चीन पर बढ़ रहा दबाव

China Population

G-7 के सदस्य देश अमेरिका, जर्मनी, इटली, फ्रांस, कनाडा, जापान और इंग्लैंड ने अपनी बैठक में कोरोना वायरस सहित कई मुद्दों पर चीन के खिलाफ घेराबंदी शुरू कर दी है। इन देशों ने चीन के वुहान शहर की लैब से कोरोना वायरस की संदिग्ध उत्पत्ति संबंधी संयुक्त राष्ट्र के दिशा-निर्देशों में जांच करवाने संबंधी चर्चा की। दरअसल विगत वर्ष कोरोना वायरस से पीड़ित मरीज वुहान से मिले थे और चीन में बड़े स्तर पर मौतों की शुरूआत हुई थी, फिर यह बीमारी विश्व भर में फैलती गई और मरीजों की संख्या करोड़ों में पहुंच गई। अमेरिका जैसे विकसित देश भी बुरी तरह इस बीमारी की चपेट में आ गए। चीन ने सबसे पहले इस बीमारी पर नियंत्रण पाया तब दूसरे देशों का शक ओर भी बढ़ता गया। चीन पर यह भी आरोप लगते रहे हैं कि उसने वायरस के शुरूआती संक्रमण की जानकारी को भी विश्व की नजरों से छुपाया, जिसके कारण बाद में महामारी ने भारी नुक्सान किया।

अब जी-7 के सदस्य देश चीन के खिलाफ सख्ती से निपटने की तैयारी कर रहे हैं। जी-7 देशों की चर्चा के पीछे चिंता इस बात की है कि कहीं विकसित देश अपने हितों को साधने के लिए वायरस को एक हथियार के रूप में ईस्तेमाल करना न शुरू कर दें। वास्तविक्ता क्या है यह तो भविष्य के गर्भ में छिपी हैं, लेकिन फिलहाल जी-7 द्वारा लगाए जा रहे आरोप विश्व को एक नए दौर की तरफ बढ़ा रहे हैं। यह पहली बार है जब मेडिकल क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई परिस्थितियां बन रही हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का दावा है कि नवंबर 2019 में ही वुहान इंस्टीट्यूट आॅफ वायरोलॉजी के तीन वैज्ञानिक इसकी चपेट में आ गए थे। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। चीन को इसकी जानकारी डब्ल्यूएचओ को देनी चाहिए थी, ताकि धरती के अन्य देश समय रहते चौकन्ने हो पाते। अगले महीने यानी दिसंबर के अंत में इसके फैलाव के बाद ऐसा किया गया। यह भी सवाल उठाया जा रहा है कि चीन के सर्वेसर्वा शी जिनपिंग ने देश के अंदरूनी हिस्सों में तो यातायात प्रतिबंधित कर दिया, पर अंतरराष्ट्रीय उड़ानें जारी रखीं और समुद्री रास्ते सील नहीं किए गए।

इससे वायरस पूरी दनिया में फैल गया। यहां यह आवश्यक है कि चीन ईमानदारी से जांच में सहयोग दे। वास्तव में चीन का रवैया फिलहाल सद्भावना वाला कम और अकड़ वाला ज्यादा है। भले ही चीन सरकार ने जी-7 की चर्चा पर अभी कोई टिप्पणी नहीं की लेकिन चीन का सरकारी समाचार पत्र गुमा-फिराकर यह कह रहा है कि अब कुछ देशों का समूह विश्व को नहीं चला सकता। चीन प्रत्यक्ष रूप से किसी सहमति की ओर बढ़ता नजर नहीं आ रहा। यह दुनिया के हित में एक और व्यवहारिक कदम होगा कि चीन धैर्य, जिम्मेदारी व ईमानदारी का प्रमाण देकर अपने मेडिकल केंद्र को जांच के लिए खोले। विश्व स्वास्थ्य संगठन की भी अब यही कोशिश है।

 

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