Pollution Crisis of Ganga: गंगा के अस्तित्व पर मंडराता प्रदूषण का संकट

Ganga Pollution Crisis
Pollution Crisis of Ganga: गंगा के अस्तित्व पर मंडराता प्रदूषण का संकट

भारतीय कृषि और सभ्यता की रीढ़ है गंगा

Pollution Crisis of Ganga: भारत की पवित्र और जीवनदायिनी गंगा नदी न केवल एक प्राकृतिक संपदा है, बल्कि देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक आस्था का प्रतीक भी है। हिमालय से निकलकर यह नदी बंगाल की खाड़ी तक अपनी यात्रा में 2510 किलोमीटर का सफर तय करती है, जिसमें 2071 किलोमीटर भारत के भूभाग से होकर गुजरता है और बाकी का हिस्सा बांग्लादेश में प्रवाहित होता है। गंगा और इसकी सहायक नदियाँ मिलकर दस लाख वर्ग किलोमीटर का एक विशाल उपजाऊ मैदान बनाती हैं, जो भारतीय कृषि और सभ्यता की रीढ़ है। Ganga Pollution Crisis

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गंगा नदी भारतीय संस्कृति और धर्म का अभिन्न अंग है। इसे हिंदू धर्म में पवित्र माना गया है और इसके जल का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों से लेकर अंतिम संस्कार तक किया जाता है। पुराणों, उपनिषदों और अन्य प्राचीन ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन मिलता है। इसके अलावा, विदेशी यात्रियों और विद्वानों ने भी गंगा की महत्ता को अपने साहित्य में स्थान दिया है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी गंगा का जल अद्वितीय है। इसमें मौजूद बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु इसे शुद्ध बनाए रखते हैं, जिससे यह जल अन्य नदियों की तुलना में अधिक स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक होता है। लेकिन आधुनिक युग में गंगा की यह पवित्रता और महिमा प्रदूषण के कारण खतरे में पड़ गई है।

गंगा का प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गया है

आज गंगा का प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने चेतावनी दी है कि यदि गंगा में सीवेज और औद्योगिक कचरे का गिरना नहीं रोका गया, तो इसका दुष्प्रभाव न केवल पर्यावरण पर पड़ेगा, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालेगा। गंगा में प्रतिदिन लाखों लीटर सीवरेज का पानी और औद्योगिक कचरा गिराया जाता है। साथ ही, धार्मिक अनुष्ठानों और शवदाह के कारण भी गंगा का जल प्रदूषित होता है। इस प्रदूषण का न केवल गंगा के जलीय जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, बल्कि यह उन समुदायों को भी प्रभावित करता है जो अपनी आजीविका के लिए गंगा पर निर्भर हैं। Ganga Pollution Crisis

गंगा बेसिन भारत के उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल समेत राज्यों में फैला है। यह क्षेत्र न केवल कृषि और उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि जैव विविधता के संरक्षण में भी इसकी अहम भूमिका है। फिर भी, यह क्षेत्र विकास और शोषण की मार झेल रहा है। बालू खनन, गाद की समस्या, जलवायु परिवर्तन और अतिक्रमण गंगा के अस्तित्व को लगातार खतरे में डाल रहे हैं। उत्तराखंड के सुरेश भाई जैसे पर्यावरणविदों ने बार-बार गंगा के उद्गम पर मंडराते खतरों की ओर इशारा किया है। उनका मानना है कि यदि समय रहते पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया गया, तो गंगा का अस्तित्व समाप्त हो सकता है।

गंगा को बचाने के लिए जन आंदोलन जरूरी

गंगा मुक्ति आंदोलन के संस्थापक अनिल प्रकाश का कहना है कि गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है। वे मानते हैं कि गंगा को बचाने के लिए जन आंदोलन जरूरी है। फरक्का बराज और अन्य बांधों को हटाने की मांग भी तेज हो रही है। इन बांधों ने गंगा की प्राकृतिक धारा को बाधित कर दिया है, जिससे नदी के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। पूर्व सांसद अली अनवर ने गंगा की सफाई को राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठाने की अपील की। उन्होंने नमामि गंगे योजना पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस योजना के तहत आवंटित बजट का दुरुपयोग हुआ है। गंगा की सफाई के नाम पर भ्रष्टाचार और ठेकेदारी ने समस्या को और जटिल बना दिया है। Ganga Pollution Crisis

गंगा को बचाने के लिए यह जरूरी है कि स्थानीय समुदायों को इस प्रक्रिया में शामिल किया जाए। गंगा पर निर्भर लोगों की जरूरतों और सुझावों को ध्यान में रखकर ही प्रभावी योजनाएँ बनाई जा सकती हैं। बिहार के पर्यावरणविद घनश्याम सिंह ने बांधों के दुष्प्रभावों पर चिंता जताई और फरक्का बराज को खोलने की मांग की। उन्होंने कहा कि अमेरिका और अन्य देशों में जहां बांध तोड़े जा रहे हैं, वहीं भारत में नए बांधों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। यह न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक है, बल्कि स्थानीय समुदायों के जीवन को भी प्रभावित करता है।

2025 में देश भर से गंगा प्रेमी एकत्रित होंगे

भागलपुर में आयोजित एक राष्ट्रीय विमर्श में गंगा के सवाल पर विभिन्न राज्यों और नेपाल के प्रतिनिधियों ने एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद की। इस विमर्श में निर्णय लिया गया कि 2025 में गंगा मुक्ति आंदोलन की वर्षगांठ पर देश भर से गंगा प्रेमी एकत्रित होंगे और गंगा की अविरलता और निर्मलता को बहाल करने के लिए एक व्यापक अभियान चलाने की रणनीति तैयार करेंगे। गंगा को बचाने के लिए सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और आम जनता को मिलकर काम करना होगा। यह केवल एक नदी नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर है। गंगा का संरक्षण न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अनमोल उपहार भी है।

गंगा भारत के लिए केवल जल स्रोत नहीं है, बल्कि यह हमारी पहचान, हमारी सभ्यता और हमारे विश्वास की धारा है। इसे बचाने के लिए हमें अपने दृष्टिकोण और विकास की नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा। यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो गंगा और उससे जुड़ी भारतीय संस्कृति को बचाना असंभव हो जाएगा। इसलिए, यह आवश्यक है कि हम सभी गंगा को प्रदूषण और शोषण से मुक्त करने के इस अभियान में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। Ganga Pollution Crisis

कुमार कृष्णन (यह लेखक के अपने विचार हैं) 

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