भाईचारे की अनूठी मिसाल अलखपुर धाम

डेरा सच्चा सौदा एक सर्वधर्म संगम पवित्र स्थान है, इसकी जीती जागती मिसाल है सरसा से करीब 52 किलोमीटर दूर एवं राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्र में बसे अहमदपुर दारेवाला में बना ‘डेरा सच्चा सौदा अलखपुर धाम’। पूजनीय साई मस्ताना जी महाराज की पावन दया-दृष्टि से परिपूर्ण यह आश्रम गांव की शान का मुख्य सितारा है। यह अलखपुर धाम गांव में हमेशा से भाईचारे और प्रेम-प्यार की अलख जगाता आ रहा है। गणमान्य लोग इस बात की गवाही भरते हैं कि साई मस्ताना जी महाराज ने आश्रम के रूप में पूरे गांव पर ही नहीं, अपितु पूरे क्षेत्र पर महापरोपकार किया है। सन् 1953 में गांव में डेरा सच्चा सौदा अलखपुर धाम का निर्माण हुआ। बाद में धाम के पूर्व साइड में श्री गुरुद्वारा साहिब तैयार किया गया और पश्चिम साइड में श्री बालाजी मंदिर बनाया गया। खास बात यह भी है कि एक लाइन में बने तीनों धार्मिक स्थलों की आपस में दीवारें भी सांझी हैं। इन धार्मिक स्थलों की बदौलत गांव में हमेशा भाईचारे की गंगा बहती है। हालांकि कई ऐसे दौर भी आए, जब समाज में तथाकथित लोगों ने बहुत शोर मचाया, लेकिन इस गांव ने कभी भाईचारे की डोर को टूटने नहीं दिया। मौजूदा सरपंच श्रीमति शारदा देवी कहती हैं कि डेरा सच्चा सौदा अलखपुर धाम गांव का गौरव है। जिस प्रकार तीनों धार्मिक स्थलों की दीवारें सांझी बनी हुई हैं, वैसे ही गांव का प्रत्येक व्यक्ति अपने दिल में भाईचारे की सांझ बसाए हुए है। यहां 36 बिरादरी के लोग रहते हैं, किसी भी धर्म के प्रति लोगों में कभी भी आपसी मनभेद या मतभेद की बात तक भी पैदा नहीं हुई। यहां पर सभी जात-बिरादरी, धर्मों के लोग आपस में मिल-जुलकर रहते हैं।

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जब गांव को मिली ‘धाम’ की अनुपम सौगात

सन् 1953 के शुरुआत की बात है, उन दिनों साई मस्ताना जी महाराज रामपुर थेड़ी में सत्संग करने पधारे हुए थे। इसी दौरान डेरा प्रेमी रामचंद्र, सेठ गिरधारी लाल सहित कई मौजिज लोगों ने साई जी की पावन हजूरी में पेश होते हुए गांव अहमदपुर दारेवाला में डेरा बनाने व सत्संग करने की अर्ज की। दातार जी ने सेवादारों के प्रेम को देखते हुए वचन फरमाए- ‘भई! आपके प्रेम को देखकर डेरा तो मंजूर कर दिया है। जमीन का प्रबंध करके पहले डेरा बना लो, फिर आपको सत्संग भी जरूर देवेंगे!’ जैसे ही इस बात की खबर गांव में पहुंची तो एक अजब सी खुशी लोगों में संचारित हो उठी।

ग्राम पंचायत बुलाई गई, जिसमें सर्वसम्मति से 14 कनाल रकबा आश्रम के लिए देने का निर्णय लिया गया। आश्रम बनाने के लिए एक कमेटी का गठन भी किया गया, जिसमें श्री रामकरण, श्री गोपीराम, श्री हजारा सिंह, श्री काशी राम, चौ. बीरबल, श्री मुंशी राम, प्रेमी रामचंद्र बीघड़वाला, श्री देसराज, श्री गिरधारी लाल, श्री सदासुख सहित 12 कमेटी के सदस्य बनाए गए। आश्रम बनाने को लेकर गांव की संगत में बड़ा उत्साह था। कच्ची इंटें निकालने की सेवा शुरू हो गई व अन्य सामान एकत्रित किया जाने लगा। करीब 25 दिनों की अथक सेवा से सेवादारों ने बहुत ही सुंदर शहनशाही गुफा तैयार कर दी। साथ ही एक कच्चा कमरा भी बनाया गया, जिसे मिट्टी व गोबर से लीप दिया गया। वहीं आश्रम की बाउंडरी वॉल कांटेदार झाड़ियों की बाड़ से तैयार की गई। आश्रम तैयार होने के बाद गांव के गणमान्य व्यक्ति एवं सेवादार सरसा दरबार पहुंचे। साई जी को जब इस बारे में बताया तो शहनशाह जी बहुत प्रसन्न हुए।

सार्इं जी ने फरमाया-‘बल्ले बई! दारेवाला वालों ने काल का सिर मुंड दिया है। बड़ी हिम्मत से डेरा बनाया है। इस डेरा का नाम परम दयाल दाता सावण शाह जी के हुक्म से ‘डेरा सच्चा सौदा अलखपुर धाम’ रखते हैं। लाखों लोग यहां आकर सजदा करेंगे।’ सार्इं जी ने इस दौरान गांव का सत्संग भी मंजूर कर दिया। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने बाद में इस आश्रम को नयालुक दिया और नए तेरा वास का निर्माण करवाया, वहीं आश्रम की चारदीवारी भी पक्की इंटों से बनाई गई। पूज्य हजूर पिता जी ने भी समय-समय पर इसके लुक में कई बदलाव किए। आज भी यह आश्रम लोगों के लिए श्रद्धा के साथ-साथ आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

बल्ले-बल्ले ! देखो, लाखों लोग आ रहे हैं!!

गांव का बड़ा सौभाग्य है कि डेरा सच्चा सौदा की तीनों पातशाहियों ने यहां आकर सत्संग फरमाए हैं। इस बारे में भूगोल के लेक्चरार महावीर शर्मा बताते हैं कि जब सार्इं जी ने गांव का पहला सत्संग मंजूर किया था, तो गांव की सोई हुई तकदीर जाग उठी। सार्इं जी दारेवाला में पधारे तो यहां तीन दिन वास किया। एक दिन सुबह के समय साई जी सैर के लिए गांव की पूर्व दिशा की ओर (बिज्जूवाली गांव की तरफ) पैदल ही चल दिए। गांव से थोड़ा सा बाहर निकलते ही साई जी रेत के एक टिल्ले की ओर मुड़ गए। उस टिल्ले के पास ही एक रोहड़ा कापेड़ था। साई जी ने उस टिल्ले पर पहुंचकर अपनी डंगोरी वहां रख दी और बैठ गए। साई जी ने फरमाया- ‘बल्ले ! बल्ले!! देखो, लाखों लोग आ रहे हैं।’ इस पर सेवादार रूपराम ने कहा कि साई जी, यहां तो रेत उड़ रही है और आप कह रहे हैं कि लाखों आ रहे हैं। फिर फरमाया- ‘इस जगह पर लाखों लोग मत्था टेकेंगे। तुम्हारे को इस बात का क्या पता है?’ इतिहास गवाह है कि संतों के वचन हमेशा अटल होते हैं। समय अपनी रफ्तार से गुजरता रहा।

महावीर शर्मा बताते हैं कि उन्होंने साई जी के इन वचनों को सत्य होते अपनी आंखों से देखा है। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने गांव में 1969, 1972 व 1989 में सत्संगें लगाकर नामअभिलाषी जीवों का उद्धार किया। 23 मार्च 1989 की सत्संग का मैं चश्मदीद गवाह हूं, जब बेपरवाह जी प्रेमी करनैल सिंह नंबरदार व धनराज मलकपुरा की अर्ज पर गांव में सत्संग करने के लिए पधारे थे। गांव में सत्संग के लिए जगह का चयन करने की बात आई तो उसी टिल्ले पर सत्संग लगाने की सहमति हुई, जिसके बारे में साई जी ने वचन फरमाए थे। उस दिन सत्संग में इतनी बड़ी संख्या में संगत आई कि देखने वालों की आंखें पथरा गई। गांव से लेकर बिज्जूवाली (करीब 4 किलोमीटर की दूरी) तक संगत ही संगत थी। उस दिन सार्इं जी के वचन सचमुच पूर्ण होते दिखे, जो उन्होंने लाखों के आने की बात कही थी। उस दिन जिस भजन पर सत्संग हुआ वह शब्द भजन है ‘नाम को भुला ना देना प्यारे, यही तेरे काम आएगा’।

शर्मा जी बताते हैं कि पूजनीय परमपिता जी जब दूसरी बार अलखपुर धाम में पधारे तो एक विचित्र बात देखने को मिली। हालांकि पूजनीय परमपिता जी हमेशा ही पर्यावरण को लेकर चिंतित रहते, संगत को पेड़-पौधे लगाने के बारे में वचन भी फरमाते रहते, लेकिन उस दिन परमपिता जी ने प्रेमी मुंशीराम को स्पेशल कहकर आश्रम में कुछ वृद्ध पेड़ों को कटवाने की आज्ञा दी। शायद यह भी जीवोद्धार यात्रा का एक हिस्सा ही था, जो उन जीवों की जूनी का उद्धार करना था। सेवादारों के अनुसार यह जरूरी भी था।

पूजनीय परमपिता जी ने उस समय आश्रम में सार्इं जी के समय की बनी एक दीवार को हटाने का वचन भी फरमाया। इस पर सेवादार भाई हाथ जोड़कर कहने लगे कि परमपिता जी, यह दीवार तो साई जी के समय की है जी। परमपिता जी ने फरमाया, भई! यदि एक थाने में दूसरा इंचार्ज आ जाए तो उसका आदेश मानना पड़ता है ना। इस प्रकार सेवादारों ने दीवार को हटाने की सेवा शुरू कर दी। वह इसलिए भी हटाना जरूरी था, क्योंकि तेरा वास परिसर में संगत के बैठने की जगह कम पड़ रही थी। शर्मा जी बताते हैं कि जिस टिल्ले को लेकर बेपरवाह साई जी ने वचन फरमाए थे, उस टिल्ले पर परमपिता जी ने सत्संग लगाकर हजारों जीवों को नामदान दिया। खास बात यह भी रही कि पूज्य हजूर पिता जी ने भी इस टिल्ले पर ही सत्संग लगाया, जिसे सुनने के लिए लाखों की संख्या में संगत पहुंची थी।

जब सत्संग पंडाल को ठंडक देने उमड़ आया एक बादल

1980 में गुरुमंत्र की दात पाने वाले महावीर शर्मा बताते हैं कि पूजनीय परमपिता जी अपनी जीवोद्धार यात्रा के दौरान गांव में सत्संग फरमाने के लिए आने वाले थे। उस दिन गर्मी भी सारे रिकार्ड तोड़ने को बेताब लग रही थी। सूरज की तेज तपिश के साथ दिन का आगाज ऐसा हुआ कि सुबह दस बजे के करीब ही पारा 35 डिग्री के आस-पास चला गया था। मेरे मन में ख्याल आया कि ऐसी गर्मी में शहनशाह जी किस प्रकार सत्संग कर पाएंगे। संगत को भी बैठने में बड़ी परेशानी होगी। अभी मैं शंकाओं के भंवर में ही फंसा हुआ था कि ढोल-नगाड़ों की आवाजों के बीच समाचार आया कि पूज्य शहनशाह जी पधारने वाले हैं। आसमां से बरसती आग के बीच मुरझाए चेहरों पर एकदम से खुशी का संचार हो उठा। मेरी खुली आंखों ने जो देखा वह अपने आप में अचंभित करने वाला था। आसमां में अचानक एक छोटा सा बादल दिखाई दिया जो आश्रम व सत्संग पंडाल के आस-पास के एरिया को ढक कर खड़ा हो गया। जैसे ही परमपिता जी स्टेज पर विराजमान हुए, वह बादल भी खुशी में झूम उठा और अपनी मंद-मंद बूंदों से वातावरण को ठंडा-ठार बना दिया। इस शीतल माहौल में पूजनीय परमपिता जी ने रूहानियत भरपूर वचनों की ऐसी जमकर बरसात की, जिससे लोगों के अंदर जमी बुराइयों की मैल धुलती चली गई।

पूज्य संत डा. एमएसजी ने पूरी की दिल की अभिलाषा

‘संत का कहा विरथा ना जाए’, कहते हैं कि संतों के मुखारबिंद से सहज स्वभाव में निकली बात भी अटल वचन ही होती है। भूगोल लेक्चरार 57 वर्षीय महावीर शर्मा डेरा सच्चा सौदा से जुड़े अपने हर अनुभव एवं सांझ को जीवन का अनमोल क्षण बताते हुए कहते हैं कि मेरा परिवार डेरा सच्चा सौदा के प्रति आस्थावान है। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज जीवोद्धार यात्रा के दौरान अचानक गांव में पधारे हुए थे, तो परिवार ने घर पर चरण टिकाने की अर्ज की। परमपिता जी ने हमारी अर्ज मंजूर कर ली। हालांकि उस समय पूजनीय परमपिता जी का स्वास्थ्य भी कुछ ठीक नहीं था। लेकिन फिर भी परमपिता जी ने कहा कि पैदल ही चलते हैं। उधर घरवालों से खुशियां संभाले नहीं संभल रही थी। जब परमपिता जी के खाने के लिए काजू-बादाम रखे गए थे तो परमपिता ने वचन फरमाया ‘भोलेया, असीं तां तेरे प्रेम दे करके आये हां।’ थोड़ा सा सूखा मेवा लेते हुए फिर वचन फरमाया- ‘असीं फिर आवांगे’। यह सुनकर खुशी में मेरी आंखों से आंसू छलक आए। इस दौरान मुर्शिद जी से खूब बातें हुई। पूज्य परमपिता जी ने भरपूर प्यार दिया।

23 सितंबर 1990 में पूजनीय परमपिता जी ने पूजनीय हजूर पिता जी के रूप में खुद को फिर से जवां कर लिया। मई 2005 में पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां गांव में सत्संग करने के लिए पधारे। उस दिन पूज्य पिताजी निर्धारित समय से एक घंटा पूर्व ही पहुंच गए। दिल में बड़ी खुशी थी कि आज गांव में फिर से सत्संग होगा। मुझे भी पूज्य हजूर पिता से मिलने का समय मिला तो मैं वैराग्य में आ गया। मन में ख्याल आया कि पूज्य गुरु जी तो मुझे जानते ही नहीं हैं। आज अगर परमपिता जी होते तो उनसे घर में चरण टिकाने की अर्ज करता। सत्संग के लिए सारी तैयारियां हो चुकी थी, लेकिन मन में अभी भी कशमकश चल रही थी। तभी लाउड स्पीकर में अनाउंस हुआ कि मास्टर महावीर शर्मा जहां कहीं भी हैं, वे जल्दी से परिवार सहित अपने घर चले जाएं। मैं उसी पल घर की ओर दौड़ पड़ा।

परिवार के सभी सदस्य सत्संग पंडाल में सेवा पर लगे हुए थे। मैं जैसे-तैसे घर पहुंचा, पता चला कि पूज्य हजूर पिता जी घर पर पधार रहे हैं। खुशी में मैं मानो पागल सा हो गया। कुछ सूझ नहीं रहा था। घर की रसोई भी लॉक थी, क्योंकि उसकी चाबी माता जी के पास थी। बस! हाथ में फादर बिस्कुट थे, जो मैं पंडाल से चलते समय साथ ले आया था। परिवार के लोग भी घर पहुंच गए, लेकिन मेरी माता जी पंडाल में रह गई। इतने में पूज्य पिता जी घर आ पधारे। दातार जी के चरणों में अपनी वेदना रखी तो पूज्य हजूर पिता जी ने फरमाया- बेटा! घर में खाने को जो कुछ भी है, ले आओ। इस पर मैंने दातार जी को वह बिस्कुट ही प्लेट में सजाकर सामने रख दिए, और कहा कि दाता जी, तेरा तुझी को अर्पण है। पूज्य पिता जी ने दो बिस्कुट लिये और मुझे एवं मेरे परिवार को मानो दो जहां की खुशियां बख्श दी।

गांव का है गहरा लगाव

जसवीर सिंह पुत्र सचखंडवासी हजारा सिंह बताते हैं कि बुजुर्ग अकसर सुनाया करते कि अलखपुर धाम में एक चबूतरा हुआ करता था। इस चबूतरे पर विराजमान होकर साई जी व परमपिता जी ने सत्संग भी किए। गांव में लोगों का डेरा सच्चा सौदा के प्रति गहरा लगाव है, यही वजह है कि आश्रम के लिए जमीन भी पंचायत की ओर से उपलब्ध करवाई गई थी।

बुराइयों के प्रति अलख जगाई

किशोर सिंह बताते हैं कि क्षेत्र में जब नशा, पाखंड आदि का बोलबाला था। लोगों को राम नाम के बारे में जागरूक करने के लिए साई बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने गांव में आश्रम का निर्माण करवाया। यह एक बहुत बड़ा परोपरकार है। यह आश्रम लोगों के लिए जहां प्रेरणा स्त्रोत है, वहीं श्रद्धा का केंद्र भी है। गांव में हर धर्म, सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। वे कहते हैं कि डेरा सच्चा सौदा अलखपुर धाम ने हमेशा लोगों को भाईचारे का संदेश दिया है। लॉकडाउन से पूर्व तक गांव में घर-घर नामचर्चा होती रही है, जिसमें ग्रामवासी बढ़-चढ़कर भाग लेते रहे हैं। भविष्य में जैसे ही धार्मिक कार्यक्रम करने की सरकारी छूट मिलेगी, नामचर्चा फिर से शुरू की जाएगी, क्योंकि नामचर्चा करने से गांव का आपसी भाईचारा और मजबूत होता है।

बेपरवाह जी ने दो पार्टियों का वैर-विरोध चुटकियों में मिटाया

पूजनीय परमपिता जी के रहमोकरम का बखान करते हुए रोहताश कड़वासरा बताते हैं कि पूजनीय परमपिता जी एक बार गांव में सत्संग करने के लिए पधारे हुए थे। उन दिनों घरों में भी सत्संग हुआ करता था। पूजनीय परमपिता जी ने हमारे घर में सत्संग किया, जिसमें उस समय के दौर के हिसाब से बड़ी संख्या में साध-संगत पहुंची हुई थी। उसी दौरान कालूआना गांव से कुछ लोग हथियारों के साथ वहां पहुंचे और परमपिता जी को सजदा किया। परमपिता जी ने उन लोगों से जब हथियारों के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि गांव में हमारी दूसरी पार्टी के लोगों के साथ दुश्मनी है, इसलिए खुद की सुरक्षा के लिए हमेशा हथियार साथ रखते हैं। परमपिता जी ने उन लोगों को बड़े प्रेम से वैैरविरोध मिटाने के बारे में समझाया। इसी दरमियान दूसरी पार्टी के लोग भी हथियारों के साथ आ पहुंचे। पूजनीय परमपिता जी ने उनको भी जीवन में प्रेम-प्यार का महत्व समझाया। दोनों पार्टियों के लोग पूजनीय परमपिता के वचनों से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने भविष्य में कभी भी एक-दूसरे के खिलाफ हथियार न उठाने की बात कही। यह सब देखकर वहां बैठी संगत भी धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा का नारा लगाकर पूजनीय परमपिता जी का धन्यवाद करने लगी।

राम-नाम की आंधी चलेगी!

रघुबीर सिंह पुत्र पूर्व सरपंच बीरबल राम रहस्योद्धाटन करते हुए बताते हैं कि साईं जी गांव में पहुंचे हुए थे। साई मस्ताना जी सुबह घूमने निकले तो बिज्जूवाली की ओर रास्ते पर चल दिए। उन दिनों रेत की भरपूरता थी। हवा के झोंके के साथ रेत उड़ने लगती थी। इस दौरान साई जी के साथ चल रहे सेवादार रूपराम ने अर्ज की कि साई जी, इधर तो रेत उड़ रही है। साई जी ने प्रतिउत्तर में फरमाया- ‘पुट्टर! यहां कभी राम नाम के दीवानों की धूल उड़ेगी। देखना, कभी यहां संगत का बड़ा इक्ट्ठ होगा, और रामनाम की गूंज सुनाई देगी।’

घबराना नहीं बेटा, सब कुछ ठीक हो जाएगा!

जीवन के 70 बसंत देख चुकी रामेश्वरी देवी शुक्राना अदा करती हुई कहती हैं कि धन्य हैं मेरे सतगुरु जी, जिन्होंने गांव की माटी को चरणस्पर्श देकर धन्य बना दिया। रामेश्वरी देवी बताती हैं कि मेरी सासू मां अकसर यह बात सुनाया करती थी कि बेपरवाह जी हर समय सबके अंग-संग रहते हैं। एक बार घर में भैंस बहुत बीमार हो गई। डाक्टरों की दवा भी काम नहीं कर पा रही थी। मेरी सासू मां ने सुमिरन करते हुए पूजनीय परमपिता जी के चरणों में अरदास की। उसी रात पूजनीय परमपिता जी ने दर्शन देकर कहा कि घबराना नहीं बेटा, सब कुछ ठीक हो जाएगा। और हुआ भी ऐसा ही। अगले रोज से भैंस स्वयं ही ठीक होना शुरू हो गई, और कुछ दिन के बाद बिल्कुल स्वस्थ हो गई। रामेश्वरी देवी ने एक और दिलचस्प बात सुनाते हुए बताया कि पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज सत्संग करने के लिए आए हुए थे, उस रात हमारे घर उतारा था। पूजनीय परमपिता जी रात को चौबारे में ठहरे हुए थे। कुछ दिनों के बाद गांव में भारी बारिश हुई तो पड़ोस के घर में छतों से पानी टपकने लगा। पड़ोस के दो व्यक्ति हमारे चौबारे में रात गुजारने के लिए आ गए। वे दोनों ही शराब के आदी थे, उस रात भी उन्होंने नशा किया हुआ था। आधी रात को अचानक दोनों उठकर चौबारे से भाग खड़े हुए। अगले दिन उन्होंने बताया कि रात को आपके बाबा जी हाथ में डंगोरी लिए हमारे पास आकर खड़े हो गए, जिससे हम घबराकर भाग गए। यानि संतों का जहां भी प्रवेश होता है, वहां बुराइयां या बुराई से जुड़े लोग टिक नहीं पाते।

 

आश्रम में तैयार फलों के प्रति लोगों का विशेष लगाव

सेवादार चंगाराम बताते हैं कि आश्रम में शुरू से ही बागबानी को महत्व दिया जाता रहा है। समय-समय पर यहां अनार, किन्नू, मौसमी, अमरूद, जामुन आदि के फलदार पौधे लगाए गए हैं। आश्रम के 14 कनाल रकबे में से करीब 10 कनाल में फलदार पौधों के अलावा मौसमानुसार सब्जियां लगाई जाती हैं। गांव की संगत के साथ-साथ आस-पास के गांवों से भी लोग आश्रम से फल और सब्जियां लेकर जाते हैं। इससे जितनी भी धनराशि एकत्रित होती है, उसको आश्रम के विकास कार्य पर खर्च कर दिया जाता है। बता दें कि आश्रम में तैयार फलों के प्रति क्षेत्र की साध-संगत का खासा लगाव है।

 

करीब 270 साल पूर्व आयली के नंबरदार दारा खान व उनके भतीजे अहमद के नाम पर संयुक्त रूप से बसा हमारा गांव अहमदपुर दारेवाला एक शांतिप्रिय गांव है। यहां पर पूज्य साई मस्ताना जी महाराज द्वारा स्थापित डेरा सच्चा सौदा अलखपुर धाम गांव की शान है। यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि डेरा सच्चा सौदा की तीनों पातशाहियों ने समय-समय पर इस गांव में रूहानी सत्संगें लगाकर लोगों को सामाजिक बुराइयों के प्रति जागरूक किया है। यहां 36 बिरादरियों के लोग हमेशा आपसी प्रेम एवं भाईचारे से रहते हैं।
-श्रीमति शारदा देवी, सरपंच, अहमदपुर दारेवाला।

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