Women Reservation Bill: संसद में पास होना ऐतिहासिक कदम

Women Reservation Bill
Women Reservation Bill: संसद में पास होना ऐतिहासिक कदम

Women Reservation Bill : आखिरकार 27 वर्षों के बाद महिला आरक्षण बिल संसद में पास हो गया। बिल के पक्ष में एकजुटता का आलम यह रहा कि राज्यसभा में बिल के खिलाफ एक भी वोट नहीं पड़ा और लोकसभा में भी बिल भारी बहुमत से पास हो गया। विपक्षी दल कांग्रेस शुरू से ही इस बिल के पक्ष में रही है और एक-दो बिंदुओं को छोड़कर सभी पार्टियों ने इसका समर्थन किया है। बिल पर आपत्ति केवल इसके लागू होने की समय सीमा तक ही सीमित है। बिल के कानून बनने के बावजूद 2024 के लोकसभा चुनाव में यह कानून लागू नहीं हो सकेगा। फिर भी, यह पहल ऐतिहासिक है, जिससे राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाना है। Women Reservation Bill

दरअसल, लोकतंत्र समानता के सिद्धांत पर आधारित एक राजनीतिक प्रणाली है, जहां सभी को समान अवसर दिए जाते हैं। हमारे देश में मध्यकाल से ही महिलाएं सामाजिक एवं आर्थिक रूप से बदहाली का जीवन व्यतीत करती आ रही हैं, राजनीति या शासन में भागीदारी तो दूर की बात थी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में लोकतंत्र न तो असफल है और न ही पूरी तरह सफल, बल्कि निरंतर खामियों को दूर करता हुआ आगे बढ़ रहा है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी से समाज में बदलाव आएगा तथा महिलाओं का स्वाभिमान बढ़ेगा।

अब जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक दल निष्पक्षता और सच्चाई पर चलकर योग्य व सक्षम महिलाओं को अवसर दें, भले ही वे महिलाएं गरीब वर्ग से संबंधित हों। वर्तमान स्थिति यह है कि राजनीति काफी हद तक बड़े परिवारों तक ही सीमित है। राजनीति में सिर्फ अमीर लोग ही अपनी किस्मत आजमाते हैं, लेकिन ये भी सच है कि चंद नेता आम घरों से भी निकले हैं। मौजूदा समय में देश के बड़े पदों पर आसीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi), राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) किसी अमीर परिवार से नहीं आते हैं। इसी तरह कई मुख्यमंत्री भी सामान्य परिवारों से संबंध रखते हैं, फिर भी राजनीति काफी हद तक धनाढ्य परिवारों की जागीर बनी हुई है। Women Reservation Bill

राजनीति में प्रतिभा को महत्व दिया जा रहा है, लेकिन इसके उदाहरण कम हैं। यदि आरक्षण देकर महिलाओं को समानता देने का प्रयास है तो पार्टियों को समानता के सिद्धांत का सम्मान करते हुए सक्षम महिलाओं को आगे लाना चाहिए। समानता का मतलब केवल योग्यता की सराहना करने से है। इसे पूरा करने के लिए यह भी जरूरी है कि महिला सरपंच पति की संस्कृति को छोड़कर अपनी क्षमताओं का उपयोग विधायक या सांसद बनने के लिए करें।

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