
Trump Tariff: डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर अपनी चरित्रगत हठधर्मिता का परिचय देते हुए भारत को आर्थिक युद्ध की चुनौती दे दी है। 1 अगस्त से भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा के साथ ही रूस के साथ व्यापार के लिए अतिरिक्त दंड की धमकी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वाशिंगटन की नीति अब एकतरफा अधिकारवाद की ओर तेजी से बढ़ रही है। यह महज एक व्यापारिक विवाद नहीं है, बल्कि भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और आत्म-सम्मान की गंभीर परीक्षा है। अमेरिकी रणनीति की जड़ें बहुत गहरी हैं। ट्रम्प प्रशासन का लक्ष्य केवल व्यापारिक संतुलन ठीक करना नहीं है, बल्कि एक नई विश्व व्यवस्था स्थापित करना है जिसमें अमेरिका के अलावा कोई भी देश अपनी स्वतंत्र नीति नहीं चला सके। रूस के साथ भारत के संबंधों को लेकर अमेरिकी आपत्ति इसी मानसिकता का प्रतिबिंब है। वाशिंगटन यह भूल जाता है कि भारत एक सभ्यतागत राष्ट्र है, कोई उपनिवेश नहीं। Trump Tariff
भारत के लिए यह स्थिति विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण इसलिए है क्योंकि देश अपनी तेल आवश्यकता का 88 प्रतिशत आयात करता है और रूसी तेल इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारतीय बैंकों ने रुपए में भुगतान की व्यवस्था करके रूस के साथ व्यापार जारी रखा है। यह भारत की आर्थिक चतुराई और राष्ट्रीय हितों की रक्षा का उदाहरण है। भारत की स्थिति अत्यंत स्पष्ट होनी चाहिए। यह देश न तो अमेरिका का जूनियर पार्टनर बनने को तैयार है और न ही रूस का। भारत की विदेश नीति सदैव बहुध्रुवीयता पर आधारित रही है। नेहरू के गुटनिरपेक्षता से लेकर मोदी की ‘सबका साथ’ नीति तक, भारत ने हमेशा अपना रास्ता खुद बनाया है।
ट्रम्प ने भारत को 25 प्रतिशत टैरिफ की धमकी देते हुए कहा कि भारत हमारा दोस्त है- यह कैसी दोस्ती है जो धमकियों पर आधारित हो? यह अमेरिकी राजनीति की कपटपूर्ण भाषा है। दोस्ती में बराबरी होती है, मालिक-गुलाम का रिश्ता नहीं। भारत के लिए यह समय आत्मचिंतन का है। क्या हमने अमेरिकी बाजार पर अत्यधिक निर्भरता बढ़ा ली है? क्या हमारी आर्थिक कूटनीति में संतुलन की कमी है? इन प्रश्नों के उत्तर खोजने होंगे। लेकिन एक बात स्पष्ट है – भारत को अपनी गरिमा के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहिए। भारत एक परमाणु और आर्थिक महाशक्ति है जो न तो अमेरिका के आदेश मानती है और न ही पश्चिमी प्रतिबंधों को स्वीकार करती है। यह भारत की वास्तविकता है और इसे बनाए रखना होगा। अमेरिका को यह समझना होगा कि 21वीं सदी में कोई भी बड़ा देश दूसरे की शर्तों के अनुसार अपनी नीति नहीं बनाएगा। Trump Tariff
व्यापारिक दृष्टि से देखें तो यह टैरिफ भारतीय निर्यातकों के लिए अवश्य चुनौती है। सूचना प्रौद्योगिकी, वस्त्र, रसायन और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ेगा। लेकिन यह अंत नहीं है, नई शुरूआत है। यूरोप, जापान, आसियान और अफ्रीकी देशों के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत करने का यह सुअवसर है। भारत सरकार की प्राथमिकता स्पष्ट होनी चाहिए। पहला, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना। दूसरा, निर्यात बाजारों का विविधीकरण। तीसरा, रुपए में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना। चौथा, भारतीय कंपनियों को वैकल्पिक बाजार खोजने में सहायता करना। अमेरिकी सेनेटर लिंडसे ग्राहम का प्रस्ताव रूसी ऊर्जा खरीदने वाले देशों पर 500 प्रतिशत टैरिफ लगाने का है। यह पागलपन की हद है। ऐसी नीतियां अमेरिका को दुनिया से अलग-थलग कर देंगी। भारत और चीन रूसी ऊर्जा निर्यात का लगभग 70 प्रतिशत खरीदते हैं – क्या अमेरिका वास्तव में इन दोनों देशों से एक साथ व्यापारिक युद्ध लड़ना चाहता है?
भारत की रणनीति बहुआयामी होनी चाहिए। राजनीतिक स्तर पर भारत को रूस, चीन और अन्य विकासशील देशों के साथ मिलकर एक वैकल्पिक व्यापारिक गुट बनाने पर विचार करना चाहिए। आर्थिक स्तर पर भारत को अपनी वित्तीय प्रणाली को और मजबूत बनाना होगा ताकि डॉलर की निर्भरता कम हो। यह भी समझना जरूरी है कि 1 अगस्त की समय सीमा के बावजूद भारत इस दबाव से विचलित नहीं दिख रहा। यह भारत की परिपक्व कूटनीति का परिचायक है। हड़बड़ी में लिए गए निर्णय हमेशा गलत होते हैं। अमेरिका को यह समझना होगा कि भारत के साथ साझेदारी एकतरफा शर्तों पर नहीं हो सकती। भारत आज वह देश नहीं है जो 1990 के दशक में आईएमएफ से कर्ज मांगने जाता था। आज का भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है और अंतरिक्ष में भी महाशक्ति है।
इस संकट से निपटने के लिए भारत को अपनी आंतरिक शक्ति पर भरोसा करना होगा। ‘आत्मनिर्भर भारत’ की नीति अब केवल नारा नहीं, बल्कि जीवन-मरण का प्रश्न बन गई है। घरेलू बाजार को मजबूत बनाना, स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देना और तकनीकी आत्मनिर्भरता हासिल करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। भारतीय इतिहास गवाह है कि जब भी विदेशी शक्तियों ने इस देश पर दबाव डाला है, भारत ने अपना रास्ता निकाला है। चाहे वह मुगलों का दबाव हो या अंग्रेजों का, भारत ने हमेशा अपनी सभ्यतागत शक्ति से जवाब दिया है। आज भी वही करना होगा। ट्रम्प को लगता है कि वे भारत को झुका देंगे। लेकिन वे भूल जाते हैं कि भारत वह देश है जिसने अहिंसा के बल पर ब्रिटिश साम्राज्य को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। आज भी वही भारत है, वही संस्कार हैं, वही दृढ़ता है। अमेरिका को यह समझना होगा कि भारत के साथ रिश्ता बराबरी का हो सकता है, अधीनता का नहीं।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
यह भी पढ़ें:– Voting Date for Vice President Post: भारत के अगले उपराष्ट्रपति का चुनाव इस दिन होगा!