प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रूस के राष्टÑपति व्लादीमीर पुतिन को अनौपचारिक तौर पर मिलने के लिए रूस पहुंचे हैं। इससे पहले मोदी चीन के राष्टÑपति शी चिन्फिंग के साथ भी ऐसी ही मुलाकात कर चुके हैं। मुद्दों या समझौतों पर केन्द्रित न होने के बावजूद ऐसी मुलाकातों का भी अपना खास उद्देश्य है। अनौपचारिक मुलाकातों का समय भी तय समय से बढ़ जाता है व बातचीत लम्बे समय तक होने के साथ-साथ नेताओं में आपसी अपनापन झलकता है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी अनौपचारिक मुलाकातों की डिप्लोमैसी द्वारा विश्व स्तर पर घट रही घटनाओं के मद्देनजर यह दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं कि भारत किसी भी ताकतवर देश का अंध-समर्थक या कठ्ठपुतली नहीं।
खासकर अमेरिका द्वारा ईरान के साथ परमाणु समझौते तोड़ने के बाद अमेरिका व रूस दरमियान टकराव बढ़ा है। अमेरिका द्वारा ईरान पर पाबंदियां लगाना रूस के लिए कतई सहज रहने वाला घटनाक्रम नहीं। राष्टÑपति डोनाल्ड टंÑप की गिर रही साख के कारण भारत के लिए रूस व चीन के साथ नजदीकियां कायम रखना जरूरी बन गया है। फिर भी अमेरिका के साथ-साथ भारत के लिए रूस व चीन अधिक अहम हैं। बीते समय में जिस तरह हमनें विदेश नीति में अमेरिका को जगह दी थी, उसका सकारात्मक परिणाम भारत को देखने को नहीं मिला।
इसके विपरीत चीन व रूस ने अपना झुकाव पाकिस्तान की तरफ बढ़ा लिया था। चाहे भारत की तरफ से गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया गया है, फिर भी हर दौर में हर देश के साथ संबंध एक जैसे ही कायम रख पाना व्यावहारिक तौर पर संभव नहीं होता। कम से कम पाकिस्तान के मामले में तो हम देख ही चुके हैं, कि अमेरिका-भारत के संबंधों की मजबूती के बाद रूस व चीन भारत से दूर होते चले गए।
फिलस्तीन व इज्ररायल के मामले में भी भारत ने दोनों पक्षों के साथ एक समान चलने का भरोसा दिलाया, लेकिन अंतरराष्टÑीय स्तर पर जब दो पक्ष फैसला लेने के हालातों में पहुंच जाएं तब निष्पक्षता रख पाना काफी मुश्किल हो जाता है। प्रधानमंत्री की रूस व चीन की अनौपचारिक मुलाकातें अतीत की गलतियों को सुधारने के प्रयास अमेरिका, रूस, चीन भले कोई भी देश हो संबंध व व्यवहारिक होने चाहिएं।















