भारत का विकल्प बनने की फिराक में चीन

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इसमें कोई दुविधा नहीं कि भारत और नेपाल के बीच सम्बंध हमेशा अच्छे रहे हैं और सम्भवत: आगे भी अच्छे रहेंगे। धार्मिक और सांस्कृतिक दृश्टि से ही नहीं बल्कि रीति-रिवाज, परम्परा और व्यापार के आधार पर भी इस कथन को पुख्ता माना जा सकता है। इतना ही नहीं दोनों देशों की सीमाएं खुली और बिना वीजा, पासपोर्ट के आवाजाही सदैव रही है। जबकि चीन इस स्वतंत्रता को हमेशा अपनी रूकावट मानता रहा और दोनों देशों के बीच खुली सीमाओं को बंद करने और पासपोर्ट लागू करने के लिए कूटनीतिक पासे फेंकता रहा है। इस हेतु नेपाल को मनाने के लिए उसने बीते कुछ वर्षों में वहां बेशुमार निवेश भी किया है।

गौरतलब है कि चीन ने 2017 में नेपाल के साथ ‘वन बेल्ट, वन रोड’ के लिए द्विपक्षीय समझौता किया। हालांकि अभी तक इस परियोजना के तहत कोई कार्य शुरू नहीं किया गया है और अब एक बार फिर अपनी ताजी यात्रा में चीन नेपाल को 350 करोड़ जो 56 अरब नेपाली रूपए के बराबर है, की सहायता अगले दो साल में देने की बात कही है साथ ही काठमाण्डू को तातापानी ट्रांजिट प्वाइंट से जोड़ने वाले अर्निको राजमार्ग को भी दुरूस्त करने का जिनपिंग ने वादा किया है।

गौरतलब है कि यह राजमार्ग अप्रैल 2015 के भूकम्प के बाद से ही बंद है। इसके अलावा चीन ट्रांस हिमालय रेलवे की फिजिबिलिटी को लेकर भी अध्ययन शीघ्र शुरू करने की बात कह रहा है। रात्रिभोज के दौरान नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी को चीनी राष्ट्रपति ने यह भी जताया कि हमारी दोस्ती दुनिया में आदर्श है और दोनों देशों के बीच कोई भी विवाद नहीं है। दो टूक यह है कि इस आड़ में जिनपिंग नेपाल को यह भी बता गये कि नेपाल की संवृद्धि और विकास में वह भारत से बेहतर विकल्प साबित होगा।

गौरतलब है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग 11-12 अक्टूबर को भारत में थे और 12-13 अक्टूबर को नेपाल की यात्रा पर थे। लम्बे अंतराल 23 साल बाद कोई चीनी राष्ट्रपति नेपाल गया। इससे पहले 1996 में जियांग जेमिन ने यहां की यात्रा की थी। जिनपिंग दक्षिण एशिया के लगभग सभी देशों की यात्रा कर चुके हैं। हालांकि इसमें भूटान शामिल नहीं है और अब नेपाल की भी यात्रा करके उन्होंने दक्षिण एशिया की परिक्रमा पूरी कर ली है। नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा औली को चीन परस्त और कुछ हद तक भारत विरोधी के रूप में भी जाना जाता है।

जब पहली बार साल 2015 में सुशील कोइराला के बाद प्रधानमंत्री का पद औली ने संभाला था तब मधेशी आंदोलन के चलते नेपाल और भारत के बीच सब कुछ ठीक नहीं था। नेपाल में उत्तर प्रदेश और बिहार मूल के तराई में रहने वाले नेपाली नागरिकों को मधेशी कहा जाता है। जब 20 सितम्बर, 2015 को नेपाल में नया संविधान लागू हुआ तब इनके साथ दोहरा रवैया के चलते ये उग्र हुए। खास यह भी है कि औली ने तब भारत को धमकाते हुए कहा था कि यदि वह उसके अंदरूनी मामलों में दखल देगा तो वे चीन की ओर झुक जायेंगे।

इसी का परिणाम है कि औली ने अपनी पहली विदेश यात्रा बीजिंग से शुरू की जबकि हर नेपाली प्रधानमंत्री इसकी शुरूआत भारत से करता रहा है। हालांकि वही औली जब एक बार फिर 2018 में प्रधानमंत्री बने तब अपनी पहली विदेश यात्रा की शुरूआत भारत से ही की थी तब प्रधानमंत्री मोदी ने अप्रत्यक्ष तौर पर इन्हें आड़े हाथ लिया था। बावजूद इसके भारत सड़क, बिजली समेत कई बुनियादी विकास में नेपाल पर करोड़ों की नियामत लुटाता रहा है। सच तो यह है कि आर्थिक सहायता के मामले में भारत ने नेपाल को हमेशा तवज्जो दिया पर वहां की सरकार के अनुपात में सम्बंध कमोबेश उतार-चढ़ाव वाले बने रहे परन्तु भारत और नेपाल के आपसी सरोकार में चीन अभी कुछ खास असर नहीं डाल पा रहा है।

यहां सवाल भारत-नेपाल के सम्बंधों का नहीं बल्कि नेपाल में चीन के दखल का है। चीन नेपाल के करीब जाने की हमेशा कोशिश करता रहा। यही नहीं अमेरिका भी लगातार यही कर रहा है। एक ओर चीन अपनी बेल्ट एण्ड रोड परियोजना चला रहा है तो अमेरिका इण्डो पेसिफिक नीति पर काम कर रहा है। बीते जून में जो रिपोर्ट आयी उससे पता चला कि अमेरिका नेपाल के साथ अपना रक्षा सहयोग बढ़ाना चाहता है। तब नेपाल ने स्पष्ट किया था कि वह ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा जिसका निशाना चीन हो।

दरअसल चीन ने ही अमेरिका से दूर रहने की नेपाल को नसीहत दी थी। प्रश्न यह है कि जिनपिंग की नेपाल यात्रा से भारत को किस प्रकार की चुनौती हो सकती है। राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक छाप नेपाल पर चीन छोड़ रहा है और उसका प्रभाव दक्षिण एशिया में लगातार बढ़ रहा है। यह हिन्द महासागर के श्रीलंका और मालदीव तक देखा जा सकता है। पाकिस्तान पूरी तरह और कमोबेश बांग्लादेश भी इसकी चपेट में है। भारत में लगी सीमाओं तक अपनी पहुंच बनाने के चलते चीन नेपाल में रेल और सड़क के विस्तार को अंजाम देने की ओर है। चीन के केरूंग से काठमाण्डू तक रेलवे ट्रैक और लुम्बिनी तक इस योजना के विस्तार का मनसूबा पाले हुए है। यह बदले हुए समीकरण भारत को बड़े स्तर पर प्रभावित कर सकते हैं।

भारत अब तक नेपाल का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है साथ ही नेपाल के लिए दुनिया का प्रवेश द्वार भी है। गौरतलब है कि नेपाल का कुल व्यापार करीब 7 बिलियन है जिसमें भारत का हिस्सा 6.5 बिलियन है। चीन का नेपाल पर बढ़ता प्रभाव इस आंकड़े को चोट पहुंचा सकता है। गौरतलब है कि चीन और भारत के बीच नेपाल एक बफर स्टेट है। जिनपिंग की यात्रा से चीन-नेपाल का आपसी राजनीतिक विश्वास और मजबूत हो सकता है। गौरतलब है कि जिनपिंग के भारत आने से पहले पाकिस्तान का सेना प्रमुख बाजवा और प्रधानमंत्री इमरान खान जिनपिंग से मिलने गये थे और ठीक दो दिन बाद जिनपिंग महाबलिपुरम में एक स्ट्रैटेजिक मीट के अंतर्गत मोदी से मिलने आये तब पाकिस्तान की नीति पूरी तरह बौनी प्रतीत होने लगी

। मगर नेपाल की यात्रा के चलते भारत की कूटनीति को भी जिनपिंग ने काफी सोचनीय बना दिया। फिलहाल दोनों देशों मसलन चीन व नेपाल ने बीते 13 अक्टूबर को 18 समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं। हालांकि दोनों के बीच हुआ कुछ भी हो पर नेपाल जानता है कि उसका पहला विकल्प भारत ही है। बावजूद इसके बदले कूटनीतिक समीकरण के बीच चीन से भारत को नेपाल के मामले में होने वाले नुकसान को लेकर चौकन्ना रहना चाहिए।
सुशील कुमार सिंह

 

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