नशा तस्करी व निराधार राजनीति

Drugs, Smuggling, Baseless, Politics

झूठ, जोशीले भाषण व नारे वर्तमान राजनीति में हावी हो चुके हैं। इसकी ताजा मिसाल आप सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल का माफीनामा है। जो पार्टी नशा तस्करी के मुद्दे को लेकर विधानसभा चुनावों में उतरी और जिस नेता पर नशा तस्करी के आरोप लगाकर उसे जेल भेजने के लिए दिन तक भी तय कर दिए गए थे, उसी पार्टी का प्रमुख कह रहा है कि उनसे गलती हो गई। यहां कांग्रेस का यह बयान उपयुक्त है कि केजरीवाल को माफी मजीठिया से नहीं बल्कि पंजाब की जनता से मांगनी चाहिए।

अकाली नेता बिक्रमजीत सिंह मजीठिया नशा तस्करी का दोषी है या नहीं यह अलग मामला है लेकिन जिस राजनेता ने सरेआम रैलियों में मजीठिया को नशा तस्कर कहा और फिर वह अपने बयान से बदल जाए तो राजनीति झूठों की नजर आने लगती है। नशा तस्करी के लिए पंजाब पूरे देश में बदनाम हो गया था। अकाली नेता बिक्रम मजीठिया के खिलाफ ड्रग माफिया पर गठित एसआईटी ने जांच भी की और अपनी रिपोर्ट में मजीठिया को क्लीन चिट्ट नहीं दी, फिर भी खुद को आम जनता का नेता कहलवाने वाला केजरीवाल एसआईटी की रिपोर्ट का खुलासा होने से पहले ही अपनी सार्वजनिक तौर पर कही हुई बातों को झूठ करार दे देता है।

दरअसल केजरीवाल अनजान राजनेता हैं जिनके पास ईमानदारी, सच्चाई संबंधी लोगों को भावुक करने वाले भाषण तो जरूर हैं लेकिन राजनैतिक गुणों को प्रयोग करना नहीं आता। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री अमरिन्द्र सिंह भी मजीठिया मामले में दुविधा से ही निकल रहे हैं। अमरिन्दर सरकार ने नशा तस्करों को जेल भेजने की घोषणा की थी लेकिन सरकार बनने के बाद वह भी चुप हो गए। प्रताप सिंह बाजवा, नवजोत सिंह सिद्धू सहित कई नेता मजीठिया के खिलाफ कार्रवाई के लिए दबाव बना रहे हैं, लेकिन अमरिन्दर सिंह चुप्पी साधे बैठे हैं। अमरिन्दर सिंह एक अनुभवी नेता हैं और उन्होंने मजीठिया मामले में अपना पल्ला चतुराई से बचा लिया है। दूसरे तरफ केजरीवाल के नौसिखियापन ने उनका तमाशा बना दिया है।

दोनों हालातों में राजनीति में कही हुई बातों पर निराधार होने के सवाल उठ रहे हैं। स्पष्ट है मुद्दे केवल चुनाव जीतने के हथियार हैं, राजनेता इन हथियारों को बाखूबी इस्तेमाल करते हैं। यह बात अलग है कि किसी को ईस्तेमाल करना आता है और किसी को नहीं। विश्वास करने वाली जनता ठग्गी का शिकार हो जाती है लेकिन जनता को याद रखना चाहिए कि राजनीति में जो होता है वह कहा नहीं जाता, जो कहा जाता है, वह होता नहीं। जनता को न अमरिन्दर सिंह की समझ आ रही है न अरविन्द केजरीवाल की और न ही बिक्रम मजीठिया की। जनता वोट के खेल में एक बटन है, उसकी भावनाओं, हितों को कौन पूछता है?