अपराध पर अंकुश के लिए जरुरी है ईमानदारी

Honesty
सांकेतिक फोटो

फिल्म अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान का मामला इन दिनों चर्चा का (Honesty) विषय बना हुआ है। मामले की जांच कर रहे पूर्व एनसीबी अधिकारी समीर वानखेड़े पर आरोप लगा है कि उन्होंने आर्यन को केस से बाहर निकालने के लिए 25 करोड़ रुपये की मांग की थी। इस मामले में सच क्या है, यह तो निष्पक्ष जांच के बाद ही पता चलेगा, लेकिन यह भी तथ्य है कि भ्रष्टाचार देश को घुन की भांति खा रहा है। पैसे के लालच में निर्दोषों पर झूठे केस बनाए जा रहे हैं। जांच अधिकारियों ने ‘अपराध’ को सोने की खदान बना लिया है। कुछ मामलों में ही सच उजागर करने के प्रयास किए जाते हैं, लेकिन अधिकतर मामलों में भ्रष्टाचार और राजनीतिक दखल के कारण झूठ का बोलबाला बढ़ता जा रहा है।

यह भी पढ़ें:– Meerut : डेरा सच्चा सौदा की हेल्पलाइन बनी लाइफ लाइन

पुलिस अधिकारी और कर्मचारी झूठे केसों में फंसाने या केसों से बाहर निकालने के (Honesty) नाम पर रिश्वत लेकर खूब चांदी कूट रहे हैं। यही कारण है कि देश भर में हजारों पुलिस अधिकारी व कर्मचारी रिश्वत लेने के आरोप में अदालतों में सुनवाई का सामना कर रहे हैं। अपराध पर अंकुश नहीं लगने का सबसे बड़ा कारण ही भ्रष्टाचार है। यदि देश की पुलिस में भ्रष्टाचार खत्म हो जाए और वे इमानदारी से कार्रवाई करने लगें तब देश की दशा को हम कुछ दिनों में बदलता हुआ महसूस करने लगेंगे। रिश्वतखोरी के कारण ही अपराधी कानूनी कार्रवाई से बच निकलते हैं, दूसरी तरफ ईमानदार, जो रिश्वत नहीं देता उसे झूठे केसों में फंसा दिया जाता है। कोई ऐसा शहर और गांव नहीं, जहां लगभग रोजाना चोरी की घटनाएं न घटित हों।

चोरी के लाखों मामले आज भी थानों में लंबित पड़े हैं। यदि पूर्ण इच्छाशक्ति व (Honesty) से कानूनी कार्रवाई हो, फिर ही इस तरह की घटनाएं बंद हो सकती है। ईमानदारी से ही देश की सभी समस्याओं का समाधान संभव है। यदि गुप्त सूचनाओं के आधार पर विदेशों से घुसे आतंकियों को गिरफ्तार किया जा सकता है, तो चोरी करने वाले स्थानीय व्यक्ति को पकड़ना मुश्किल नहीं। दरअसल, हमारे देश और दूसरे देशों में व्यवस्था में बहुत अंतर है। वहां सभी अफसर, कर्मचारी किसी के भी दबाव में न आकर ईमानदारी से ड्यूटी करते हैं। यही कारण है कि वहां नियमों की उल्लंघना नाममात्र है। हमारे देश में यदि कोई बिगड़ैल व्यक्ति भी दूसरे देश में जाता है तो वहां अधिकारियों की सख्ती को भांपकर सुधर जाता है। यह भी नहीं कि हमारे देश में ईमानदार अफसरों की कमी है, लेकिन उनकी संख्या आटे में नमक के बराबर ही है।