के बीच झड़प हुई।

इन जुलसों के दौरान विवादास्पद गीत गाए गए तथा भडकाऊ नारे लगाए गए। हिंसा के दौरान पुलिसकर्मियों सहित सौ से अधिक लोग घायल हुए तथा अनेक दुकानों और वाहनों को आग लगायी गयी। अर्धसैनिक बल तथा रैपिड एक्शन फोर्स की तैनाती की गयी और प्रभावित इलाकों में निषेधाज्ञा लागू की गयी। इसी तरह ममता के बंगाल के रानीगंज में भाजपा द्वारा आयोजित शोभा यात्रा के एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र में प्रवेश के प्रयास के बाद टकराव में तीन व्यक्ति मारे गए और अनेक अन्य घायल हुए। बिहार में भाजपा की सहयोगी जद (यू) ने उसे चेताया है तो केन्द्र ने बंगाल सरकार से रिपोर्ट मांगी है। इस दोहरे मापदंड पर भी विवाद पैदा होने वाला है।

राज्य और आॅनर किलिंग: उच्चतम न्यायालय साधुवाद का पात्र है और यदि उसके द्वारा जारी दिशा-निदेर्शों का पालन किया गया तो राज्यों को दंपत्तियों को आॅनर किलिंग से संरक्षण देना होगा। न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने आदेश दिया कि किसी वर्ग के सम्मान की संविधानेत्तर धारणा के आधार पर परिवार या समुदाय के सदस्यों द्वारा किसी व्यक्ति को अपनी पसंद के विवाह करने के अधिकार से वंचित नहंी किया जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि वयस्क व्यक्तियों को अपनी पसंद की शादी करने के लिए परिवार या समुदाय की सहमति लेने की आवश्यकता नहंी है और ऐसे व्यक्ति के स्तवंत्रता के अधिकार की निरंतर रक्षा की जानी चाहिए।

न्यायालय ने राज्य सरकार और पुलिस प्राधिकारियों को कहा है कि वे ऐसे जिलों और गांवों की पहचान करे जहां पर आॅनर किलिंग होती है। इस मुद्दे पर खाप पंचायतों को बैठक करने की अुनमति न दी जाए और यदि दंपत्तियों को जान से मारने की धमकी दी जाती है तो उस क्षेत्र में धारा 144 लागू की जाए और ऐसे लोगों की गिरफ्तारी की जाए तथा उनके विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की जाए। न्यायालय ने राज्य के प्राधिकारियों से कहा कि वे ऐसे दंपत्तियों के विवाह करने में मदद करें और उन्हें सुरक्षित घरों में रखें और उन्हें सुरक्षा भी उपलब्ध कराए। न्यायालय के इस आदेश से ऐसे दंपत्ति खुश होंगे किंतु प्रश्न उठता है कि क्या वे राज्य प्राधिकारियों और पुलिस पर भरोसा कर पाएंगे?

जातिविहीन समाज की ओर बढ़ता केरल: राजनीतिक दलों और राजनेताओं को केरल के बच्चों से सबक लेना चाहिए। केरल के युवा छात्रों ने जाति और धर्म को नकार दिया है जबकि नेता निर्लज्जता से इन्हें राजनीति में मुद्दा बनाते हैं। राज्य में कक्षा 1 से कक्षा 10 तक के 1.23 लाख छात्र अपनी जाति या धर्म का उल्लेख नहंी करेंगे और स्कूल में प्रवेश के समय जाति और धर्म के कॉलम खाली छोडेंगे। इन छात्रों के लिए वर्ष 2017-18 एक रिकार्ड वर्ष होगा तथा राज्य में कुल स्कूल जाने वाले छात्रों में ऐसे छात्रों की संख्या 2 प्रतिशत होगी।

जातिविहीन समाज के निर्माण में इन छात्रों की पहल से अनेक लोग उत्साहित हैं। किंतु देखन यह है कि क्या इसका प्रभाव इन छात्रों के प्रगतिशील मन पर बना रहता है या नहीं क्योंकि अब स्कूल इन छात्रों को अपनी जाति या धर्म का उल्लेख करने के लिए बाध्य नहंी कर सकते हैं और न्यायालय ने भी ऐसा आदेश दिया है। साथ ही हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि शिक्षा कौशल के माध्यम से प्राप्त की जानी चाहिए न कि किसी तरह के आरक्षण से। यह एक छोटीकिंतु एक सुखद पहल है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए।

इंसाफ