अल नीनो प्रभाव की आशंका

Weather Forecast

मौसम का मिजाज दिन-ब-दिन गणित की पहेली बनता जा रहा है। प्रकृति हमें कई ऐसे रूप दिखा रही हैं, जो हमारी समझ से परे हैं। प्रकृति के कई रूप हमें आश्चर्य में डालते हैं और सोचने के लिए विवश करते हैं। प्रकृति के बदलाव की बानगी हमें सर्दियों में गर्मी और गर्मियों में हद से ज्यादा गर्मी जैसी स्थितियों से पता चलती है। अब इन सब के पीछे अल नीनो को भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है। अल नीनो के प्रभाव से इस बार बारिश कम होने की संभावना जताई जा रही है। दरअसल अल नीनो प्रशांत महासागर में आने वाला एक तरह का मौसमी परिवर्तन है। इसकी वजह से सर्दियों में गर्मी और गर्मी में और ज्यादा गर्मी पड़ती है। साथ ही इसमें बरसात की संभावना भी कम हो जाती है।

यह भी पढ़ें:–  रेलवे स्टेशन पर यात्री से 1.32 करोड़ रुपये का सोना जब्त

हाल के शोध से पता चलता है कि अत्यधिक अल नीनो घटनाओं की आवृत्ति वैश्विक औसत तापमान के साथ रैखिक रूप से बढ़ती है। ऐसे में वैश्विक तापमान में 10 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की स्थिति में इस तरह की घटनाओं की संख्या दोगुनी (हर 10 साल में ऐसी एक घटना) हो सकती है। यह सिलसिला वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस पर स्थिर किए जाने के बाद एक शताब्दी तक जारी रहने की संभावना है। इसकी वजह से अनुकूलन की सीमा को चुनौती मिलती है और इस तरह डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा पर भी बड़े जोखिम के संकेत मिलते हैं। अल नीनो के दौरान और उसके बाद भी वैश्विक औसत सतह का तापमान बढ़ता है, क्योंकि महासागर वातावरण में गर्मी को स्थानांतरित करते हैं। अल नीनो के दौरान पानी के गर्म होने से बादल की तहें समाप्त हो जाती हैं और सौर विकिरण की वजह से समुद्र की सतह अधिक गर्म हो जाती है।

उल्लेखनीय है कि अमेरिका से जुड़ी संस्था एमओएए ने जून से दिसंबर 2023 के बीच अल नीनो के आने की भविष्यवाणी की है। यह भारत में मानसून को प्रभावित कर सकता है। पिछले 20 वर्षों में जब भी सूखा पड़ा है, वह अल नीनो के कारण हुआ है। शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि अल नीनो की वजह से सूखा पड़ सकता है, जिससे खाद्य पदार्थों की आपूर्ति पर दबाव पड़ सकता है, जिसका असर कीमतों पर पड़ सकता है। खाने-पीने का सामान महंगा हो सकता है। गौरतलब है कि पिछले साल से दुनिया महंगाई की समस्या से परेशान है।

विश्व आर्थिक मंच ने 2023 में मुद्रास्फीति में 8.8 प्रतिशत से 6.5 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान लगाया है, लेकिन अल नीनो का प्रभाव बना, तो इस अनुमान पर पानी फिर सकता है और दुनिया के अधिकांश क्षेत्र फिर से महंगाई की चपेट में आ सकते हैं। वित्त मंत्रालय ने जनवरी महीने के लिए जो मंथली इकोनॉमिक रिव्यू जारी किया, उसमें कहा गया कि मौसम से जुड़ी जानकारी देने वाली एजेंसियों ने भविष्यवाणी की है कि भारत में अल नीनो जैसे हालात देखने को मिल सकते हैं। अगर ये भविष्यवाणी सच साबित हुई कि इसका असर मानसून पर देखने को मिल सकता है। बारिश में कमी देखने को मिल सकती है। इससे कृषि उत्पादन कम रह सकता है जिससे खाद्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।

इस बार मौसम को अगर समझें तो फरवरी के महीने में ही 122 साल का रिकॉर्ड टूटा है। वहीं, करीब 119 जिलों में बारिश कम हुई है और सूखे जैसे हालात पैदा हुए हैं। अल नीनो की वजह से इस बार सर्दियों के मौसम में पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी कम हुई और कुछ इलाकों में तो हुई ही नहीं। वहीं मैदानी इलाकों में बारिश का कम होना और गर्मी का बढ़ना अल नीनो की ओर इशारा करता है। पिछले 20 साल में दुनिया भर में सूखा अगर पड़ा है, तो उसके पीछे का कारण अल नीनो है। मार्च, अप्रैल और मई के महीने में गर्मी इस बार नए-नए रिकॉर्ड बना सकती है। वहीं मानसून के बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा। बारिश कितनी होगी, इसके बारे में कोई अनुमान नहीं जताया जा रहा है।

अल नीनो का देश की अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा। कम बारिश का प्रभाव कृषि उत्पादन पर होता है। उदाहरण के लिए यदि तापमान में 1 डिग्री की वृद्धि होती है, तो गेहूं के उत्पादन में लगभग 3 से 4 प्रतिशत की कमी आएगी। वहीं अगर तापमान में 4 से 5 डिग्री की बढ़ोतरी होती है, तो उत्पादन में 15 से 20 फीसदी की कमी आ सकती है।

सामान्यत: प्रशांत महासागर में पवनें भूमध्य रेखा से होकर पश्चिम की ओर बहती हैं। इसका सीधा असर यह होता है कि दक्षिण अमेरिका से गर्म पानी एशिया की तरफ आता है। गर्म पानी बहने से खाली हुई जगह को महासागर की गहराई से ठंडा पानी ऊपर आकर भरता है। इसे ‘अपवेलिंग’ कहते हैं और अल नीनो और ला नीना इसी पैटर्न को तोड़ते हैं। अल नीनो के हालात तब बनते हैं जब एक जगह से दूसरी जगह जाने वाली हवाएं कमजोर पड़ जाती हैं। इससे गर्म पानी पूर्व दिशा में अमेरिका के पश्चिमी तट की ओर आने लगता है। हालांकि अल नीनो से यह साबित नहीं होता है कि सूखा पड़ेगा ही, क्योंकि 40 प्रतिशत अल नीनो में सूखे की स्थिति नहीं आई।

भारत में वर्ष 1951 के बाद से 10 बार ऐसे मौके आए हैं, जब अल नीनो की वजह से सूखे की स्थिति उत्पन्न हुई। जबकि कई अल नीनो ऐसे भी रहे जब सूखा नहीं पड़ा। कई बार ऐसे सूखे की स्थिति भी निर्मित हुई, जिसकी वजह अल नीनो नहीं थी। सामान्य से 10 प्रतिशत कम बारिश होने पर हल्का सूखा, 15 से 20 प्रतिशत कम होने पर मध्यम सूखा, और 20 प्रतिशत से कम बारिश होने पर सूखे की गंभीर स्थिति होती है। भारत में सबसे बुरा अल नीनो साल 1972 का रहा है, जब सामान्य से 24 फीसदी कम बारिश हुई थी। इसके बाद 2009 में जब 22 फीसदी कम बारिश हुई।
                                       देवेन्द्रराज सुथार, युवा लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार (यह लेखक के अपने विचार हैं)

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here