India Total Loan Amount: डॉ. संदीप सिंहमार। भारत की किस्मत और उसके लोगों की मेहनत के बीच एक अदृश्य धागा है, जो हमें कर्ज के भारी बोझ से बांधता है। विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बावजूद, भारत में हर नागरिक पर कर्ज का दबाव बढ़ता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण जनसंख्या विस्फोट है, जो न केवल आर्थिक चुनौतियों को बढ़ा रहा है, बल्कि जीवन की खुशियों को भी धीरे-धीरे छीन रहा है। यह लेख कर्ज, दर्द और मर्ज के उस त्रिकोण पर प्रकाश डालता है, जो हर भारतीय को एक व्यंग्यात्मक साहसिक यात्रा पर ले जा रहा है।
कर्ज, एक ऐसा शब्द है, जो सुनते ही मन में एक अजीब सी हलचल पैदा करता है। यह न केवल व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है, बल्कि उसके मानसिक स्वास्थ्य को भी कमजोर करता है। एक सामान्य भारतीय परिवार, जो रोजमर्रा की मेहनत से जीविका चलाता है, अचानक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं या शिक्षा की जरूरतों के लिए कर्ज लेता है। यह कर्ज धीरे-धीरे एक मर्ज में बदल जाता है, जो व्यक्ति को हर ओर से जकड़ लेता है।
जब कर्ज चुकाने की तारीख नजदीक आती है, तब दर्द का अहसास शुरू होता है। हर सुबह नई चिंता के साथ जागना और अपने सपनों को त्यागना एक आम भारतीय की दिनचर्या बन जाती है। यह दर्द केवल आर्थिक नहीं, बल्कि मानसिक और शारीरिक भी है। कर्ज की चिंता में नींद की कमी, तनाव और शारीरिक स्वास्थ्य का ह्रास आम बात हो गई है। इस प्रकार, कर्ज केवल एक वित्तीय समस्या नहीं, बल्कि यह भारतीय समाज के लिए एक जीवनशैली का अपमान बन चुका है। कर्ज के लगातार बढ़ते बोझ ने भारतीय समाज में एक सामाजिक मर्ज को जन्म दिया है। यह मर्ज असमानता, तनाव और निराशा के रूप में प्रकट होता है। India Total Loan Amount
कई परिवार कर्ज के कारण अपने बच्चों की शिक्षा से वंचित हो जाते हैं, क्योंकि वे शैक्षणिक खर्चों को वहन नहीं कर पाते। यह एक दुष्चक्र है: कर्ज के कारण शिक्षा का अभाव, फिर रोजगार का अभाव और अंतत: जीवन में अराजकता और निराशा। यह त्रिकोण—कर्ज, दर्द और मर्ज—केवल आर्थिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी गहरा प्रभाव डालता है। यह एक ऐसी चुनौती है, जो हर भारतीय को प्रभावित कर रही है। समाज को इस कर्ज के जाल से मुक्त होने के लिए सामूहिक प्रयास, संवेदनशीलता और वित्तीय साक्षरता की आवश्यकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की जून 2025 की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट ने इस समस्या की गंभीरता को और उजागर किया है। रिपोर्ट के अनुसार, हर भारतीय पर औसतन 4 लाख 80 हजार रुपये का कर्ज है, जो पिछले दो वर्षों में 23 प्रतिशत बढ़ा है। इसके अलावा, 2023 के बाद प्रत्येक भारतीय पर औसतन 90,000 रुपये का अतिरिक्त कर्ज बढ़ा है। यह आंकड़ा न केवल व्यक्तिगत वित्त के लिए चिंताजनक है, बल्कि देश की समग्र आर्थिक स्थिति पर भी गहरा प्रभाव डालता है। कोविड-19 महामारी ने आर्थिक मंदी, व्यापार में कमी और रोजगार के अवसरों में कमी लाकर लोगों को कर्ज लेने के लिए मजबूर किया। इस दौरान कई परिवारों ने अपने खर्चों को पूरा करने के लिए कर्ज का सहारा लिया, जिससे कर्ज का बोझ और बढ़ गया। यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है, जब हम वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को देखते हैं, जिसमें महंगाई और अनिश्चितता बढ़ रही है। India Total Loan Amount
बढ़ता कर्ज केवल व्यक्तिगत वित्त तक सीमित नहीं है। यह बैंकिंग सिस्टम पर भी दबाव डाल रहा है। गैर-कार्यशील संपत्तियों (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स) की समस्या बैंकों की स्थिति को कमजोर कर रही है, जिसका असर समग्र आर्थिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। यदि यह स्थिति अनियंत्रित रही, तो यह न केवल व्यक्तियों, बल्कि पूरे देश की आर्थिक स्थिरता के लिए खतरा बन सकती है। इस चुनौती से निपटने के लिए हमें व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर कदम उठाने होंगे। व्यक्तिगत स्तर पर, अनावश्यक खर्चों को नियंत्रित करना, बचत की आदतें विकसित करना और गैर-जरूरी कर्ज से बचना जरूरी है। साथ ही, वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देना होगा, ताकि लोग अपने वित्तीय निर्णयों को समझदारी से ले सकें। सरकारी स्तर पर, आर्थिक सुधारों की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। वित्तीय शिक्षण, छोटे व्यवसायों के लिए ऋण सुलभता और रोजगार सृजन पर ध्यान देना होगा। इसके अलावा, कर्ज चुकाने में असमर्थ लोगों के लिए विशेष योजनाओं की शुरूआत की जानी चाहिए, ताकि वे इस बोझ से मुक्त हो सकें।
हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा, जहां कर्ज का डर न हो और लोग अपने सपनों को साकार करने के लिए स्वतंत्र हों। यह बदलाव तभी संभव है, जब हम कर्ज के निदान के लिए सामूहिक प्रयास करें। वित्तीय साक्षरता, बेहतर आर्थिक प्रबंधन और सरकार के ठोस कदम इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कर्ज, दर्द और मर्ज की यह कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि हर भारतीय की कहानी है। हमें अपने कर्ज को पहचानने और इसका समाधान खोजने के लिए तैयार रहना होगा। तभी हम अपनी खुशियों को पुन: प्राप्त कर सकेंगे और एक स्थिर, समृद्ध और कर्जमुक्त भारत की ओर बढ़ सकेंगे। (यह लेखक के अपने विचार हैं)
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