हरियाणा निकाय चुनावः निकाय चुनाव में हुड्डा समर्थित प्रत्याशियों ने मारी बाज़ी

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हुड्डा बनाम बीजेपी होती लड़ाई तो 4-0 से होती हुड्डा की जीत
दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने दिलवाई कांग्रेस को सबसे बड़ी जीत

चंडीगढ़ (अश्वनी चावला )।

हरियाणा में 3 नगर निगम, 3 नगर पालिका और 1 नगर परिषद चुनावों में बीजेपी-जेजेपी सरकार को बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा है। उसे 7 निकाय चुनावों में से सिर्फ 2 में जीत मिली और 5 में करारी हार। आम तौर पर माना जाता है कि स्थानीय निकाय चुनाव सरकार के पक्ष में ही जाते हैं। वैसे भी बीजेपी को शहरों की पार्टी माना जाता है। ऊपर से बीजेपी के पास सत्ता और जेजेपी का साथ भी था। इसलिए बीजेपी को उम्मीद थी कि कम से कम उसे शहरों में कोई चुनौती नहीं मिल सकती। लेकिन बीजेपी की इस उम्मीद को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने चकनाचूर कर दिया।

राजनीति के जानकार अक्सर कहते हैं कि हरियाणा में कांग्रेस का मतलब भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं। लेकिन बरोदा उपचुनावों में बड़ी जीत के बाद निकाय चुनावों में हुड्डा के दमखम ने साबित कर दिया है कि हरियाणा में विपक्ष का मतलब भी हुड्डा ही हैं। अगर हरियाणा में बीजेपी को कोई मात दे सकता है तो वो हुड्डा ही हैं।

हरियाणा के पंचकूला, अंबाला और सोनीपत नगर निगम चुनाव में केवल सोनीपत में हुड्डा समर्थित उम्मीदवार निखिल मदान को मेयर पद के लिए टिकट मिली थी। यहां पर बरोदा उपचुनाव की तरह जीत दिलवाने की कमान भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथों में सौंपी। दीपेंद्र हुड्डा ने निगम चुनावों में जमकर कैंपेनिंग की। इस दौरान उनके नेतृत्व में कई बीजेपी, जेजेपी और इनेलो नेताओं ने कांग्रेस का दामन थामा। इस तरह दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने ना सिर्फ कांग्रेस के वोट बैंक को संभाले रखा बल्कि विरोधी दलों के वोटों में भी जबरदस्त सेंधमारी की। इसी का नतीजा रहा कि सोनीपत से दीपेंद्र समर्थित उम्मीदवार निखिल मदान ने करीब 14,000 वोटों से प्रदेश की सबसे बड़ी जीत दर्ज की।

सोनीपत की जीत के साथ प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में हुड्डा इसलिए भी चर्चा में हैं कि उन्होंने वहां भी अपने उम्मीदवारों को जितवाने का काम किया, जहां कांग्रेस सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ रही थी। सांपला में आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरी हुड्डा समर्थित उम्मीदवार पूजा ने बीजेपी उम्मीदवार को 3 गुणा से भी ज्यादा मतों से हराकर जीत दर्ज की। इसी प्रकार से धारूहेड़ा और उकलाना नगर पालिका के प्रधान पद के लिए हुए चुनाव में भी हुड्डा समर्थित आजाद प्रत्याशियों ने गठबंधन सरकार के उम्मीदवारों को मात दी।

ऐसा नहीं है कि इस चुनाव में सब कांग्रेस के लिए बल्ले-बल्ले ही रहा। अगर कांग्रेस ने सोनीपत में जीत हासिल की तो अंबाला और पंचकूला में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा के समर्थक मेयर उम्मीदवार बुरी तरह चुनाव हार गए। पंचकूला में कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही। लेकिन उसे सबसे करारी हार अंबाला में झेलनी पड़ी। यहां सैलजा समर्थित उम्मीदवार मुक़ाबले में भी नज़र नहीं आई और चौथे नंबर रहीं। ख़ुद प्रदेशाध्यक्ष के समर्थक उम्मीदवारों का इस तरह हारना सैलजा के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस में अंदरूनी खलबली पैदा करने वाला है। कांग्रेस के लिए चिंता का विषय ये भी है कि रेवाड़ी नगर परिषद चेयरमैन पद का चुनाव भी पार्टी हार गई। यहां कांग्रेस के पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव की समर्थक उम्मीदवार को पार्टी ने टिकट दिया था। लेकिन यहां भी कांग्रेस उम्मीदवार बुरी तरह हारीं और तीसरे नंबर पर रही।

इसलिए अगर निकाय चुनावों के नतीजों का विश्लेषण हुड्डा बनाम बीजेपी की लड़ाई के तौर पर किया जाए तो हुड्डा ने बीजेपी को 4-0 से मात दी है। क्योंकि 7 में से 4 जगह पर ही हुड्डा समर्थित उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे और चारों जगह पर उनकी जीत हुई है। बरोदा उपचुनाव में भी पूरी लड़ाई हुड्डा बनाम बीजेपी-जेजेपी थी। लेकिन वहां भी हुड्डा पूरी सरकार पर भारी पड़े थे। इसकी एक बड़ी वजह ये भी रही कि भूपेंद्र हुड्डा ने हर बड़ी चुनौती के सामने राज्यसभा सांसद दीपेंद्र को अड़ाने का काम किया। लेकिन दीपेंद्र ने भी इन तमाम चुनौतियों को मौक़े की तरह लिया और उपचुनाव से लेकर निगम चुनाव तक चुनाव में कहीं भी दीपेंद्र ने बीजेपी की दाल नहीं गलने दी।

बहरहाल, स्थानीय निकय चुनावों के नतीजों से ये बात तो साफ हो गई है तमाम विपरित हालात में भी बीजेपी के पास कांग्रेस, इनेलो और उसके तमाम नेताओं को मात देने के पैंतरे आज भी मौजूद हैं। लेकिन हुड्डा को हराना या उनके गढ़ को भेदना तो दूर, उनके समर्थित उम्मीदवारों को हरा पाने का मंत्र बीजेपी के पास नहीं है।

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