अध्यापकों का शोषण बंद करने का फैसला

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पटना हाईकोर्ट ने एतिहासिक निर्णय देते हुए स्थायी-अस्थायी सभी अध्यापकों को बराबर वेतन देने के आदेश दिए हैं। अदालत का यह निर्णय संविधान में अंकित समानता के अधिकार की भी रक्षा करता है जिसके अंतर्गत कानून में प्रत्येक नागरिक को बराबर अधिकार दिया है। योग्य अध्यापक बराबर योग्यता के लिए बराबर वेतन के हकदार हैं।

दरअसल सरकारें अपनी, आर्थिक नाकामियों को छुपाने व वोट के लिए आर्थिक सिद्धांतों को दरकिनार कर सरकारी खजाने का कचूमर निकाल देती हैं। खजाना खाली होने पर कर्मचारियों को भर्ती करने की मजबूरी में सरकारों ने ठेका आधारित भर्तियों का ऐसा जुगाड़ क्या निकाला कि प्रत्येक विभाग में दो प्रकार के कर्मचारी कर दिए।

अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी के मुकाबले आधा वेतन भी नहीं मिलता। इन अस्थायी कर्मचारियों को किसी राज्य में गेस्ट टीचर, कहीं पैरा टीचर, कहीं शिक्षा सहयोगी, कहीं नियोक्ता अध्यापक व कहीं अध्यापक का नाम देकर कच्चे शब्द के दर्द को छिपा दिया। कच्चे शब्द ने बराबर योग्यता वाले कर्मचारियों के मन में हीन भावना पैदा कर दी।

यह एक ही समय कर्मचारियों का मानसिक व आर्थिक शोषण है। पंजाब की अकाली भाजपा सरकार ने नए भर्ती किए कर्मचारियों को तीन साल तक दस हजार रुपए वेतन देने का ऐसा जुगाड़ निकाला कि निजी संस्थाओं में 25-30 हजार रुपए प्रति महीना कमाने वाले 10 हजार रुपए लेने के लिए मजबूर हो गए।

लगभग प्रत्येक राज्य सरकार इसी फामूर्ले को अपना कर अपने कंगाल खजाने से कम से कम पैसा निकालने के लिए कर्मचारियों की स्थायी भर्ती से किनारा कर रही है। नि:संदेह योग्यता प्राप्त अस्थायी कर्मचारियों से यह केवल अन्याय ही नहीं बल्कि भद्दा मजाक भी है जिससे समाज में भेदभाव बढ़ता है।

कितनी हैरानी की बात है कि पंजाब के कॉलेजों में स्थायी लैक्चरार जितनी योग्यता वाले फैकल्टी लैक्चरारों को चतुर्थ कर्मचारी जितना भी वेतन नहीं मिलता। प्राकृति व संविधान दोनों समानता के नियमों की बात करते हैं।

एक काम के लिए नियम दो नहीं हो सकते। ऐसा करना केवल संविधान के विपरीत ही नहीं बल्कि मानवीय सम्मान के उलट है। इसीलिए पटना हाईकोर्ट का निर्णय पूरे देश में लागू होना चाहिए। लोकतंत्रीय राजनैतिक व्यवस्था में भेदभाव नहीं होना चाहिए। सरकार ठोस आर्थिक नीतियां बनाए और सभी कर्मचारियों को बराबर वेतन देने के लिए खजाने को भरे।

 

 

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