चीनी जल वर्चस्व एवं जल हथियार की चुनौती एवं समाधान

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भारतीय सीमा में चीन द्वारा लगातार घुसपैठ की खबरों के बीच तिब्बत के रास्ते भारत में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रोक दिया गया है। इसके पीछे चीन का हाथ होने की बात सामने आई है। पानी रूकने की वजह से अरूणाचल प्रदेश के तूतिंग, यिंगकियोंग और पासीघाट इलाके में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गई है। साथ ही अरूणाचल के जंगल और जलीय पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। गौरतलब है कि चीन ने तिब्बत में बहने वाली यारलुंग सांगपो नदी का पानी रोक दिया है।

ये नदी जब अरुणाचलप्रदेश में प्रवेश करती है, तो इसे सियांग के नाम से पुकारा जाता है। आगे चलकर असम में ये ब्रह्यपुत्र के नाम से पहचानी जाती है। चीन के जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार इस नदी के मिलिन सेक्शन में भारी मात्रा में भूस्खलन हुआ है, जिसकी वजह से ब्रह्यपुत्र की मुख्यधारा प्रभावित हुई है। लेकिन कूटनीतिक विशेषज्ञ इसे प्राकृतिक घटना नहीं मानते,अपितु यह चीन की जल कूटनीति का हिस्सा है। बताया जा रहा है कि चीन ने कृत्रिम भूस्खलन कर ब्रह्यपुत्र नदी के बीच में एक झील का निर्माण कर दिया है, जिसमें पानी के स्तर में 40 मीटर की वृद्धि हुई है।

यह झील भी अब भारत के लिए खतरा बनी हुई है। जब इस ब्लॉकेज को साफ किया जाएगा तो नदी के जलस्तर में अप्रत्याशित वृद्धि से तबाही भी आ सकती है। जून 2000 में कुछ ऐसा ही हुआ था,जब ब्रह्यपुत्र नदी में चीन की तरफ से अचानक पानी छोड़ने की वजह से अरुणाचल प्रदेश में काफी नुकसान हुआ था।
वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में पानी एक महत्वपूर्ण संसाधन हो गया है, और यह संघर्ष का कारण बन सकता है। चीन ने जलसंसाधनों को भी आक्रामक विस्तारवाद का न केवल हिस्सा बना दिया है, अपितु जल संसाधनों को भी हथियार के रुप में प्रयोग करने की तैयारी की है। इस तरह अब ‘जल संसाधन ‘का ‘जल हथियार’ के रुप में प्रयोग करने की चीनी मंशा की संभावनाएँ व्यक्त की जा रही है।

इस समय चीन तिब्बत में विशाल जल संसाधन पर कब्जा किये हुए है और भारत में बहने वाली बहने वाली नदियों का स्रोत भी वही जल संसाधन है। भारत के उत्तर पूर्व में बहने वाली ब्रह्मपुत्र जलशक्ति का एक बड़ा स्रोत है और पनबिजली पैदा करने के लिए तथा अपने शुष्क उत्तरी क्षेत्र की तरफ बहाव मोड़ने के लिए चीन की इस पर नजर है। इस हालात ने भारत में चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि भारत एक निम्न नदी तटीय देश है। इसके अलावा,पर्यावरण क्षरण तथा पानी की घटती मात्रा भारतीय नीति निमार्ताओं के समक्ष चुनौती है। बता दें कि साल की शुरूआत में भी सियांग और ब्रह्यपुत्र नदी में चीन की तरफ से भारी गंदगी और बाँधों के मलबों को फैला दिया गया था।

बाद में चीन ने इसका कारण भी यारलुंग सांगपो में आए भूकंप के मलबे को बताया था। भारतीय देहरादून वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों का मानना है कि चीन के पास पानी की इतनी शक्ति है कि अगर भारत ने उसपर नजर नहीं रखी तो बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। देहरादून वाडिया संस्थान के वैज्ञानिक संतोष राय के अनुसार अगर चीन घाघरा,गंडक और ब्रह्यपुत्र जैसी नदियों का पानी रोककर अचानक छोड़ता है भारत के लिए हालत बेहद खतरनाक हो जाएंगे। इस संदर्भ में हाल ही में भारत और चीन के बीच यारलुंग सांगपो नदी के पानी का डेटा साझा करने का करार हुआ था। लेकिन चीन इस समझौते का सही ढंग से पालन करता हुआ नहीं दिख रहा है।

चीन जल का प्रयोग संसाधन के रुप में तो कर ही रहा है, वहीं पानी का प्रयोग जल हथियार के रुप में भी कर सकता है। वैज्ञानिकों ने कई बार ब्रह्मपुत्र के जल बहाव में कई वर्ष पुराने पानी को पाया है, जो बांध का जमा हुआ पानी होता है। इससे चीन के खतरनाक इरादों को समझा जा सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार चीन पानी रोककर छोड़ता है तो असम बंगाल बांगलादेश और मेघालय को डुबा सकता है।

पानी पर जोर देने वाले देश चीन के पास प्रति व्यक्ति पानी की हिस्सेदारी केवल 2093 क्यूबिक मीटर है तथा 2013 में चीन के जल संसाधन मंत्रालय ने घोषणा कर दी कि विगत 60 सालों में 23,000 नदियाँ देश से लुप्त हो चुकी हैं। चूँकि ज्यादातर जल संसाधनों पर चीन का कब्जा है और भारत निम्न नदी तटीय देश है। भारत और चीन दोनों की बढ़ती जनसंख्या के लिए संसाधनों एवं बुनियादी वस्तुओं की बढ़ती माँग से संभावना व्यक्त की जाती है कि पानी की माँग भी बढ़ेगी।

चीन का किसी भी जल समझौते में प्रवेश करने से लगातार इंकार ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध को लेकर अहम टकराहट को बल दिया है। दुनिया के कुछ शुष्क क्षेत्रों के साथ एक आर्थिक शक्तिगृह के रुप में चीन भी एक प्यासा देश है। 1.3 अरब जनसंख्या के साथ चीन दुनिया का सबसे आबादी वाला देश है। चीन में अप्रत्याशित रुप में प्रदूषित नदियों की संख्या में वृद्धि हो रही है, ऐसे में चीन के लिए पानी बेहद महत्वपूर्ण संसाधन है। तिब्बत का क्षेत्रफल लगभग 470,000 वर्ग किमी है और इस पर चीन ने 1950 में ही कब्जा जमा लिया था।

तिब्बत का यह पठार सही मायने में पानी का विशाल भंडार है और उपमहाद्वीप में ज्यादातर नदियों का उद्गमस्थल भी है। विशेषज्ञों के अनुसार चीन के पास जितना पानी है, उससे 40,000 गुना पानी तिब्बत के पास है। ज्यादातर नदियों का उद्गम तिब्बत से होने के कारण इस पर चीन का एकाधिकार है, ये नदियाँ निम्न तटीय देशों से होकर बहती हैं और आने वाले वर्षों में भारत ,बांग्लादेश तथा म्यांमार जैसे देशों की कठिनाइयाँ बढ़ सकती हैं। चीन ने दुर्भाग्यवश अपने इन पड़ोसियों की चिंताओं की अवहेलना की है। भारत तिब्बत से निकलने वाली नदियों पर बहुत हद तक निर्भर है, जिनका कुल बहाव प्रतिवर्ष 627 क्यूबिक किलोमीटर है और जो भारत के कुल नदी जल संसाधन का 34 प्रतिशत है।

राहुल लाल

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