Japan scientific research: नई दिल्ली। जापान के वैज्ञानिकों की एक टीम ने गठिया (रूमेटाइड आर्थराइटिस) से जुड़ी एक महत्वपूर्ण खोज की है। शोधकर्ताओं ने ऐसे छिपे हुए “प्रतिरक्षा केंद्र” (इम्यून हब्स) की पहचान की है, जो जोड़ों को नुकसान पहुंचाने में अहम भूमिका निभाते हैं। Arthritis treatment
रूमेटाइड आर्थराइटिस (आरए) एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही अपने जोड़ों पर हमला करने लगती है। यह बीमारी विश्वभर में लाखों लोगों को प्रभावित करती है। कई बार दवाइयों का असर सीमित होता है और करीब हर तीन में से एक मरीज को पर्याप्त राहत नहीं मिल पाती। एडवांस स्तर पर यह रोग जोड़ों में विकृतियां भी उत्पन्न कर सकता है। क्योटो यूनिवर्सिटी की टीम ने अध्ययन में पाया कि पेरिफेरल हेल्पर टी (टीपीएच) कोशिकाएं, जो गठिया में प्रमुख भूमिका निभाती हैं, दो प्रकार की होती हैं:
स्टेम-लाइक टीपीएच कोशिकाएं: ये कोशिकाएं सूजन वाले ‘इम्यून हब’ या टर्शियरी लिम्फोइड स्ट्रक्चर में रहती हैं। यहाँ वे अपनी संख्या बढ़ाती हैं और बी कोशिकाओं को सक्रिय करती हैं।
इफेक्टोर टीपीएच कोशिकाएं: स्टेम-लाइक टीपीएच कोशिकाओं में से कुछ इफेक्टोर टीपीएच कोशिकाओं में बदल जाती हैं। ये हब से बाहर निकलकर जोड़ों में सूजन पैदा करती हैं। यही कारण है कि कई मरीजों में इलाज के बावजूद सूजन बनी रहती है।
मरीजों को लंबे समय तक राहत और जीवन की गुणवत्ता में सुधार मिल सकता है
शोधपत्र में बताया गया है कि यदि शुरुआत में ही इन स्टेम जैसी टीपीएच कोशिकाओं को टारगेट किया जाए, तो मरीजों को लंबे समय तक राहत और जीवन की गुणवत्ता में सुधार मिल सकता है।
टीपीएच कोशिकाओं की यह खोज यह भी स्पष्ट करती है कि स्टेम जैसी कोशिकाएं स्वयं को बार-बार नवीनीकृत कर सकती हैं और इफेक्टोर टीपीएच कोशिकाओं में बदल सकती हैं। यानी ये कोशिकाएं बीमारी की जड़ के रूप में काम कर सकती हैं। कुल मिलाकर, इस अध्ययन से पता चला कि सूजे हुए जोड़ों में दो प्रकार की टीपीएच कोशिकाएं मौजूद हैं और इनकी अलग-अलग भूमिकाएं हैं। यह शोध गठिया रोगियों के लिए नई उम्मीद लेकर आया है। Arthritis treatment
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