थानों में पड़े-पड़े कबाड़ बन रहे सैकड़ों वाहन

सच कहूँ/सुधीर अरोड़ा
अबोहर। पुलिस द्वारा जब्त किए गए वाहनों की नीलामी न होने से थाने कबाड़खाने में तबदील हो गए हैं। चारों तरफ टूटी-फूटी कारें, बाइक, ट्रक, ट्रैक्टर, कार, जीप हर थाने में 500 से उपर संख्या में जंग खा रहे हैं। पुलिस चाहकर भी इन्हें हटा नहीं पा रही, क्योंकि बड़ी तादाद में बरामद वाहनों के मुकदमे अदालतों में विचाराधीन हैं। राज्य सरकार थानों को अति आधुनिक बनाने में जुटी है, लेकिन थानों के विकास के लिए फंड मिलने के बाद भी सूरत नहीं बदली जा सकी। चोरी, राहजनी, लूट आदि मामलों में बरामद वाहन केस प्रॉपर्टी होते हैं। मुकदमे लंबित होने के चलते पुलिस बरामद वाहनों की नीलामी नहीं कर पाती। ऐसे में अदालत के आदेश तक यह वाहन थाने में ही खड़े रहते हैं।

जो जगह खाली, वह कबाड़ बन चुके वाहनों से भरी

थानों में जो भी जगह खाली है, वह कबाड़ बन चुके वाहनों से भरी पड़ी है, जबकि पुलिस इन वाहनों की नीलामी को लेकर बिल्कुल भी गंभीर नहीं है। थानों में सैकड़ों गाड़ियां तो ऐसी हैं, जिनके मालिकों तक का पुलिस को पता नहीं है। कई गाड़ियां तो ऐसी पड़ी हैं, जो 10 से 15 साल पहले जब्त की गई थी। थानों में हजारों ऐसे वाहन पड़े हैं, जिनको पांच साल से ज्यादा का वक्त हो गया है। इन वाहनों की पुलिस को समय-समय पर नीलामी करवानी होती है, लेकिन हकीकत यह है कि पुलिस ने नीलामी के प्रयास ही नहीं किए।

सूचना के बाद भी नहीं ले जाते

पुलिस की तरफ से एक निश्चित समय और पूरी प्रक्रिया अपनाने के बाद इन वाहनों को नीलाम किया जाता है लेकिन उस नीलामी के लिए भी 3 से 4 साल तक का समय लग जाता है। जिला के तमाम थानों में दुर्घटनाग्रस्त हुए वाहनों की संख्या सर्वाधिक है। नगर थाना पुलिस व सदर थाना में आबकारी अधिनियम व लावारिस हालत में मिले हुए वाहन अधिक है। कबाड़ बन रहे ए वाहन पुलिस के लिए भी बड़ी मुसीबत है क्योंकि इनमें से अधिकांश का सामान गायब तक हो जाता है। लावारिस मिलने वाले वाहनों के बारे में पुलिस उनकी तहकीकात करके असल मालिक तक पहुंचने का प्रयास करती है तो इनमें अधिकांश वाहन ऐसे होते हैं जो कि चोरी हो चुके हैं। चूंकि तीन माह तक चोरी वाहन के ट्रेस नहीं होने की स्थिति में पुलिस को अनट्रेस रिपोर्ट देनी होती है जिसके बाद बीमा कंपनी मालिक को उसकी कीमत अदा कर देता है। ऐसे में लावारिस वाहनों को उनके असल मालिक देखने तो आ जाते हैं पर स्थिति देखकर लेकर ही नहीं जाते हैं।

दुर्घटनाग्रस्त वाहन ही सर्वाधिक

थानों में जब्त किए गए अधिकांश वाहनों में दुर्घटना करने वाले होते हैं। सामान्य दुर्घटनाओं में तो वाहन मालिक उन वाहनों की जमानत करा लेते हैं लेकिन जब किसी वाहन से बड़ी दुर्घटना हो जाती है तो उनमें जमानत प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है। कई वाहनों के पूर्ण दस्तावेज नहीं होने पर भी मालिक उन्हें छुड़ा नहीं पाते हैं। वहीं जिन वाहनों से बड़ी दुर्घटनाएं हुई या जिनमें परिवार के कई लोगों की मौत हो जाती है ऐसे वाहनों को भी पीड़ितों के परिवार लेकर ही नहीं जाते हैं। उन वाहनों को भी पुलिस को दुर्घटनास्थल से उठाकर थाना में लाना पड़ता है। ऐसे वाहनों में कार, आॅटो व बाइक व ट्रक इत्यादि शामिल है।

क्या कहते है नगर थाना प्रभारी परमजीत कंबोज

इस बारे नगर थाना प्रभारी परमजीत कंबोज ने कहा कि वाक्य ही है इस कारण उन्हें भी परेशानी आती है व वाहनों को रखने के लिए जगह तक नहीं बची। उन्होंने कहा कि हाल ही में उच्च अधिकारियों के आदेशों पर करीब 40 वाहनों की नीलामी करवाई गई थी जिसमें नशे की तस्करी में शामिल वाहन या एक्सीडेंटल वाहन शामिल थे। उन्होंने कहा कि ऐसी प्रक्रिया सभी थानों में अपनाई गई व नीलामी का पैसा सरकारी खजाने में जमा करवाया गया। उन्होंने कहा कि भविष्य में भी इस तरह की प्रक्रिया अधिकाारियों के आदेशों पर अपनाई जाएगी जिससे वाहनों की नीलामी हो जाएगी।

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