अब औषधीय मशरूम का भी ट्रायल
National Farmers Day 2025: सरसा (सच कहूँ/सुनील वर्मा)। हर वर्ष 23 दिसंबर को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह की जयंती राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह दिन अन्नदाताओं के सम्मान, उनके योगदान और नवाचारों को याद करने का प्रतीक है। इसी कड़ी में आज हम जिले के दो ऐसे प्रोग्रेसिव किसानों से रूबरू करा रहे हैं, जिन्होंने आधुनिक और प्राकृतिक खेती की तकनीकों से न सिर्फ अच्छी आय अर्जित की, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बने हैं। इनमें पहला नाम है गांव भड़ोलियावांली निवासी जसविंद्र सिंह पुत्र नायब सिंह, जो एमए, जेबीटी हैं और एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापक के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। Mushroom Farming
वहीं दूसरी ओर ओढ़ां निवासी सर्वजीत कौर पत्नी जसकरण सिंह भी उन्नत खेती के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना चुकी हैं। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार में मंगलवार को प्रदेश के प्रोग्रेसिव किसानों को सम्मानित किया जाएगा। इनमें सरसा जिला के भड़ोलियांवाली निवासी जसविंद्र सिंह व ओढ़ां निवासी सर्वजीत कौर सहित प्रदेशभर के 42 किसान शामिल है। मशरूम के साथ-साथ जसविंद्र सिंह अपनी पुश्तैनी 13 एकड़ भूमि में से 6 एकड़ में आॅर्गेनिक खेती कर रहे हैं। यहां वे सरसों, मूंग दाल और 306 देशी गेहूं की खेती कर रहे हैं। राष्ट्रीय किसान दिवस पर जसविंद्र सिंह जैसे प्रगतिशील किसान यह साबित कर रहे हैं कि यदि मेहनत, तकनीक और नवाचार को अपनाया जाए तो खेती न केवल सम्मानजनक पेशा है, बल्कि अच्छी आमदनी का भी मजबूत जरिया बन सकती है।
लॉकडाउन में बदली किस्मत, मशरूम खेती बनी सहारा | Mushroom Farming
भड़ोलियांवाली निवासी जसविंद्र सिंह बताते हैं कि उन्हें शुरू से ही प्राकृतिक खेती का शौक रहा है। लॉकडाउन के दौरान जब कामकाज ठप हो गया, तब उन्होंने मशरूम (खुंभ) की खेती करने का निर्णय लिया। शुरूआती दौर में उन्होंने यूट्यूब से तकनीकी जानकारी हासिल की और घर पर ही 80 गुणा 80 का एक छोटा प्लांट तैयार किया। जसविंद्र सिंह के अनुसार मशरूम की खेती में पूरी देखभाल की जाए तो 50 से 60 प्रतिशत तक मुनाफा होता है। एक बार खाद, बीज व अन्य सामग्री डालकर करीब 50 हजार रुपये में प्लांट तैयार हो जाता है, जिससे एक से सवा लाख रुपये तक का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
खेत से ही बिक जाती है पूरी उपज
जसविंद्र सिंह की खास बात यह है कि उनकी रोजाना निकलने वाली मशरूम सीधे खेत से ही बिक जाती है। उन्हें मंडी में जाने की जरूरत नहीं पड़ती। जहां मंडी में मशरूम 70 से 90 रुपये प्रति किलो बिकती है, वहीं उनके खेत से लोग 120 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीद लेते हैं। वे बताते हैं कि उनकी मशरूम पूरी तरह प्योर आॅर्गेनिक है, इसलिए मांग भी अधिक रहती है।
शिक्षक से प्रगतिशील किसान तक का सफर
टीचिंग के बाद जसविंद्र सिंह स्वयं कनौपी लगाकर खेत में मशरूम की देखरेख करते हैं। इस कार्य में पुलिस विभाग से सब-इंस्पेक्टर पद से सेवानिवृत्त उनके पिता नायब सिंह सहित पूरे परिवार का उन्हें भरपूर सहयोग मिल रहा है। वे कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा आयोजित जागरूकता सेमिनारों में किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रेरित भी करते हैं। जसविंद्र सिंह बताते हैं कि शुरूआत में ग्रामीण उनका मजाक उड़ाते थे, लेकिन आज वही लोग उनकी सफलता की सराहना कर रहे हैं। उन्होंने बटन मशरूम से शुरूआत की और अब डिंगरी मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं, साथ ही औषधीय टर्की टेल
मशरूम का भी ट्रायल चल रहा है। Mushroom Farming
जिला कृषि विज्ञान केंद्र सरसा के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. डी.एस. जाखड़ ने बताया कि जसविंद्र सिंह और सर्वजीत कौर जैसे प्रगतिशील किसान यह सिद्ध कर रहे हैं कि पारंपरिक खेती के साथ यदि आधुनिक और प्राकृतिक तकनीकों को जोड़ा जाए तो कम लागत में अधिक मुनाफा अर्जित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मशरूम खेती किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है, जिसमें कम जगह, कम समय और कम पानी में अच्छी आमदनी संभव है।















