सुप्रीम कोर्ट की राजनीति को फटकार

Criticism of Supreme Court Politics

उच्चतम न्यायलय ने राजनीति में आए पतन के लिए जिस तरह के शब्दों का प्रयोग किया है वह राजनैतिक पार्टियों के लिए बड़ी फटकार है व इससे सीख लिए जाने की आवश्यकता है। अदालत ने राजनीति में अपराधों को कैंसर करार देकर संसद को इस मामले के हल के लिए कानून का गठन करने के लिए कहा है। यह बड़ी ही शर्मनाक बात है कि संसद व राजनीति पार्टियों ने अपने नेताओं के आचरण को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया बल्कि समय-समय पर अदालत को ही रुलिंग देनी पड़ी। अदालत द्वारा दिए गए सख्त निर्णयों के कारण ही सजायाफ्ता नेताओं की संसदीय सदस्यता गई व चुनाव लड़ने से वंचित हो गए हैं। दु:ख इस बात है कि कानून बनाने वाली संसद ने इस मामले पर कभी भी विचार करना उचित नहीं समझा, कोई सुधारात्मक कदम उठाना तो दूर की बात। संसद में सांसदों के वेतन, भत्तों व सुविधाओं पर जरूर भाषण दिया जाता है व इनमें विस्तार के लिए सभी पार्टियों के सांसद एकमत होकर बिल को पास करवाते हैं। कोई भी सांसद इसका विरोध नहीं करता लेकिन अपराधी राजनेताओं की योग्यता क्या हो उनके साफ-सुथरे रिकार्ड की कभी बात नहीं होती। हर पार्टी में आज संगीन अपराधों के साथ जुडेÞ मामलों का सामना कर रहे नेताओं की भरमार है। केन्द्र सरकार ने स्वयं इस वर्ष सुप्रीम कोर्ट में हल्फिया बयान दायर कर बताया है कि देश के 3045 अर्थात् 36 फीसदी एम.पी. व एम.एल.ए विभिन्न आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। कुछ नेताओं के घिनौने कार्य मीडिया में आने के कारण चर्चा भी हुई है पता नहीं कितने ही अपराध नेताओं की पहुंच के कारण दबे रहे जाते हैं। हालात यह हैं कि यहां दंगाईयों, नशा तस्करों, हत्याओं में उलझे लोगों को चुनावों में टिकटें दी जाती हैं। ऐसे नेता चुनाव जीत कर कानून बनाने वालों की सभा के अधिकार हासिल कर लेते हैं। दरअसल राजनैतिक पार्टियों के लिए सत्ता से बड़ा कोई आदर्श नहीं। टिकटें बांटते समय उम्मीदवार की योग्यता इस बात से जांची जाती है कि वह चुनाव जीतने में सक्षम हो। टिकट लेने वाले की तिजोरी, उसके समर्थकों की ताकत को देखा जाता है। वाक ई राजनीति में अपराध कैंसर का रूप धारण कर चुका है व राजनीतिक पार्टियों की भी यह नैतिक जिम्मेवारी है कि वह देश हित में कानून बनाने वाली सभा में सिर्फ कानून पसंद, साफ-सुथरे आचरण वाले व्यक्ति लाएं। महज अदालत को ही राजनीति में आपराधियों की चिंता क्यों हो, राजनीतिक पार्टियों को भी अपनी काली भेड़ों को बाहर निकालना होगा।

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