पौना एकड़ भूमि से लाखों कमा रहा किसान फूल कुमार

सच कहूँ स्पेशल: जहरमुक्त प्राकृतिक खेती को अपनाकर लिखी कामयाबी की इबारत, खेत में लहलहा रहे फल, सब्जियों, औषधियों और मसालों के पौधे

अगर आप इस खेत में आएंगे तो आपको किसी घने हरे-भरे जंगल सा नजारा दिखेगा। फल, सब्जियां, औषधीय पौधे, मसाले आदि के हरे भरे शानदार पेड़ों को देखकर आप अद्भुत सुकून और खुशी से भर जाएंगे। हैरानी की बात ये है कि इस खेत में किसी भी तरह का रासायनिक खाद या पेस्टिसाइड का इस्तेमाल नहीं किया गया है। खेती के इस मॉडल को अपनाकर वे सिर्फ एक एकड़ भूमि से ही सालाना लाखों रुपये की आमदन ले रहे हैं। जी हाँ, सच कहूँ बता रहा है रोहतक जिले में महम तहसील के गाँव भैणी मातो के किसान फूल कुमार के खेत की। जिन्होंने प्राकृतिक खेती से कामयाबी की नई इबारत लिखी है। आइए जानते हैं उनकी सफलता के सफर के बारे में …..

राजीव दीक्षित और पद्मश्री सुभाष पालेकर से प्रभावित होकर बढ़ाया कदम

फूल कुमार बताते हैं कि 2009 में टेलीविजन देखते वक्त उन्होंने राजीव दीक्षित का व्याख्यान सुना था। वे प्राकृतिक खेती के बारे में बता रहे थे। तब मन में पहली बार ऐसे करने के बारे में ख्याल आया। इसके बाद मैंने काफी क्षेत्र में ये खेती शुरू कर दी थी। हालांकि उस दौरान जानकारी के अभाव में मुझे काफी नुक्सान भी हुआ। लेकिन धीरे-धीरे मैंने इस खेती के बारे में सीखा। इसके बाद मार्च 2017 में वे महाराष्टÑ में विदर्भ क्षेत्र के गाँव बेलोरा निवासी पद्मश्री सुभाष पालेकर के शिविर में गए।

शिविर में पालेकर जी ने बताया कि एक एकड़ भूमि में ही प्राकृतिक खेती की मदद से 6 से 12 लाख रुपये तक की कमाई करना संभव है। शुरू में तो मुझे उनकी इस बात पर बिल्कुल विश्वास नहीं हुआ। इस पर पालेकर ने कहा कि आप हमारे यहां महाराष्टÑ में आइए और हमारे मॉडल को देखिए और जो इस मॉडल पर शिद्दत से काम कर रहे हैं वो आमदनी ले रहे हैं। ये पूरा मामला कड़ी मेहनत का है।

ऐसे हुई शुरूआत

फूल कुमार के मुताबिक अगस्त 2017 से उन्होंने बीजारोपण के साथ प्राकृतिक खेती की शुरूआत की। उन्होंने अपनी पौना एकड़ जमीन में सबसे पहले नीम्बू का मॉडल लगाया। इसके तहत 24 बाई 24 पर नीम्बू के पौधे लगाए। हर दो नीम्बू के बीच एक अनार है। इसके साथ ही अन्य पौधे भी लगाए। इसके बाद अमरूद और सेब मॉडल लगाए। आज उनके खेत में नीम्बू, अनार, केला, अमरूद, मौसमी, पपीता, आंवला, जामुन, सेब, किन्नू, आडू, अंजीर, कटहल, आम, चीकू, लिसोडा, अनासपति, खजूर और नारियल के पेड़ लहलहा रहे हैं। पहले साल ही इस किसान ने अपने खेत से 90 हजार रुपये की आमदन प्राप्त कर ली थी। इसके बाद दूसरे साल एक लाख 40 हजार रुपये आमदन हुई।

तीसरे साल दो लाख से दो लाख 40 हजार के बीच रही। इस तरह साल-दर-साल आय में लगातार इजाफा हो रहा है। अब महीने के अंतिम रविवार को उनके खेती मॉडल को देखने के लिए भारी संख्या में किसान पहुंचते हैं और प्राकृतिक खेती की बारिकियों से अवगत होते हैं। फूल कुमार ने ये एक दिन ही इसके लिए निश्चित किया है ताकि उनकी खेती के कार्य में बाधा न आए। वे बताते हैं कि उनके द्वारा उत्पादित ज्यादातर फल-सब्जियां तो खेत से ही बिक जाती है और बाकी को मंडी भेजा जाता है, जहां आर्गेनिक होने के चलते हाथों बिकती है।

पंच स्तरीय मॉडल बना वरदान

फूल कुमार ने अपने खेत में पंचस्तरीय मॉडल लगाया हुआ है। इस मॉडल के मुताबिक एक एकड़ में 54 नीम्बू, 133 अनार, 170 केले, 420 सहजन और 420 काली मिर्च के पेड़ लगते हैं। इसके बाद हर दो पौधों के बीच में 820 अंगूर की बेल लगती हैं। इसके साथ ही हर दो पौधों के बीच में मिर्च, टमाटर, हल्दी, अदरक और मौसमी सब्जियां लगाई जाती हैं। इस खेती की सफलता के पीछे आच्छादन का बड़ा रोल है। इसमें जितना कास्ट आच्छादन मिलता है, वो काट-काट कर इसमें बिछाते हैं। उन्होंने कहा कि खेत का पत्ता भी बाहर नहीं जाने देते। सिर्फ फल-सब्जियों को खेत से बाहर निकालते हैं। उन्होंने बताया कि पत्तों से जमीन का कार्बन बढ़ता है और जितना ये बढ़ेगा, उतनी की खेत से आमदन बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि पूरे मॉडल के विकसित होने पर पालेकर जी ने एक एकड़ से औसतन छह से 12 लाख रुपये तक की कमाई बताई है, लेकिन मेरा मानना है कि ये आमदन इससे भी अधिक होगी।

प्राकृतिक खाद और पेस्टिसाइड का इस्तेमाल

फूल कुमार बताते हैं कि उन्होंने अपने खेत में किसी भी रासायनिक खाद या पेस्टिसाइड का इस्तेमाल नहीं किया है। बल्कि उन्होंने पौधों की अच्छी बढ़वार और बीमारियों से बचाव के लिए जरूरत पड़ने पर जीवामृत, घन जीवामृत और प्राकृतिक पेस्टिसाइड का इस्तेमाल किया, जो उन्होंने स्वयं तैयार किए। उनका मानना है कि अगर हर किसान जहर मुक्त खेती को प्राथमिकता दे तो आमजन अनेक असाध्य बीमारियों का शिकार होने से बच सकता है।

कड़ी मेहनत से ही कामयाबी संभव

फूल कुमार बताते हैं कि किसानों को इस तकनीक की सही जानकारी लेकर ही खेती करनी चाहिए। क्योंकि प्राकृतिक खेती के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, बिना इसके अच्छी कमाई संभव नहीं है। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी और वे स्वयं खेती को पूरा वक्त देते हैं। जरूरत पड़ने पर मजदूरों की मदद भी ली जाती है। खेती में इतना काम होता है कि आपको एक काम को छोड़कर दूसरा काम करना पड़ता है, यानि प्रतिदिन जरूरी काम को छोड़कर अति जरूरी काम करना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि खेती में किसी दिन कोई काम नहीं होता, इसमें जितना काम आदमी करेगा, उतनी ही इनकम भी बढ़ेगी।

-जसविंद्र इन्सां

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।