कोर्ट ने कहा – ‘देश सबसे पहले’
Christian army officer Dismissal: दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय सेना के एक अधिकारी की बर्खास्तगी को सही ठहराया है, जिन्होंने अपने ईसाई धर्म का हवाला देते हुए रेजीमेंट के मंदिर और गुरुद्वारे में होने वाले धार्मिक आयोजनों में भाग लेने से मना कर दिया था। यह मामला लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन से जुड़ा है, जिन्हें सेना की तीन कैवेलरी रेजीमेंट में नियुक्त किया गया था। कमलेसन ने सेना से बिना पेंशन और ग्रेच्युटी के निष्कासन को चुनौती देते हुए अपनी सेवा बहाली की मांग की थी, जिसे उच्च न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया। Delhi High Court
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा, “अधिकारी को कई बार वरिष्ठों द्वारा समझाया गया, किंतु वे अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण सैन्य परंपरा के अनुसार होने वाली धार्मिक गतिविधियों में सम्मिलित होने से लगातार इनकार करते रहे।” अदालत ने यह भी कहा कि सेना की नींव अनुशासन, एकता और राष्ट्र सर्वोपरि की भावना पर टिकी होती है। उसमें हर धर्म, जाति और क्षेत्र के लोग सेवा देते हैं, लेकिन वर्दी के नीचे वे सब एक होते हैं। धार्मिक भिन्नता को प्राथमिकता देना सैन्य अनुशासन और एकता को प्रभावित कर सकता है।
सेना में अनुशासन और कार्य संस्कृति, आम नागरिक जीवन से कहीं अधिक कठोर
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सेना में अनुशासन और कार्य संस्कृति, आम नागरिक जीवन से कहीं अधिक कठोर होती है, और किसी सैनिक द्वारा आदेशों की अवहेलना करना गंभीर अनुशासनहीनता माना जाता है। सेना की ओर से प्रस्तुत पक्ष में कहा गया कि “रेजिमेंटल परेड और धार्मिक स्थलों में उपस्थिति केवल धार्मिक कृत्य नहीं, बल्कि यूनिट की एकता और अनुशासन का प्रतीक है। किसी अधिकारी द्वारा इससे इनकार करना, सैन्य भावना और अखंडता को क्षति पहुँचाता है।”
लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन को मार्च 2017 में सेना में नियुक्त किया गया था। उन्हें जिस स्क्वाड्रन का नेतृत्व सौंपा गया, उसमें अधिकांश सैनिक सिख समुदाय से थे। उनका कहना था कि उनकी यूनिट में मंदिर और गुरुद्वारा तो हैं, लेकिन एक सर्वधर्म स्थल का अभाव है, जहाँ सभी धर्मों के अनुयायी एक साथ आ सकें। Delhi High Court
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