Good Governance : सुशासन के लिए चुनौती साइबर सुरक्षा

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Good Governance : यह तर्कसंगत है कि देश में जैसे-जैसे डिजिटलीकरण का दायरा बढ़ता जाएगा वैसे-वैसे साइबर सुरक्षा (Cyber ​​Security) सम्बंधी चुनौतियां भी बढ़ती जाएंगी। डाटा चोरी और वित्तीय धोखाधड़ी साइबर अपराध के बड़े आधार हो गए हैं। शायद यही कारण है कि रोजगार के नए अवसर में डाटा प्राइवेसी, डाटा सिक्योरिटी और नेटवर्क सिक्योरिटी के विशेषज्ञ प्रोफेशनल की मांग तेजी से बढ़ी है। देखा जाए तो साइबर सुरक्षा का बाजार भी बड़ा आकार लेता जा रहा है। एक रिपोर्ट से यह पता चलता है कि इस बाजार का आकार 2021 में 220 करोड़ का था जो 2027 तक 350 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है।

देखा जाए तो साल 2021 में होने वाले साइबर हमलों में विश्व में भारत का दूसरा स्थान था और 2022 में तो इसे लेकर 14 लाख मामले दर्ज किए गए थे। विज्ञान और तकनीक जिस मुकाम को हासिल किए उसमें सब कुछ उजला ही नहीं है कुछ उसके स्याह पक्ष भी है साइबर अपराध इसी का एक नतीजा है। कम्प्यूटर, सर्वर, मोबाइल डिवाइस, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, नेटवर्क और डेटा को हमले से बचाने का एक बड़ा प्रयास साइबर सुरक्षा है। वैश्विक स्तर पर साइबर खतरा तेजी से गतिमान है और दिन दूनी-रात चैगुनी की तर्ज पर तेजी लिए हुए है। Good Governance

साइबर अपराधियों ने किसी को भी सुरक्षित नहीं छोड़ा। सांसद, न्यायाधीश, विश्वविद्यालय के कुलपति, व्यापारी, पुलिस अधिकारी को भी अपने शिकंजे में फंसा चुका है। आंकड़े की पड़ताल से यह पता चलता है कि भारत में साल 2021 में साइबर अपराध के लगभग 53 हजार मामलों पर केस दर्ज हुआ, 18 हजार से अधिक मामलों में आरोप पत्र दाखिल हुए, जिसमें 491 मामलों में सजा भी हुई। उक्त से यह परिलक्षित होता है कि साइबर अपराध का दायरा अच्छा खासा पसर गया है और साथ ही साइबर सुरक्षा की चुनौती को बढ़ा दिया है।

डिजिटलीकरण को दो कदम और आगे बढ़ाने की फिराक में सरकार

मौजूदा दौर सुशासन उन्मुख दृष्टिकोण से युक्त है साथ ही ई-गवर्नेंस को भारी पैमाने पर बढ़ावा दिया जा रहा है। इंटरनेट कनेक्टिविटी को 5-जी व 6-जी की ओर ले जाने का पूरा प्रयास है। 2025 तक 90 करोड़ आबादी को इंटरनेट से जोड़ने का लक्ष्य है। पढ़ाई-लिखाई से लेकर चिकित्सा व अदालती व्यवस्थाओं में इंटरनेट का पूरा समावेश देखा जा सकता है। ई-बैंकिंग समेत दर्जनों प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक विधाओं से युक्त क्रियाकलापों को जमीन पर उतार दिया गया है। लेन-देन की प्रक्रिया को सरकार भी डिजिटलीकरण के मामले को दो कदम और आगे बढ़ाने की फिराक में रहती है।

प्रधानमंत्री मोदी ने तो यहां तक भी कहा है कि एक दिन जेब में बिना कैश के ही रहे और लेन-देन को डिजिटल पर ले जाएं। सुशासन की परिपाटी में शासन को यह चिंता होना स्वाभाविक है कि चहुंमुखी विकास को डिजिटलीकरण के माध्यम से बड़ा और सघन बनाया जाए। मगर साइबर सुरक्षा को लेकर एक चिंता अपनी जगह रहती है जो हर लिहाज से सुशासन को मुंह चिढ़ाता है। साइबर खतरे का स्तर लगातार बढ़ने के साथ साइबर सुरक्षा समाधानों पर वैश्विक खर्च भी तेजी से बढ़ रहा है। Good Governance

अनुमान तो यह भी है कि साइबर सुरक्षा खर्च 2023 में 188 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा जबकि 2026 तक यही 260 बिलियन डॉलर हो जाएगा। अमेरिका, इंग्लैण्ड, आॅस्ट्रेलिया देशों ने साइबर सुरक्षा के लिए अनेकों पहल किए हैं। खतरों की विवेचना से यह पता चलता है कि साइबर अपराध बिना किसी सीमा के चलायमान है। साइबर हमले, साइबर आतंकवाद जैसे शब्द सभ्य समाज और व्याप्त सुशासन के लिए कड़ी और बड़ी चुनौती दे रहे हैं। देश के कई इलाके जो साइबर अपराधियों के गढ़ बन गए हैं ऐसे ही इलाकों में हरियाणा का नूंह जिला जिसे साइबर लुटेरों ने मिलकर चर्चे में ला दिया।

पुलिस के अनुसार इस जिले में 434 गांव हैं। अधिकांश अरावली की तलहटी में स्थित है और फर्जी कॉल के लिए यह उपयुक्त अड्डे हैं। हालांकि साइबर अपराध दुनिया के किसी भी कोने में कहीं से भी पनप सकता है और समाज को नई मुसीबत में डाल सकता है। देश में इंटरनेट से करोड़ों की आबादी जुड़ गयी। बहुतायत में व्यक्तिगत ईमेल समेत अन्य प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्थाओं से जनता जुड़ गयी मगर एक पक्ष यह भी है कि साइबर सुरक्षा को लेकर जागरूकता का स्तर अभी विकसित ही नहीं हो पाया। कई वर्ष पहले ही साइबर अपराध की बढ़ती स्थिति और इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था से गतिमान संदर्भ को देखते हुए यह अनुमान लगा लिया गया था कि देश में साइबर सुरक्षा से जुड़े रोजगार के आकार में बढ़ोत्तरी होगी। Cyber ​​Security

इतना ही नहीं सरकार को साइबर सुरक्षा के मसले पर कठोर नियम और कानून से भी गुजरना पड़ेगा। सुशासन की परिपाटी को देखें तो अपराध मुक्त समाज इसकी परिभाषा का एक हिस्सा है जो अब दबे पांव आॅनलाइन लोगों पर हमला करता है और उन्हें वित्तीय समस्या समेत कई सामाजिक-मनोवैज्ञानिक समस्या की ओर धकेलता है। आज इंटरनेट हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गया है और जीवन के सभी पहलुओं को कमोबेश प्रभावित कर रहा है। साइबर जागरूकता और सावधानी इसका प्राथमिक बचाव है मगर जिस देश में अभी भी हर चौथा व्यक्ति अशिक्षित हो वहां साइबर शिक्षा कितनी सबल होगी यह समझना कठिन काम नहीं है।

साइबर स्टॉकिंग, बौद्धिक सम्पदा की चोरी, वाइरस समेत कई ऐसे प्रारूप हैं जो अपराध के लिहाज से परेशानी का सबब है। गौरतलब है कि साल 2013 से पहले भारत में कोई साइबर नीति नहीं है मगर अब ऐसा नहीं है। राश्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2020 साइबर सुरक्षा और साइबर जागरूकता में सुधार लाने की इच्छा से युक्त है। इसी वर्ष भारतीय साइबर अपराध समन्वयक केन्द्र की स्थापना की गई जबकि 2017 में साइबर सुरक्षा केन्द्र और 2018 में साइबर सुरक्षित भारत पहल जैसी कवायद देखी जा सकती है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 डेटा एवं सूचना उद्योग को नियंत्रित करता है।

इसके अलावा भी कई ऐसी व्यवस्थाएं हैं जिसमें साइबर सुरक्षा को लेकर भारत पहल करता दिखाई देता है। विदित हो कि भारत ने अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसे देशों के साथ अनेकों साइबर सुरक्षा सम्बंधी संधियों पर दस्तखत किए। दृष्टिकोण और परिप्रेक्ष्य यह है कि साइबर अपराध वर्तमान में वृद्धि के साथ बना हुआ है और इसे रोकने के उपाय वक्त के साथ ढूंढे जा रहे हैं। यद्यपि सरकार साइबर सुरक्षा को लेकर कई सुशासनिक कदम उठाए हैं इसके लिए साइबर सेल भी बनाए गए हैं। इससे प्रभावित व्यक्ति केस दर्ज करा सकता है और राहत पाने की उम्मीद अंदर पनपा सकता है मगर ज्यादातर मामलों में निराशा ही मिलती है।

दो टूक कहें तो यह हवा में किया जाने वाला एक ऐसा अपराध है जो कमाई को उड़ा देता है। सूचना सुरक्षा भंडारण में भी सेंध लगने से अखण्डता और गोपनीयता को भी खतरा पैदा हो रहा है। साइबर अपराध की बढ़ती प्रवृत्ति और प्रकार को देख कर यह सोचना सही रहेगा कि इससे सुरक्षा की जिम्मेदारी केवल साइबर सेल और सरकार पर नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि जन मानस को साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूकता और सावधानी का स्तर भी तुलनात्मक बढ़ा लेना चाहिए।

डॉ. सुशील कुमार सिंह, वरिष्ठ स्तंभकार एवं प्रशासनिक चिंतक (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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