पूरे विश्व में एक जैसी हो शिक्षा नीति

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किसी भी समाज और राष्ट्र के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। शिक्षा ही वह सेतु है, जो व्यक्ति-चेतना और समूह चेतना को वैश्विक, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों से अनुप्राणित करती है। भारत के सामने जो समस्याएं सिर उठाए खड़ी हैं, उनमें मूल्यहीन शिक्षानीति एक बड़ा कारण रही है। शिक्षा ही जब मूल्यहीन हो जाए, तो देश एवं दुनिया में मूल्यों की संस्कृति कैसे फलेगी? वर्तमान में शिक्षा का उद्देश्य जीवन को उन्नत बनाना नहीं, अपितु आर्थिक स्तर को ऊंचा उठाना हो गया है। यदि भारत के भविष्य को बदलना है तो भावी पीढ़ी पर ध्यान देना ही होगा, उन्हें अपनी संस्कृति एवं मूल्यों से जोड़ना होगा। महात्मा गांधी के अनुसार सर्वांगीण विकास का तात्पर्य है- आत्मा, मस्तिष्क, वाणी और कर्म-इन सबके विकास में संतुलन बना रहे। बाल एवं युवा छात्रों में ढेरों क्षमताएं तथा ऊर्जा होती हैं। इसे सही दिशा की ओर मोड़ने की आवश्यकता है ताकि उनकी क्षमताओं का दुरूपयोग न हो।

अत: आज बालक के सामाजिक, राष्ट्रीय एवं आध्यात्मिक गुणों को बाल्यावस्था से ही विकसित करना भी उतना ही आवश्यक है जितना उसको पुस्तकीय ज्ञान देना। भारत के मिसाइल मैन, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा है कि अगर कोई देश भ्रष्टाचार मुक्त है और सुंदर दिमाग का राष्ट्र बन गया है, तो मुझे दृढ़ता से लगता है कि उसके लिये तीन प्रमुख सामाजिक सदस्य हैं वे पिता, माता और शिक्षक हैं। डॉ. कलाम की यह शानदार उक्ति प्रत्येक व्यक्ति के दिमाग में आज भी गूंज रही हैं। मानव ने ज्ञान-विज्ञान में आश्चर्यजनक प्रगति की है। परन्तु अपने और औरों के जीवन के प्रति सम्मान में कमी आई है। शान्ति, अहिंसा और मानवाधिकारों की बातें संसार में बहुत हो रही हैं, किन्तु सम्यक्-आचरण का अभाव अखरता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव डा. कोफी अन्नान ने कहा था कि मानव इतिहास में बीसवीं सदी सबसे खूनी तथा हिंसक सदी रही है।

बीसवीं सदी में विश्व में दो विश्व महायुद्धों, हिरोशिमा तथा नागाशाकी पर दो परमाणु बमों का हमला तथा अनेक युद्धों की विनाश लीला के ताण्डवों को देखा है, जिसके लिए सबसे अधिक दोषी हमारी शिक्षा है। इक्कीसवीं सदी की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो बालक को सारे विश्व से प्रेम करने के विश्वव्यापी दृष्टिकोण को विकसित करें। ग्लोबल विलेज के युग में सारे विश्व की एक जैसी शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए। अब भारत की नयी शिक्षा नीति में शिक्षक का चरित्र एवं साख दुनिया के लिये प्रेरक एवं अनुकरणीय बनकर प्रस्तुत होगा, जिसमें भारतीय संस्कारों एवं संस्कृति का समावेश दिखाई देगा। अत: विश्व शिक्षक दिवस के अवसर पर विश्व के सभी शिक्षकों को यह संकल्प लेना चाहिए कि वे संसार के प्रत्येक बच्चे को संतुलित एवं उद्देश्यपूर्ण शिक्षा प्रदान करके विश्व में आध्यात्मिक, अहिंसक व शांतिपूर्ण सभ्यता की स्थापना करेंगे।

 

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